आगरा देश का प्रमुख ऐतिहासिक शहर है. हर रोज़ हम आपके साथ इस शहर की कई पुरानी और रोचक कहानियां शेयर करते हैं. आज भी हम आपके सामने शहर का एक अनोखा और ऐतिहासिक क़िस्सा लेकर हाज़िर हुए हैं.

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ये कहानी है मुग़ल शासक बाबर की

10 मई 1526 की बात है जब मुग़ल बादशाह इब्राहिम खां से जंग जीत आगरा शहर पहुंचे थे. मई का महीना था इसलिये शहर गर्मी से जल रहा था. गर्मी से परेशान होकर उन्होंने आरामगाह बनवाने का निर्णय लिया. ताकि गर्मी से निजात पाई जा सके. आरामगाह बनवाने के लिये उन्होंने यमुना किनारे जगह चुनी और उसे नाम दिया ‘हिश्त-बहिश्त’

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बाबर के बनवाये हुए ‘हिश्त-बहिश्त’ को लोग ‘आराम बाग’ भी कहा करते थे. वहीं जब शहर में मराठों का शासन शुरू हुआ, तो उन्होंने हिश्त-बहिश्त का नाम बदलकर ‘रामबाग’ कर दिया. इसके बाद दोबारा कभी उसका नाम नहीं बदला गया. इतिहासकारों की माने, तो अपने ख़ूबसूरत हिश्त-बहिश्त में बाबर ने कनेर के पौधे भी लगवाये थे. इसके अलावा जल प्रपात और तालघर भी था. पानी की सुविधा के लिये हम्माम और बड़ा कुंआ भी बनवाया गया था. 

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कुल मिलाकर ‘हिश्त-बहिश्त’ वो हर चीज़ थी, जो एक आम शख़्स को राहत पहुंचा सके. कहते हैं कि जब बाबर ने ‘आरामबाग’ का निर्माण कराया, तो उसे देख लोगों ने वहां हवेलियां बनवा लीं. ये हवेलियां खंदोली तक फ़ैली गई थीं, जिस वजह से उसे छोटा क़ाबुल भी कहा जाने लगा था. बताया जाता है कि बाबर द्वारा बनवाये गये आराम बाग में एक संरक्षित इमारत भी है. हांलाकि, बाग वैसा नहीं रहा, जैसा उस समय था. अब वहां कुछ पेड़ बचे हुए हैं. 

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बाबर का ‘रामबाग’ अब शहर की सबसे घनी आबादी वाली जगहों में शामिल है. मुग़लकाल के बारे में इतिहासकारों का कहना है कि उस दौर में शहर व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता था. कहते हैं कि अक़बर के शासन में व्यापार फ़ैलाने के लिये मंडियां ही नहीं, गंज और हाई भी बनाये थे.  

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इतिहास की बातें जानने के बाद लगता है कि हम उस दौर का हिस्सा क्यों नहीं थे. चलो अबकी आगरा जाना, तो रामबाग ज़रूर घूम कर आना.