दुनिया में ऐसी कई घटनाएं होती हैं जो इतिहास के बारे में लोगों के सोचने का तरीका ही बदल कर रख देती हैं. आज दुनिया के सबसे प्रोग्रेसिव देशों में शुमार अमेरिका भी एक समय पर तमाम तरह की वर्जनाएं महिलाओं के सर पर थोपे हुए था. लेकिन 1920 के दशक में हुई महज एक घटना ने दुनिया को दिखाया था कि कैसे अवचेतन मन पर काबू पा लेने से स्टीरियोटाइप्स और बनी बनाई धारणाओं को तोड़ा जा सकता है.
1928 वो साल था जब अमेरिका की तंबाकू कंपनी के प्रेसीडेंट जॉर्ज वाशिंगटन हिल के माथे पर बल पड़े हुए थे. हालांकि, उनकी सिगरेट पुरुषों में काफी लोकप्रिय थी लेकिन जॉर्ज जानते थे कि अगर महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने लगेंगी, तो उनका बिजनेस दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की करने लगेगा. वह किसी भी परिस्थिति में चाहता था कि महिलाओं में सिगरेट को लेकर एक आकर्षक छवि गढ़ी जाए हालांकि ये काम आसान नहीं था क्योंकि उस समय अमेरिका जैसी लिबरल सोसाएटी में भी महिलाओं का सिगरेट पीना टैबू माना जाता था.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद से पुरुषों में सिगरेट का सेवन काफी आम हो गया था. युद्ध की भीषण परिस्थितियों से निपटने के लिए सैनिकों के राशन में सिगरेट भी पहुंचाई जाने लगी थी. यही नहीं पुरुष सार्वजनिक स्थानों पर भी सिगरेट का बराबर उपयोग करने लगे थे, लेकिन दुनिया के कई देशों की तरह ही अमेरिका में भी महिलाएं सार्वजानिक स्थानों पर सिगरेट नहीं पी सकती थी. उन्हें अपने इस गलत आचरण के लिए जेल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती थी.
लेकिन प्रथम विश्व युद्ध(1914-1918) ने जेंडर रोल के बने बनाए सिद्धांत ध्वस्त करने शुरु कर दिए थे. जहां पुरुष युद्ध में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते वहीं महिलाएं घर से बाहर निकल कमाने लगी थी, एक गृहणी के रोल के अलावा वे अब अपने नौकरी पेशा रोल को भी बखूबी निभा रही थी. शायद यही वजह थी कि 1920 के दशक में कई ऐसे प्रदर्शन हुए जहां महिलाएं अपनी बराबरी के हक के लिए प्रदर्शन करती रहीं. चाहे वो वोट डालने का अधिकार हो, बराबर तनख़्वाह की मांग करनी हो या फिर सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को सिगरेट पीने का अधिकार.
जॉर्ज वाशिंगटन हिल इस पूरे माहौल को भुनाना चाहता था. वह महिलाओं की बराबरी चाहने वाला कोई फेमिनिस्ट नहीं था, बल्कि वह सत्ता और प्रदर्शनकारी महिलाओं के बीच चल रहे संघर्ष का फायदा उठाना चाहता था. वह जानता था कि अगर इस माहौल में वो महिलाओं के लिए सिगरेट का बाज़ार तैयार करने में कामयाब हो गया, तो उसका बैंक बैलेंस गजब तरक्की कर जाएगा.
इसी के चलते जॉर्ज ने एडवर्ड बर्नेंस की मदद लेनी चाही. एडवर्ड, दुनिया के सबसे प्रभावशाली साइकोलॉजिस्ट और साइकोएनालिसिस के गॉडफादर सिगमेंड फ्रॉयड के भतीजे थे. जार्ज ने एडवर्ड की सर्विस के लिए 25 हजार डॉलर की भारी भरकम कीमत भी चुकाई थी.
सिगमंड फ्रॉयड का मानना था कि हमारा दिमाग बेहद जटिलताओं और अवचेतन मन कई आक्रामकताओं से भरा हुआ है और अगर इंसान के अवचेतन मन को काबू में ना किया जाए तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. फ्रॉयड ने अपनी इस थ्योरी को प्रथम विश्व युद्ध में महसूस किया था जब महज कुछ लोगों ने डेमोक्रेसी को मोबोक्रेसी बनाते हुए लाखों लोगों की जिंदगियां लील ली थी.
फ्रॉयड के भतीजे एडवर्ड इस थ्योरी से बेहद प्रभावित थे, उन्होंने महसूस किया कि अगर लोगों का चीजों और अलग-अलग तरह के सामानों के साथ एक भावनात्मक संबंध जोड़ा जाए तो उपभोक्तावाद को एक नई दिशा मिल सकती है और देश की अर्थव्यवस्था भी जबरदस्त तरीके से फल-फूल सकती है. 1929 में आए ग्रेट डिप्रेशन से पहले तक एडवर्ड का ये प्रयोग अमेरिका में जबरदस्त तरीके से सफ़ल रहा और 1995 में उन्हें फॉदर ऑफ पब्लिक रिलेंशस से नवाजा गया.
लेकिन एडवर्ड की चुनौतियां इस बार कम नहीं थी. महिलाएं सिगरेट की तरफ क्यों आकर्षित हों, इसके लिए एडवर्ड एक बढ़िया वजह की तलाश में थे. साथ ही, उस जमाने में महिलाओं का पब्लिक में सिगरेट पीना भी बेहद हिकारत भरी नजरों से देखा जाता था. 19वीं शताब्दी के दौरान ऐसा माना जाता था कि केवल वेश्याएं और चरित्रहीन औरतें ही सिगरेट पीती हैं.
वहीं पर्दे पर भी केवल शातिर और धूर्त महिलाओं को ही सिगरेट पीते हुए दिखाया जाता था, यानि महिलाओं और सिगरेट के साथ तमाम तरह के टैबू जुड़े हुए थे और जो ‘इज्जतदार’ महिलाएं कभी-कभी सार्वजनिक स्थानों पर कश लगाते हुए मिल जाती थीं, वो अंदाज जॉर्ज को नागवार गुजरा था, इसलिए इस जटिल प्रोजेक्ट के लिए जॉर्ज ने एडवर्ड की मदद लेनी चाही थी.
31 मार्च 1929 भले ही ज्यादातर लोगों के लिए खास न हो लेकिन इस दिन एडवर्ड ने अपनी मार्केटिंग और पब्लिक रिलेंशस का नायाब नमूना पेश किया था. टॉर्चेस ऑफ फ्रीडम नाम के अपने कैंपेन के सहारे वह एक स्टीरियोटाइप्स और बनी बनाई धारणा को तोड़ने चले थे. अमेरिका के एक प्रकार के मेले यानि न्यूयार्क में ईस्टर फेयर में उस दिन भारी भीड़ थी. भीड़ में मौजूद बार्था हंट नाम की एक महिला ने उस समय सनसनी मचा दी जब वह मेले के बीचो-बीच सिगरेट पीने लगी. मीडिया ने इस घटना को हाथों-हाथ लिया.
दरअसल, मीडियाकर्मी पहले ही जानते थे कि हंट ऐसा करने वाली हैं. मीडिया से जुड़े लोगों को पैंफ्लेट के सहारे इस घटना के बारे में पहले ही बता दिया गया था. लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम था कि हंट एडवर्ड की सेक्रेटरी है और महिलाओं को सिगरेट के प्रति आकर्षित करने के लिए एडवर्ड का ये प्रयास केवल एक शुरुआत भर था.
अवचेतन दिमाग से खेलने में माहिर एडवर्ड ने सिगरेट को महिलाओं की आजादी से जोड़ कर देखा. कई सालों से अपने हक के लिए लड़ने वाली इन महिलाओं को एडवर्ड सिगरेट द्वारा समाज की मानसिक बेड़ियों से मुक्त कराना चाहते थे. उन्होंने अपने टॉर्च ऑफ फ्रीडम के सहारे महिलाओं के पब्लिक में सिगरेट पीने को लेकर खुलेआम पैरवी की.
बार्था हंट के साथ ही 10 युवा और आकर्षक महिलाएं सिगरेट जलाते हुए अपनी इस नई आजादी का प्रदर्शन कर रही थी. इस कारनामे को न केवल मीडिया में जोर-शोर से पेश किया गया, बल्कि देश में मौजूद कई युवा महिलाएं भी अब सिगरेट को एक मानसिक आजादी के तौर पर अपनाने लगी थी. जहां महिलाओं को अब भी वोटिंग के अधिकार से महरूम रखा जा रहा था, वहीं एडवर्ड सिगरेट के रूप में उन्हें आजादी का एक शानदार सांकेतिक हथियार उपलब्ध करवा चुके थे.
जिस तरह से ईस्टर के दौरान बार्था यंग के साथ इन महिलाओं ने सिगरेट को आजाद ख्यालात और एक ग्लैमरस सांकेतिक टूल के तौर पर पेश किया उससे देश में मौजूद महिलाओं में एक सकारात्मक संदेश गया. महिलाएं को लिए सिगरेट पीना अब स्टीरियोटाइप्स तोड़ने जैसा था, यह एक तरह से सामाजिक बंदिशों से मुक्ति थी, महिलाओं के लिए सिगरेट पीना अब एक मानसिक और सामाजिक क्रांति बन चुका था.
लेकिन ये सारा खेल सिर्फ़ अवचेतन मन और उसकी जरूरत को एक भावनात्मक संबंध में ढालने तक ही सीमित था और एडवर्ड बर्नेंस इस खेल के चैंपियन माने जाते थे. एडवर्ड इससे पहले भी अमेरिका के लोगों की अंतरिम भावनाओं के साथ कारगुज़ारी करते हुए इस देश को भौतिकवाद और पूंजीवाद की दुनिया में झोंक चुके थे.
ये एडवर्ड का ही कारनामा था कि उनके इस सफ़ल प्रोजेक्ट के बाद जॉर्ज वाशिंगटन हिल का कारोबार दोगुनी गति से तरक्की करने लगा था. एडवर्ड और हिल का साथ 8 सालों तक रहा और इस दौरान हिल की कंपनी ने कई ऊंचाईयों को छुआ.
कई सालों बाद जब एडवर्ड से इस प्रोजेक्ट और इस कैंपेन के बारे में जब बात की गई थी, तो उन्होंने कहा था कि सालों से चली आ रही परंपराओं, मिथकों, रीति-रिवाजों को पल भर में ढहाया जा सकता है बशर्ते आपमें लोगों के अवचेतन मस्तिष्क से खेलने की क्षमता हो और आप ड्रेमेटिक तरीके से अपनी टॉर्गेट जनता को अपील कर सकें.
एडवर्ड का ये प्रयास यानि टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम आज भी विज्ञापन के इतिहास में सबसे असरदार कैंपेन में से एक माना जाता था, जहां महज इंसान के Unconscious Mind से खेलते हुए एक टैबू को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था.