Health Impacts Of Flights: कई लोगों को 13 घंटे की उड़ान लेना बहुत भारी लगता है, लेकिन कुछ विमान कंपनियां 20 घंटे या उससे ज़्यादा की नॉन-स्टॉप यानी लगातार उड़ानों की तैयारी कर रही हैं, जो कहलाती हैं- अल्ट्रा-लॉन्ग हॉल फ्लाइट यानी बेहद लंबी निरंतर उड़ान. ऑस्ट्रेलिया की विमान कंपनी कॉन्टस (Qantas Ailines) ने ऐसे विमानों को ख़रीदने का ऑर्डर दिया है, जो सिडनी और मेलबर्न से न्यूयॉर्क और लंदन की नॉन-स्टॉप उड़ानें भरेंगे. कुछ लोग ये सोच सकते हैं कि, निरंतर उड़ानें सुविधाजनक होती हैं. कुछ को लगेगा कि इतने घंटे बैठे रहने से तो तनाव के मारे माथा ही फट जाएगा.

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Health Impacts Of Flights

चढ़ने से लेकर उतरने तक, विमान का सफ़र (Health Impacts Of Flights) ख़ासा तनाव भरा हो सकता है- सही समय पर हवाई अड्डे पहुंचना, विशाल और अपरिचित टर्मिनलों के बीच अपना रास्ता ढूंढना, भाषा संबंधी परेशानियां, सुरक्षा जांच और फिर सैकड़ों अजनबियों के बीच विमान पर चढ़ना और आख़िर में इतने सारे घंटे उसमें बैठे रहना- लगता है कि बचाव का कोई रास्ता ही नहीं है. 

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आप सोच रहे होंगे कि उड़ान जितना लंबी खिंचेगी, उतनी ही हमारी स्थिति बिगड़ती जाएगी. दरअसल, शरीर और दिमाग़ दोनों पर उड़ान का अलग-अलग असर (Health Impacts Of Flights) पड़ता है. एक तरीके से आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत का इम्तिहान है ये.

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मानसिक सेहत पर प्रभाव

अगर आपको उड़ने से डर लगता है, जिसे एवियोफ़ोबिया (Avio Phobia) या एयरोफ़ोबिया (Aerophobia) भी कहते हैं, तो विमान में आप ख़ासतौर पर परेशानी महसूस करेंगे. Howard University में मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर रिचर्ड मैकनैली (Richard J. McNeely) के मुताबिक,

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आमतौर पर लोगों के दो समूह हैं, जिन्हें उड़ान से डर लगता हैः पहले तो वे जिन्हें पहले से एगोराफ़ोबिया (Agoraphobia) है यानी भीड़ से डर लगता है और घबराहट होती है. दूसरा समूह, उन लोगों का है, जिन्हें डर लगा रहता है कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा.
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प्रोफ़ेसर मैकनैली के मुताबिक,

 पहले समूह के लोगों में आमतौर पर वैसी स्थितियों में घबराहट की एक हिस्ट्री होती है, जिनसे निकल पाना उन्हें असुविधाजनक या कठिन लगता है, जैसे कि सबवे, विमान या भीड़ भरी दुकानें. दूसरा समूह उन लोगों का है, जो विमान दुर्घटनाओं को लेकर कई किस्म की ग़लत मान्यताओं से ग्रसित होते हैं, लेकिन एक बार विमान में बैठने के बाद, उड़ान 13 घंटे की हो या 20 घंटे की, ये बात उतनी मायने नहीं रखती.
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आगे बताया,

विमान में बैठने के बाद डर से पीड़ित लोगों की घबराहट या चिंता कम होने लगती है क्योंकि जिन चीज़ों का डर (Health Impacts Of Flights) रहता है वे नहीं घटतीं. घबराहट का दौरा भी अपने आप में ख़तरनाक नहीं है और वो ख़ुद-ब-ख़ुद काफ़ुर हो जाता है.
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वैसे इस तरह के मामलों के लिए थेरेपी और दवाएं भी हैं. आप डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं. लंबी यात्राओं में फ़िलहाल स्रोत और गंतव्य के बीच कम से कम एक स्टॉप तो होता ही है.

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शारीरिक सेहत पर असर

बेहद लंबी उड़ान हो या लंबी उड़ान, दोनों का एक बड़ा शारीरिक साइड इफ़ेक्ट है- जेट लैग. जेट लैग तब होता है जब व्यक्ति दो या उससे अधिक टाइम ज़ोन को पार करता है. ये आपकी सिरकाडियन रिदम यानी शरीर की आंतरिक घड़ी को गड़बड़ा देता है, नींद नहीं आती, याद्दाश्त में परेशानी और ध्यान भटकने जैसी समस्याएं होती हैं.

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कोलोन के यूनिवर्सिटी अस्पताल में इमरजेंसी मेडिसन के प्रोफ़ेसर और जर्मन सोसायटी फ़ॉर एयरोस्पेस मेडिसन के उपाध्यक्ष, योखेन हिनकेलबाएन कहते हैं कि,

टाइम ज़ोन के हर घंटे के अंतर को सामान्य करने में एक दिन लग सकता है. यानि टाइम ज़ोन में 7 घंटे का अंतर हो तो शरीर को तालमेल बिठाने में 7 दिन लग सकते हैं.
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वापसी की उड़ान में ये स्थिति और बिगड़ सकती है. छोटी सी समयावधि में कई सारे टाइम ज़ोन को पार करना होता है. हिनकेलबाइन कहते हैं कि,

तभी आपका जगने और सोने का समय चक्र ‘पूरी तरह गड़बड़ हो जाता है.’ ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) की सिफ़ारिश के मुताबिक, नये टाइम ज़ोन में आते ही, जितना जल्दी संभव हो सके, आपको अपनी नींद का समय बदल लेना चाहिए और दिन के समय बाहर निकलना चाहिए क्योंकि स्वाभाविक या प्राकृतिक प्रकाश, उस जगह के लिहाज़ से ढलने में आपकी मदद करता है.
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विमान में ऑक्सीजन की सप्लाई

विमान में ऑक्सीजन की मात्रा उतनी ही होती है जितनी ज़मीन पर, लेकिन जब आप ऊंचाई में उड़ान भर रहे होते हैं तो केबिन में वायु-दबाव का असर, ख़ून में ऑक्सीजन के सोखे जाने पर पड़ता है. ख़ून में ऑक्सीजन का लेवल 95-100 फ़ीसदी होना चाहिए, लेकिन हवा में ये गिर सकता है. अधिकांश स्वस्थ लोगों के लिए ये कोई समस्या नहीं है. लेकिन अगर आपको दमा या सीओपीडी यानी श्वास संबंधी तकलीफ़ है, तो इसका मतलब आप कमतर ब्लड ऑक्सीजन के साथ ही विमान पर चढ़ रहे होते हैं और उड़ान के दौरान वो लेवल और गिर जाता है.

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हिनकेलबाइन कहते हैं,

सीओपीडी के मरीज़ का ज़मीन पर ब्लड ऑक्सीजन 92% हो सकता है और विमान में वो 70% तक गिर सकता है. ब्लड ऑक्सीजन में गिरावट से हाइपोएक्सेमिया हो सकता है. इससे सिरदर्द हो सकता है, सांस लेने में मुश्किल आ सकती है, दिल की धड़कन बढ़ सकती है, खांसी हो सकती है, दिमाग़ चकरा सकता है और त्वचा, नाखून और होंठ नीले पड़ सकते हैं.
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उड़ान के दौरान व्यायाम

क्वान्ट्स का कहना है कि,

उसके नए बेहद लंबी उड़ान वाले विमानों में इकॉनमी और प्रीमियम इकॉनमी क्लासों में और चौड़ी-खुली सीटें होंगी. विमान के बीचों-बीच एक ‘वेलबींग ज़ोन’ भी होगा, जहां लोग अपने पांव सीधे कर पाएंगे. ख़ून के जमने या डीप वेन थ्रोम्बोसिस जैसी स्वास्थ्य समस्या से बचने के लिए मूवमेंट यानी हरकत में रहना ज़रूरी है. ख़ून के थक्के तो अपने आप ग़ायब हो जाते हैं, लेकिन थक्के का कोई हिस्सा टूटकर फेफड़ों की ओर चला जाए तो वो ख़ून का रास्ता रोक सकता है, इसे पल्मोनरी एम्बोलिज़्म (Pulmonary Embolism) कहते हैं जो जानलेवा भी हो सकता है.
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अमेरिकी रोग नियंत्रण और बचाव केंद्र (सीडीसी) का कहना है कि,

व्यक्ति जितनी देर स्थिर और गतिहीन रहेगा, उतना ही ज़्यादा ख़तरा, ख़ून के जमने और डीप वेन थ्रोम्बोसिस का होगा. सीडीसी के मुताबिक, उम्र के साथ ये ख़तरा बढ़ता जाता है- जैसे कि 40 साल के ऊपर. दूसरे ख़तरे भी होते हैं जैसे कि मोटापा, ताजा सर्जरी या चोट, एस्ट्रोजन वाली गर्भ निरोधक गोलियां, हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, गर्भावस्था या बच्चे का जन्म, कैंसर या उसका ताजा इलाज, और नसों में सूजन.
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उड़ान में स्वस्थ कैसे रहें

एयरोस्पेस मेडिसन एक्सपर्ट योखेन हिनकेलबाएन उड़ान के दौरान स्वस्थ रहने के लिए कुछ बुनियादी बातें बताते हैं. पहले, अगर आपको पहले से कोई स्वास्थ्य समस्या है तो आपको उड़ान से पहले अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए और रोज़मर्रा की दवा लेने के बारे में एक योजना बनानी चाहिए.

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टाइम ज़ोन बदलने से सामान्य रूटीन गड़बड़ा (Health Impacts Of Flights) सकता है, इसलिए जिस शहर से आप निकल रहे हैं, उसके समय के बारे में पता रहना ज़रूरी है. दूसरी बात, हर दो घंटे बाद फ़्लाइट में ज़रूर उठना चाहिए. साथ ही, हर घंटे क़रीब 100 मिलीलीटर पानी पीना ही चाहिए, उससे आप हाइड्रेट रहेंगे यानी आपके शरीर में पानी बना रहेगा और आप उठकर टॉयलेट भी जाएंगे.