मसूर, तूअर, उड़द, चना ये सभी हमारे यहां मिलने वाली कुछ दालों के नाम हैं. दाल का नाम सुनते ही ज़ेहन में लज़ीज तड़के वाली दाल की तस्वीर बन जाती है. ऐसा हो भी क्यों न दाल हम भारतीयों की फ़ेवरेट डिश जो है. पर जिस दाल को आप बड़े ही चाव से खाते हैं, क्या आप उसका इतिहास भी जानते हैं. नहीं चलिए आज आपको बताते हैं कि हर घर में बनने वाली दाल हमारे खाने का हिस्सा कब और कैसे बनी?

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आपको जानकर हैरानी होगी की दाल हमारे खाने का हिस्सा सिंधु घाटी सभ्यता के ज़माने से ही है. कभी इन्हें सूखी फलियां कहा जाता था और लोग इसे ग़रीबों का खाना कहा करते थे. चना, मटर जैसी दालों के पहले साक्ष्य हरियाणा की घग्गर वैली में मिले थे. ये हड़प्पा संस्कृति से जुड़ा एक पुरातात्विक स्थल है. 

वक़्त के साथ दाल के प्रति लोगों का नज़रिया बदला और इसे एक स्टेट्स सिंबल यानी अमीरों का भोजन कहा जाने लगा. पुराने ज़माने में राजा-महाराजा के घरों में दाल किसी मेहमान के आने पर बनाई जाती थी. 

चंद्रगुप्त मौर्य की शादी में भी बनी थी दाल

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चंद्रगुप्त मौर्य के समय में इसके कई साक्ष्य मौजूद हैं. ऐसा कहा जाता है कि 300 BC में चंद्रगुप्त मौर्य की शादी में भी दाल को घूघनी के रूप में बनाया गया था. ये पूर्वी भारत के लोगों की शादियों में मनाई जाने वाली सैंकड़ों साल पुरानी परंपरा है. 

दाल को अलग-अलग तरह से बनाने को लेकर भी पहले से ही प्रयोग होते रहे हैं. मध्यकालीन भारत में दाल शाही व्यंजन थी. तब इसे दम पुख्त नाम की विधि द्वारा बनाया जाता था. इस प्रक्रिया में दाल को भांप की मदद से धीरे-धीरे पकाया जाता था. 

चने की दाल को प्राप्त था शाही भोजन का दर्जा

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तब राजा के सामने हमेशा चना दाल ही परोसी जाती थी. इसे शाही भोजन का दर्जा प्राप्त हो गया था. कहते हैं कि अगर राजा के सामने कोई अन्य दाल परोस दी जाती थी, तो उस खानसामा को सज़ा-ए-मौत दी जाती थी. 

मुग़ल काल में भी दाल को पसंद किया जाता था. रानी जोधाबाई की रसोई में पंचमेल दाल बनाई जाती थी, जिसमें पांच तरह की दालों का इस्तेमाल होता था. शाहजहां के समय में भी शाही पंचमेल दाल बनाई जाती थी.  

मुरादाबादी दाल का दिलचस्प किस्सा

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एक और दाल है जिसकी दिलचस्प कहानी है, वो है मुरादाबादी दाल. शाहजहां के तीसरे राजकुमार मोरद बक्श ने मूंग दाल के साथ एक प्रयोग किया था. उन्होंने मूंग दाल को पांच घंटे तक पकाया और फिर उस में प्याज़ और हरी मिर्च का तड़का लगाया था. यही दाल आगे चलकर मुरादाबादी दाल के नाम से फ़ेमस हुई.

समय के साथ पूरे देश में दाल को अलग-अलग मसालों और तड़कों के साथ बनाया जाने लगा. इसलिए आज तक़रीबन हर राज्य की अपनी एक स्पेशल दाल की रेसिपी मौजूद है. 16वीं सदी में गुजरात में दाल से वड़ा, पकौड़े और खांडवी बनाई जाती थी, जो आज इस राज्य की पहचान बन गए हैं. कुंदन गुजराल द्वारा खोजी गई दाल मखनी का नाम तो आपने सुना ही होगा. ये उत्तर भारत की फ़ेमस दाल है. 

नॉन-वेजिटेरियन्स के लिए स्पेशल दाल

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अगर आपको लगता है कि दाल सिर्फ़ वेजिटेरियन्स का भोजन है, तो आप ग़लत हैं. पश्चिम बंगाल में दाल को मछली के साथ बनाया जाता है. वहां इसे पंच फोरन कहा जाता है. नॉन-वेजिटेरियन्स को हैदराबाद और बोहरा समुदाय के लोगों द्वारा बनाई जाने वाली दाल गोश्त ज़रूर ट्राई करनी चाहिए.

इतिहासकारों का मानना है कि दाल के स्वाद और उसके अलग-अलग नाम वक़्त और समय के हिसाब से ढलते गए. क्योंकि ये शाही व्यंजन का हिस्सा जो बन गए थे. आने वाले समय में भी दाल हमारे भोजन का मुख्य हिस्सा बनी रहेगी.

अब जब दाल की हिस्ट्री जान ही ली है, तो क्यों न इन्हीं में से कोई दाल आज बनाई जाए?