हम भारतीयों को चटपटा और तीखा खाना बहुत पसंद है. तभी तो यहां कि हर गली में आपको वहां के किसी न किसी फ़ेमस स्ट्रीट फ़ूड का लुत्फ़ उठाते लोग दिखाई दे जाएंगे. इंडियन्स का ऐसा ही एक फ़ेवरेट स्ट्रीट फ़ूड है कचौड़ी, जिसे देश के कोने-कोने में बड़े ही चाव से खाया जाता है.

आज हम आपको कचौड़ी के इतिहास से जुड़ी टेस्टी राइड पर लेकर जाएंगे.

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कचौड़ी का इतिहास सदियों पुराना है. इसका इतिहास जुड़ा है मारवाड़ियों से. वैसे तो इसके कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं, लेकिन अधिकतर लोगों का यही मानना है कि इसकी खोज मारवाड़ यानी राजस्थान में ही हुई थी

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इसकी एक वजह कचौड़ी को बनाए जाने का तरीका है. मारवाड़ी लोग सीमित संसाधनों में भी गज़ब की रेसिपी या फू़ूड आइटम बनाने में माहिर होते हैं. इसलिए उन्होंने ही धनिया, हल्दी, सौंफ आदि से इसे बनाना शुरू किया था. इन तीनों मसालों को ठंडे मसाले में वर्गीकृत किया जाता है. ये मसाले हमारे शरीर को इस क्षेत्र के मौसम की मार से बचाने में सक्षम माने जाते हैं.

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इसका सबसे अच्छा उदाहरण जोधपुर की मोगर कचौड़ी जिसे किसी भी सीज़न में बड़ी ही आसानी से बनाया जा सकता है. प्राचीन व्यापार मार्ग मारवाड़ से होकर गुज़रता था. इसलिए वहां के बाज़ारों से निकलकर ये व्यापारियों के माध्य्म से पूरे देश में फैल गई. इसका स्वाद अब लोगों की ज़ुबां पर ऐसा चढ़ गया है कि बहुत से लोगों का ये फ़ेवरेट स्नैक बन गया है.

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अब तो देश के हरेक राज्य में अलग-अलग नाम और प्रकार की कचौड़ियां चखने को मिलती हैं. इनमें राज कचौड़ी, मावा कचौड़ी, प्याज़ कचौड़ी, नागौरी कचौड़ी, बनारसी कचौड़ी, हींग कचौड़ी आदि के नाम शामिल हैं.

तो अगली बार जब कचौड़ी खाना तो मारवाड़ियों को थैंक्स कहना न भूलना.

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