जब ये गाना आया तो हम सूरज बड़जात्या को बहुत गरियाए. ऐसा फर्जी गाना कौन फ़िल्म में लेता है. भला कबूतर कोई पोस्ट मैन की औलाद लगा है, जो चिट्ठियां पहुंचाकर कपल की सेटिंग करवा देगा. मगर मेरा बचपन और मैं दोनों ग़लत थे. सच तो ये ही है कि कबूतर सदियों से चिट्ठियां पहुंचाने का काम करते रहे हैं.
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जिस ज़माने में वाट्सएप तो छोड़िये, डाकिये तक नहीं थे. उस वक़्त घुड़सवार चिट्ठियां लेकर जाते थे. लेकिन ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बीच में दुश्मनों के डर के कारण काम मुश्किल था. फिर इसमें टाइम भी ज्यादा लगता है. ऐसे में लोगो को इस काम के लिये कबूतर सबसे मुफ़ीद लगा. ये तरीक़ा काम भी कर गया. मगर सवाल ये है कि कबूतर ही क्यों, तोता-कौआ और भी तमाम पक्षी हैं. लेकिन उन्हें छोड़कर सिर्फ़ कबूरत को ही चिट्ठियां पहुंचाने क्यों चुना गया?
अपना रास्ता खोजने की अदभुत क्षमता के लिये जाने जाते हैं कबूतर
होमिंग कबूतर (Homing pigeons), ये कबूतरों की एक ख़ास प्रजाति है. इनमें रास्ता खोजने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है. इनकी विशेषता है कि ये हमेशा घर वापस लौटते हैं. रिसर्च में भी सामने आया कि कबूतरों को दिशाओं का बहुत अच्छा ज्ञान होता है. ऐसे में कबूतर को कहीं भी छोड़ दिया जाए, वो वापस घर लौट आता है.
वहीं, पक्षियों में मैग्निटो रिसेप्शन स्किल पाई जाती है. इसकी मदद से वो बख़ूबी अंदाज़ा लगा पाते हैं कि वो धरती पर कहां हैं. इसी का इस्तेमाल कर कबूतर भी धरती के किसी भी कोने से घर वापस लौट आता है. ये भी माना जाता है कि कबूतर सूर्य की स्थिति और कोण का उपयोग करके अपने घर का रास्ता खोज सकते हैं. ऐसे में लोग कबूतरों को इस काम के लिये पालने लगे. वो उनके पैर पर चिट्ठी बांधकर उड़ा देते. फिर कबूतर चिट्ठी पहुंचाकर वापस घर आ जाता.
स्पीड ने बनाया इस काम के लिये परफ़्केट
इस काम में कबूतरों की स्पीड ने उन्हें परफ़ेक्ट बना दिया. कबूतर लगभग 80 से 90 किमी की रफ़्तार से उड़ सकते हैं. साथ ही, एक दिन में हज़ार किमी का सफ़र तय कर सकते हैं. वहीं, 6 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर भी उड़ सकते हैं. उनकी इन ख़ास बातों के चलते ही कबूतरों को चिट्ठी पहुंचाने के लिये सबसे मुफ़ीद माना गया.
भारत में आज भी इन कबूतरों से भेजा जाता है मैसेज
बता दें, आज भी ओडिशा पुलिस इनका इस्तेमाल तूफ़ान और चक्रवात के वक़्त संदेश पहुंचाने के लिये करती है.