Train Brake System : वाहनों में ब्रेक का क्या महत्व होता है ये सभी लोग जानते हैं. लेकिन, जब हम ट्रेन की बात करते हैं, तो इसका ब्रेक सिस्टम आम वाहनों की तुलना में काफ़ी अलग होता है. आम वाहनों की तरह ट्रेन का ड्राइवर किसी भी वक़्त सडन ब्रेक नहीं लगा सकता है. उसे ब्रेक लगाते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना होता है. वहीं, कई बार ट्रेन का ब्रेक अपने आप यानी ऑटोमेटिक लग जाता है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? 

हमारे साथ जानिए Train Brake System से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी. 

हमेशा लगा रहता है ट्रेन का ब्रेक 

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आम वाहनों में आपको ब्रेक लगाना होता है, लेकिन Train Brake System इससे थोड़ा अलग है. दरअसल, ट्रेन का ब्रेक हमेशा लगा रही रहता है. ड्राइवर को जब ट्रेन चलानी होती है, तब वो ब्रेक हटा देता है. जब ट्रेन चलानी होती है, तो एयर प्रेशर के ज़रिए ब्रेक को टायर से हटाकर रखा जाता है, वहीं, जब ट्रेन को रोकना होता है, तब एयर प्रेशर बंद कर दिया जाता है. इसलिए, आपने गौर किया होगा, जब ट्रेन रुकती है, तो एयर प्रेशर रिलीज़ होने की आवाज़ आती है. 

डेड मैन स्विच  

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ट्रेन को चलाना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, क्योंकि एक छोटी-सी चूक हज़ारों लोगों की मौत का कारण बन सकती है. इसलिए, ड्राइवर को हमेशा एक्टिव रहना होता है. लेकिन, क्या हो, अगर ट्रेन के ड्राइवर को नींद आ जाए या किसी कारण वो बेहोश हो जाए, तब ट्रेन का ब्रेक कैसे लगेगा? दोस्तों, जैसा कि हमने पहले बताया कि ट्रेन एक बड़ी ज़िम्मेदारी होती है, इसलिए इस स्थिति से निपटने के लिए पहले ही सोच लिया गया था. 

दरअसल, ट्रेन के इंजन में ‘डेड मैन स्विच’ या डेड मैन लिवर होता है, जिसे कुछ मिनट के अंतराल में लोको पायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर को दबाना होता है. ट्रेन को चलाए रखने के लिए इस स्विच का समय-समय पर दबाना ज़रूरी है. ये स्विच ये बताता है कि ट्रेन का ड्राइवर एक्टिव है, लेकिन अगर ट्रेन का ड्राइवर सो जाए या किसी अन्य कारण से वो इस ‘डेड मैन स्विच’ को नहीं दबाता है, तो ट्रेन का ब्रेक अपने आप यानी ऑटोमेटिक लग जाएगा और ट्रेन रुक जाएगी. 

कब लोकोपायलट लगाता है ब्रेक?  

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ट्रेन का ब्रेक लगाना लोको पायलट के हाथों में नहीं होता है उसे ट्रेन के गार्ड और सिग्नल के आधार पर ब्रेक लगाना होता है. इंजन में बैठे ड्राइवर और गार्ड ही ब्रेक लगाने का फैसला लेते हैं. वहीं, अगर हम ट्रेन के सिग्नल की बात करें, तो वो तीन प्रकार के होते हैं. एक हरा, दूसरा पीला और तीसरा लाल. हरा सिग्नल यानी लोकोपायलट को अपनी ही रफ़्तार पर चलना है, पीला सिग्नल यानी ड्राइवर को रफ़्तार धीमी करनी पड़ती है और लाल सिग्नल पर ट्रेन का रोकना होता है. 

ड्राइवर कब इमरजेंसी ब्रेक लगाता है? 

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इमरजेंसी यानी आपातकाल की स्थिति. अगर चलती ट्रेन के दौरान अगर कोई इमरजेंसी की स्थिति बनती है, तो ड्राइवर को इमरजेंसी ब्रेक लगाना होता है. इमरजेंसी स्थिति जैसे पुल का टूटना, जानवरों का बड़ा झूंड या लोगों की भीड़ या अन्य कोई गाड़ी से जुड़ा तकनीकी मसला. इमरजेंसी ब्रेक लगाते ही ब्रेक पाइप का पूरा प्रेशर ख़त्म हो जाता है और रेलगाड़ी के चक्कों पर लगा ब्रेक-शू पूरी ताक़त के साथ चक्के से रगड़ खाने लग जाते हैं. लेकिन, फिर भी ट्रेन कई मीटर की दूरी पर जाकर ही रुकती है.

वहीं, अगर कोई जानवर या व्यक्ति अचानक से ट्रेन के सामने आ जाए, तो ड्राइवर ब्रेक नहीं लगाता है, क्योंकि ब्रेक लगाने के बाद भी ट्रेन कई मीटर दूर जाकर ही रुकती है और ऐसे में टक्कर होनी ही होनी है. साथ ही अचानक ब्रेक लगाने से बड़ी दुर्घटना भी घट सकती है.  

चेन पुलिंग 

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ये सुविधा रेल यात्रियों के लिए होती है कि अगर ट्रेन के अंदर कोई ऐसी स्थिति घट जाए, जिससे ट्रेन रोकनी पड़े, तो चेन पुलिंग की जा सकती है. अलार्म चेन खींचते ही अलार्म वॉल्व में दिए गए चेक के ज़रिए ब्रेक पाइप से हवा का प्रेशर बाहर निकलता है और रेल का ब्रेक लग जाता है. ब्रेक लगते ही हवा का प्रेशर कम होने लगता है इससे ड्राइवर को हूटिंग सिग्नल मिल जाता है और वो ट्रेन को रोकने के कारण का पता करता है.  

उम्मीद करते हैं कि Train Brake System से जुड़ी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी. विषय से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए आप कमेंट बॉक्स की मदद ले सकते हैं.