दुनिया के हर इंसान के लिए ‘खाने-पीने’ के साथ ही सोना (Sleep) भी बेहद ज़रूरी है. मानव शरीर के लिए ये तीनों ही चीज़ें बराबर मायने रखती हैं. शरीर को मज़बूत बनाने के लिए जिस तरह से ‘खाना और पीना’ बेहद ज़रूरी है ठीक उसी तरह शरीर को तंदुरस्त रखने के लिए ‘सोना’ भी उतना ही ज़रूरी है. सोना हमारे मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बेहद आवश्यक है. इंसान बिना खाये 2 माह तक, जबकि बिना पानी पिये 7 से 10 दिन तक ज़िंदा रह सकता है, लेकिन सोने के मामले में ऐसा नहीं है.

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डॉक्टरों के मुताबिक़, हर इंसान को प्रतिदिन 8 घंटे की नींद अवश्य लेनी चाहिए. नींद पूरी नहीं होने से दिल की बीमारियां, इम्यून सिस्टम का कमज़ोर होना, ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क, हार्मोनल समस्याएं और निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है. नींद पूरी नहीं होने से दिमाग़ को आराम नहीं मिल पाता और इंसान तनाव, गुस्सा और डिप्रेशन में चला जाता है. इस दौरान सिर का भारी होना और सिर में तेज़ दर्द होना इसका मुख्य लक्षण है.

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बिना सोये कितने दिन तक ज़िंदा रह सकता है इंसान?

हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो कोई भी स्वस्थ्य इंसान केवल 2 से 3 दिन ही बिना सोये ठीक से रह सकता है. चौथे से 5वें दिन के बीच इंसान बेचैनी महसूस करने लगता है. 5वें से 11वें दिन के बीच बेचैनी इस कदर बढ़ जाती है कि इंसान पागलों की तरह हरकत करने लगता है. वो ज़ोर ज़ोर से चीखने और चिल्लाने लगता है. अगर कोई इंसान लगातार 12 दिन तक नहीं सोता है तो उसकी मौत हो सकती है.

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The Russian Sleep Experiment

इंसान बिना सोये (Sleep) कितने दिनों तक ज़िंदा रह सकता है इसका पता लगाने के लिए सन 1940 में ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के दौरान सोवियत संघ (रूस) ने 5 युद्ध बंदियों पर एक प्रयोग किया था. इसके तहत इन पांचों क़ैदियों को 30 दिन तक एक कमरे में बंद करके रखना था और शर्त ये थी कि जो भी 30 दिन तक जगता रहा उसे आज़ाद कर दिया जायेगा, लेकिन इस एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट बेहद भयानक था.

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कैसे किया गया था एक्सपेरिमेंट?

इस एक्सपेरिमेंट के तहत इन 5 क़ैदियों को एक बड़े से कमरे में रखा गया था. इस कमरे में उनको खाने, पीने और पढ़ने से लेकर हर तरह की सुविधाएं दी गई थीं, लेकिन उनके सोने या बैठने की कोई व्यस्था नहीं थी. इन क़ैदियों को जिस कमरे में रखा गया उसमें दो वन वे विजन वाले शीशे भी लगाये गये थे ताकि उन पर नज़र रखी जा सके. इस दौरान कैदियों को नींद ना आए इसके लिए थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद उस कमरे में एक ‘एक्सपेरिमेंटल गैस’ भी छोड़ी जाती थी.

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क्या था एक्सपेरिमेंट का नतीजा?

इस दौरान शुरुआत के 2-3 दिनों तक तो क़ैदियों में कोई बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिला, लेकिन 5वें दिन के बाद से क़ैदियों में बेचैनी बढ़ने लगी. 9वें दिन तक आते-आते सभी क़ैदी पागलों की तरह चिल्लाने लगे थे. इस दौरान वो इतनी ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते थे कि इनमें से कुछ की ‘वोकल कॉर्ड’ तक फट चुकी थी. ये क़ैदी अजीब-ग़रीब तरह से चिल्लाते और मन ही मन बड़बड़ाने लगते थे. 10वें दिन बाद क़ैदियों का कमरा पूरी तरह से शांत हो गया.

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इस दौरान रिसर्च टीम ने जब एक क़ैदी से बात करनी चाही तो उसने ने मना कर दिया और बोला की वो आज़ाद नहीं होना चाहता, बल्कि मरना चाहता है. ये सुनकर जब रिसर्च टीम कमरे के अंदर गई तो उन्होने देखा कि कमरे में चारों तरफ़ खून और मांस के लोथड़े पड़े हुए थे. जो खाना कैदियों को दिया गया था वो खाना उन्होनें छुआ तक नहीं था. इस दौरान सारे क़ैदी बुरी तरह लहूलुहान थे और वो एक दूसरे के मांस के टुकड़े खा रहे थे.

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ये नज़ारा देख रिसर्च टीम के होश उड़ गए और उन्होंने सभी क़ैदियों को तुरंत बाहर निकाला. इस दौरान 2 क़ैदी बाहर आने को तैयार ही नहीं थे. इस दौरान बड़ी मुश्किल से उन क़ैदियों को मार्फिन के 8 इंजेक्शन लगा कर काबू में किया गया. लेकिन इलाज़ के दौरान 3 क़ैदियों की मौत हो गई जबकि बाकी दो क़ैदियों को वापस उसी कमरे में बंद कर दिया गया. 

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इतना सब कुछ होने के बावजूद भी चीफ़ कमांडर इस एक्सपेरिमेंट को जारी रखना चाहता था. इसलिए उसने 3 रिसर्चर की एक टीम को उन बचे हुए 2 क़ैदियों के साथ रखा ताकि वो इनपर नज़र रख सकें. लेकिन दोनों क़ैदियों की हरकतों की वजह से एक रिसर्चर बहुत बुरी तरह डर गया और उसने बाकी दोनों क़ैदियों को गोली मार दी. इस घटना के बाद ये एक्सपेरिमेंट रोक दिया गया. 

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साल 2009 में इस एक्सपेरिमेंट की पूरी जानकारी Creepypasta Wiki वेबसाइट में प्रकाशितहुई थी. हालांकि, रूस ने ऐसे किसी भी एक्सपेरिमेंट के दावे को ख़ारिज़ कर दिया था.

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