मध्य प्रदेश का शहर इंदौर… रानी अहिल्याबाई की नगरी कुछ सालों से सुर्खियों में बनी ही हुई है, वजह सबसे साफ़-सुथरे शहर का ख़िताब. ग़ैर-इंदौरी, इंदौर को एक और वजह से जानते हैं और वो है यहां के मशहूर ‘पोहे’ के लिए. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ये दोनों एक दूसरे के बिना सूने लगते हैं, सिर्फ़ पोहा कहो तो लगता है कुछ तो छूट गया है!
माना कि पोहा भी कई अलग फ़्लेवर्स में आता है, इसमें कई तरह की चीज़ें डाली जाती हैं. कहीं ये ज़्यादा मिठा बनता है, तो कहीं मिठा-नमकीन. जो भी कह लो इंदौरी पोहा, जलेबी और बढ़िया सी चाय मिल जाए तो पूरा दिन बन जाए!
लेकिन क्या कभी दिमाग़ में ये सवाल आया कि कैसे ये सिंपल, सफ़ेद पोहे इंदौर की पहचान का अहम हिस्सा बन गए? आख़िर कैसे पोहे ने इंदौरियों की थाली में पर्मानेंट जगह बना ली?
पौराणिक कथाओं में पोहे का उल्लेख
पोहे का उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी हुआ है. Economic Times की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसका वर्णन कृष्ण और सुदामा की कहानी में मिलता है. कहते हैं कि जब सुदामा अपने अमीर और राजसी दोस्त कृष्ण से मिलने गये थे तो वो अपने साथ पोहा लेकर गए थे.
विदेश भी पहुंचा संगमरमर सा सफ़ेद पोहा
Cornflakes के आविष्कार से काफ़ी पहले पोहा विदेश पहुंच चुका था. जब अंग्रेज़ भारत आए तो उन्हें आसानी से पकने वाला एक अनाज मिला और ये सैनिकों के लिए काफ़ी कामग़र साबित हुआ. Times of India ने 1846 के अंक में छापा था कि जब भी बॉम्बे (अब मुंबई) से जहाज़ के ज़रिए सैनिक भेजे जाते उनके साथ पोहे के बोरे भी भेजे जाते. इसी अख़बर के 1878 अंक में छापा गया कि साइप्रस में कुछ सिपाही घर वापस जाने के लिए पोहे की मांग कर रहे थे और उन्हें डिटेन किया गया था.
यूं बना मध्य प्रदेश और ख़ासतौर पर इंदौर का अहम नाश्ता
Knock Sense की रिपोर्ट की मानें तो पोहा महाराष्ट्र की देन है. होल्कर और सिंधिया के शासनकाल में ये लोगों के बीच काफ़ी मशहूर हुआ. जब ये शासक महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश आए तो अपने साथ पोहा ले आए. होल्करों ने इंदौर पर राज किया और पोहा, श्रीखंड यहां का अहम हिस्सा बन गये. इंदौर के लिए पोहा बाहरी राजाओं का तोहफ़ा था. हालांकि, इंदौर में बनने वाला पोहे और महाराष्ट्र में बनने वाले पोहे कि विधि अलग है. महाराष्ट्र में पोहा प्याज़, टमाटर और मसालों के साथ बनाया जाता है. वहीं इंदौर में इसमें नमकीन और मशहूर इंदौरी सेव मिलाया जाता है. इस वजह से इस डिश को मिलती है एक अलग पहचान. इस तरह ‘पोहा’ इंदौर पहुंचा और इंदौरियों का ही होकर रह गया.
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