Indian Railways Seats Allocation: इंडियन रेलवे की शुरूआत 6 मई, 1836 को ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी. भारतीय रेलवे का इतिहास आज 186 साल पुराना हो चुका है. इंडियन रेलवे की पहली ट्रेन 19वीं सदी में चलाई गई थी. क़रीब 1,15,000 किमी में फ़ैले अपने विशाल नेटवर्क के साथ भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में से एक है. इंडियन रेलवे आज दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क बन चुका है. भारत में हर रोज क़रीब ढाई करोड़ यात्री ट्रेन में सफ़र करते हैं. भारत के 7349 स्टेशनों से रोजाना 20 हज़ार से अधिक यात्री ट्रेनें और 7 हज़ार से अधिक मालगाड़ियां चलती हैं.

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आज हम आपको इंडियन रेलवे की टिकटिंग प्रणाली के बारे में बताने जा रहे हैं कि आख़िर IRCTC पैसेंजर्स को सीट चुनने की अनुमति (Indian Railways Seats Allocation) क्यों नहीं देता- 

भारतीय रेलवे (Indian Railways) की हज़ारों ट्रेनें रोजाना यात्रियों को उनकी मंज़िल तक पहुंचाती हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन में रिजर्वेशन या टिकट बुक कराते समय मनचाही सीट क्यों नहीं सेलेक्ट कर पाते? यात्रा के दौरान हमें रेलवे की ओर से जो सीट मुहैया कराई जाती है, उसी में सफर करना पड़ता है. आख़िर सिनेमाहॉल की तरह हम ट्रेन में भी अपनी मनचाही सीट बुक क्यों नहीं कर सकते हैं?

Indian Railways Seats Allocation

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दरअसल, इसके पीछे रेलवे का विज्ञान छिपा हुआ है. ट्रेन में रिजर्वेशन करना सिनेमाहॉल में सीट बुक करने से एकदम अलग होता है. क्योंकि थियेटर एक कमरे की तरह होता है, जबकि ट्रेन एक चलती फिरती गाड़ी है. इंडियन रेलवे की ट्रेनों में सुरक्षा सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है. लिहाजा रेलवे के बुकिंग सॉफ़्टवेयर को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि ये सॉफ़्टवेयर इस तरह से टिकट बुक करेगा ताकि ट्रेन में समान रूप से लोड बांटा जा सके.

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कैसे होती है सीट की बुकिंग? 

अगर किसी ट्रेन में S1, S2, S3, S4, S5, S6, S7, S8, S9 और S10 नंबर वाले स्लीपर कोच हैं तो इसका मतलब सभी कोच में 72-72 सीटें होंगी. इस दौरान जब कोई ट्रेन में पहली बार टिकट बुक करेगा, तो सॉफ़्टवेयर सबसे पहले बीच के कोच में 1 सीट आवंटित करेगा. उदाहरण के तौर पर कोच में S5, 30-40 नंबर की कोई एक सीट मिलेगी. इसके अलावा रेलवे पहले ‘लोअर बर्थ’ को बुक करता है, ताकि ट्रेन को गुरुत्वाकर्षण केंद्र कम मिले.

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अंत में बुक होती है अपर बर्थ 

इंडियन रेलवे (Indian Railway) का सॉफ़्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है ताकि सभी कोचों में एक समान यात्री हों. इस दौरान ट्रेन में सीटों की बुकिंग बीच की सीटों 36 से शुरू होकर गेट के पास की सीटों 1-2 या 71-72 से ‘निचली बर्थ’ से ‘ऊपरी बर्थ’ तक जाती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि ट्रेन का संतुलन बना रहे और सभी कोच पर समान भार पड़े. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान अंत में टिकट बुक करने वाले लोगों को ‘अपर बर्थ’ आवंटित की जाती है. 

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अगर IRCTC द्वारा इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना बढ़ जाती है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं- अगर S1, S2, S3 पूरी तरह से भरे हुए हैं और S5, S6, S7 पूरी तरह से खाली हैं. जबकि अन्य कोच आंशिक रूप से भरे हैं तो ऐसे में जब ट्रेन मोड़ लेती है, तो कुछ डिब्बों को Centrifugal Force का सामना करना पड़ता है तो कुछ को नहीं. इस स्थिति में ट्रेन के पहिए पटरी से उतर की संभावना 100 % बढ़ जाती है.

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यही वजह है कि इंडियन रेलवे (Indian Railway) पैसेंजर्स को ट्रेन में सीट चुनने की अनुमति नहीं देती है.

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