गोलगप्पे, पानीपूरी, पुचका, बताशे… किसी भी नाम से बुलाओ इन्हें मगर टेस्ट और फ़ीलिंग एक ही आती है. चाहे पेट भरा हो या फिर खाने का मूड न हो पानी के बताशे खाने के लिए किसी से भी पूछो मना नहीं कह पाएगा. भारत की हर गली-नुक्कड़ पर इस स्ट्रीट फ़ूड/स्नैक के ठेले लगे मिल जाएंगे.
लेकिन जिस पानीपूरी को आप बड़े ही चाव से गप्प कर जाते हैं, क्या आप उसका इतिहास जानते हैं? तो पेश है जनाब गोलगप्पे लवर्स के लिए इसका इतिहास फ़ुल प्लेट नहीं-फ़ुल डिटेल्स के साथ.
गोलगप्पे का आविष्कार किसने किया इसे लेकर कई कहानियां हैं. वो सभी हम आपको बताते हैं. पहली कहानी महाभारत से जुड़ी है. जब पांडव वनवास काट रहे थे तब उन्हें बहुत कम ही संसाधनों के साथ गुज़र-बसर करना होता था. ऐसे में कुंती माता ने अपनी नववधू द्रौपदी की परीक्षा लेनी चाही.
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उन्होंने द्रौपदी को बची हुई आलू की सब्ज़ी और एक पूरी का आटा दिया और कहा कि कुछ ऐसा बनाओ की जिससे पांचों पुत्रों की भूख शांत हो जाए. द्रौपदी ने तब जो सामग्री मौजूद थी उससे पानी पूरी तैयार कर सबको खिलाई. ये सभी को बहुत पसंद आई. कहते हैं तभी से ही पुचका यानी गोलगप्पा हमारे खाने का हिस्सा बन गया.
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दूसरी कहानियां इतिहास से जुड़ी हैं. इतिहासकारों का कहना है कि पानीपूरी की खोज 16 महाजनपदों (संस्कृत में महान साम्राज्य) में से एक मगध में हुई थी. मगर वो शख़्स जिसने इसकी खोज की वो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया. इतिहासकार पुष्पेश पंत मानते हैं कि गोलगप्पे की खोज भारत में 120-130 साल पहले हुई होगी.
इसके पीछे वो ये तर्क देते हैं कि भारत में आलू और मिर्च 300-400 साल पहले आए थे. इसकी खोज बिहार या उत्तर प्रदेश में हुई होगी. वो ये भी कहते हैं कि इसका आविष्कार राज कचौरी को देख किया गया हो. किसी ने छोटी सी पूरी बना कर खाई होगी और बन गया होगा गोलगप्पा.
तो टेस्टी और टैंगी गोलगप्पों का ये इतिहास आपको कैसा लगा?