जलन या ईर्ष्या एक ऐसा भाव है जो हमारे सोचने समझने की शक्ति को ख़त्म कर देती है. भले ही हमको अंदर से पता होता है कि ईर्ष्या करने से कुछ हासिल नहीं होगा.     

लोगों को जलन कब होती है? जब लोगों को लगता है कि बाक़ी लोग उनसे बेहतर है. जब उन्हें लगता है कि उनके पास वो चीज़ नहीं है जो दूसरों के पास है. कई बार डर भी जलन का कारण होता है. जलन एक ऐसी चीज़ है, जो उन्हें अंदर से खोखला बना देती है. क्योंकि हम उस समय सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हैं. जलन आपके और लोगों के बीच में एक अनदेखी दीवार खड़ी कर देता है. क्योंकि सामने वालों के पास कुछ ऐसा है जो आपको चाहिए होता है तो आपको उसकी ख़ुशी भी अच्छी नहीं लगती है. 

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जलन हर उम्र का व्यक्ति महसूस करता है. बच्चों में जलन तब होती है जब वो किसी और को अपने खिलौने से खेलता देखते हैं या उन्हें लगता है मम्मी-पापा और को प्यार करते हैं. वहीं बड़े लोगों में नौकरी से लेकर पार्टनर तक हर स्तर पर कभी न कभी जलन हो ही जाती है.   

जलन एक ऐसी चीज़ है जिस पर अधिकतर लोगों को बस नहीं होता है. साइंस का भी यही मानना है कि जलन वास्तव में आपके दिमाग़ के साथ करता है छेड़-छाड़. 

जैसे ही आपको जलन होती है तो दिमाग के दो हिस्से, एक जो लोगों से मिले दर्द और चोट दूसरा जो बॉन्डिंग में मदद करते हैं उनमें हलचल मच जाती है. ऐसे में दिमाग़ स्ट्रेस पैदा करने वाले रसयानों का रिसाव होता है जो हमें और नकारात्मक सोचने पर मज़बूर कर देते हैं. 

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साइंटिस्ट का कहना है कि जलन वास्तव में हमारे दिमाग़ के लिए अच्छा नहीं होता है तो बेहद ज़रूरी है कि हम इस भाव से निपटना भी सीखें. इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपनी बातें ख़ुल कर कहें. ख़ुद पर थोड़ा ज़्यादा भरोसा रखें. हमेशा जानने की कोशिश करें कि आख़िर मेरी जलन की असली वज़ह है क्या. 

तो अगली बार आप को किसी से जलन हो तो रुक कर सोचिएगा ज़रूर क्योंकि ये भाव न केवल मानसिक तौर पर बल्कि निज़ी तौर पर भी आपको हानि पहुंचा सकता है.