2001 की बात है. नापाक इरादों वाले आतंकियों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन पर हमला बोल दिया था. हमले में संसद भवन के चिथड़े उड़ सकते थे. पर एक वीरांगना की बदलौत आतंकी अपने मक़सद में कायमाब न हो सके. युद्ध के मैदान में अपनी जान की कुर्बानी देकर जाबांज़ सिपाही ने संसद भवन को बचा लिया.
दुश्मन सेना की वर्दी में आया था. इसलिये वो सभी को चकमा देने में कामयाब रहे, लेकिन महिला कांस्टेबल को उन पर संदेह हुआ. क़िस्मत देखिये उस दिन कमलेश के पास को हथियार नहीं था. आतंकी संसद के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. तभी जाबांज़ सिपाही ने वॉकी-टॉकी से कांस्टेबल सुखविंदर को सचेत करना शुरू दिया. महिला सिपाही के चिल्लाने पर चारों ओर अफ़रा-तफ़री मच गई. तभी आतंकियों ने कमलेश कुमारी के सीने पर 11 गोलियां दाग़ दीं.
कमलेश कुमारी के चिल्लाने पर कांस्टेबल सुखविंदर ने जल्दी से संसद भवन का गेट बंद कर लिया. इसके बाद लगभग सेना और आतंकियों के बीच 45 मिनट तक लड़ाई चलती रही है. वो कहते हैं न कि किसी सिपाही की शहादत बर्बाद नहीं जाती. कमलेश कुमारी की भी नहीं गई. इस मुठभेड़ में 11 गोलियां खा कर वो शहीद हो गईं, देश और उसके मंदिर को बचा गईं.
संसद हमले के आरोपी अफ़ज़ल गुरु को कोर्ट ने फ़ांसी की सज़ा सुनाई और कमलेश कुमारी को उनकी कर्तव्यनिष्ठा के लिये अशोक चक्र से नवाज़ा गया. इसी के साथ वो ये सम्मान पाने वाली देश की पहली महिला कांस्टेबल बन गईं. कमलेश कुमारी की याद में उनके गांव सिकंदपुर में स्मारक स्थल भी बनाया गया. उनकी दो बेटियां थीं. कमलेश एक छोटे से परिवार में ख़ुशहाली की ज़िंदगी जी रही थीं, लेकिन जब देश पर बात आई तो अपने कर्म को सबसे ऊपर रखा.
महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी की इस बहादुरी के लिये देशवासी हमेशा उनके कर्ज़दार रहेंगे. सच में कमलेश जैसी वीरांगनाएं बहुत ही कम होती हैं.