‘सादा जीवन, उच्च विचार’… ये कहावत 21वीं सदी में फ़िट नहीं बैठती है. इसके पीछे का प्रमुख कारण है पैसा. इंसान आज सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसों के पीछे भाग रहा है, लेकिन इस देश में एक ऐसा इंसान भी है जो क़ाबिल होने के बावजूद धन-दौलत की इस मोह माया से ख़ुद को कोसों दूर रखता है.  

newindianexpress

ये भी पढ़ें- अंतरिक्ष की दुनिया से लोगों को रू-ब-रू करवा रहा ये शख़्स कभी साइबर कैफ़े में करता था पढ़ाई

साहिब! मेरे पास दिल्ली आने के पैसे नहीं हैं कृपया पुरस्कार (पद्मश्री) डाक से भिजवा दीजिए. ये बात कहने वाले शख़्स थे साल 2016 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार से ‘पद्मश्री पुरस्कार’ पाने वाले ओड़िशा के मशहूर लोक कवि हलधर नाग.

shiveshpratap

आइए जानते हैं आख़िर ऐसी क्या ख़ास बात है हलधर नाग की? 

5 साल पहले की बात है. सफ़ेद धोती, गमछा और बनियान पहने हलधर नाग जब नंगे पांव राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से ‘पद्मश्री पुरस्कार’ ग्रहण करने पहुंचे, तो उन्हें देखकर हर किसी की आखें फटी की फटी रह गई थी. इस दौरान देश के न्यूज़ चैनलों पर इस बात की बहस चल रही थी कि आख़िर एक काबिल इंसान ऐसा जीवन जीने को क्यों मजबूर है   

wikipedia

कौन हैं हलधर नाग? 

ओडिशा के रहने वाले 71 वर्षीय हलधर नाग ‘कोसली भाषा’ के प्रसिद्ध कवि हैं. इनका जन्म सन 1950 में ओडिशा के बारगढ़ ज़िले के एक ग़रीब परिवार में हुआ था. महज 10 साल की उम्र में मां-बाप का देहांत होने के बाद उन्होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी. अनाथ की ज़िंदगी जीते हुये एक ढाबा में जूठे बर्तन साफ़ कर कई साल गुज़ारे.  

oneindia

इसके बाद हलधर नाग ने 16 साल तक एक स्थानीय स्कूल में बावर्ची के रूप में काम किया. कुछ साल बाद उन्होंने बैंक से 1000 रुपये क़र्ज़ लेकर स्कूल के सामने ही कॉपी, किताब, पेन और पेंसिल आदि की एक छोटी सी दुकान खोल ली. इससे वो कई सालों तक अपना गुज़रा करते रहे. इस दौरान वो कुछ न कुछ लिखते ही रहते थे और उन्होंने अपने लिखने के इस शौक़ को मरने नहीं दिया.  

oneindia

ये भी पढ़ें- एक ज़माने का नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन आज रिक्शा चलाने को है मजबूर, जानिए क्यों?

सन 1990 में हलधर नाग ने अपनी पहली कविता ‘धोडो बरगच’ (द ओल्ड बनयान ट्री) लिखी. इस कविता के साथ उन्होंने अपनी 4 अन्य कविताएं एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा और उनकी सभी रचनाएं प्रकाशित हुई. इसके बाद उनके लिखने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है.

sambadenglish

नाग कहते हैं ‘ये मेरे लिए बड़े सम्मान की बात थी और इस वाक़ये ने ही मुझे और अधिक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद मैंने अपने आस-पास के गांवों में जाकर लोगों अपनी कविताएं सुनानी शुरू की. इस दौरान मुझे लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली’.  

odishabytes

आज तक जो कुछ भी लिखा है वो सब याद है

हलधर नाग की सबसे ख़ास बात ये है कि उन्होंने आज तक 20 महाकाव्य के अलावा जितनी भी कविताएं लिखी हैं, वो सभी उन्हें ज़ुबानी याद हैं. वो जो कुछ भी लिखते हैं, उसे याद कर लेते हैं. आपको बस कविता का नाम या विषय बताने की ज़रूरत है. आज भी उन्हें अपने द्वारा लिखे एक-एक शब्द याद हैं.  

businesskhabar

ये भी पढ़ें- कौन था वो ट्रक ड्राइवर जिसने मिल्खा सिंह को हरा कर जीता था गोल्ड, जानना चाहते हो?

नाग कहते हैंः मुझे इस बात की ख़ुशी है कि युवा पीढ़ी ‘कोसली भाषा’ में लिखी गई कविताओं में खासा दिलचस्पी रखता है. मेरे विचार में कविता का वास्तविक जीवन से जुड़ाव और उसमें एक समाजिक सन्देश का होना बेहद आवश्यक है’.  

ओडिशा में ‘लोक कवि रत्न’ के नाम से मशहूर हलधर नाग की कविताओं के विषय ज़्यादातर प्रकृति, समाज, पौराणिक कथाओं और धर्म पर आधारित होते हैं. वो अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने की ओर भी तत्पर रहते हैं. 

bhartiyadharohar

बता दें आज हलधर नाग किसी पहचान के मोहताज़ नहीं हैं. ओडिशा के ‘संबलपुर विश्वविद्यालय’ में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है.