दिल्ली का ‘चांदनी चौक’ इलाका अपने इतिहास के लिए मशहूर है. ये वो इलाका है जो आज भी 20वीं सदी के दिल्ली को अपने में समाये हुये है. चांदनी चौक की तंग गालियां और मशहूर पुरानी हवेलियां इस जगह को ख़ास बनाती हैं. 19वीं सदी से ही ‘चांदनी चौक’ शॉपिंग का प्रमुख केंद्र रहा है. इतना ही नहीं ये अपने स्वादिष्ट खाने के लिए भी काफ़ी मशहूर है. यहां पर आपको आज भी कई दुकानें ऐसी मिल जाएंगी जो विंटेज चांदनी चौक के स्वाद से खाने-पीने के शौकीनों को मालामाल कर देती हैं. यही वजह है कि देश-विदेश से लोग खाने-पीने के लिए यहां दौड़े चले आते हैं. चांदनी चौक की कई दुकानें तो ऐसी भी हैं जो 100 साल से भी अधिक पुरानी हैं. इन्हीं में से एक 116 साल पुरानी कुरेमल मोहनलाल कुल्फ़ी वाले की दुकान भी है.  

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चलिए जानते हैं 100 साल से अधिक पुरानी कुल्फ़ी की इस मशहूर दुकान की शुरुआत कैसे हुई और ये आज भी इतनी मशहूर क्यों है?

बात सन 1906 की है. चांदनी चौक से सटे चावड़ी बाज़ार इलाके में हरियाणा के झज्जर से करोड़ीमल नाम के दूधवाले अंग्रेज़ों के घरों में दूध, दही और देसी घी बेचने आया करते थे. इस दौरान वो महीने में 15 दिन दिल्ली आया करते थे. सामान देकर वो शाम को अपने गांव पलड़ा (झज्जर) वापस चले जाते थे. करोड़ीमल ने ऐसा क़रीब 5 सालों तक किया. इस दौरान दिल्ली में करोड़ीमल को ‘कुरे’ के नाम से जाना जाने लगा. ‘कुरेमल कुल्फी वाला’ नाम ऐसे ही पड़ा. करोड़ीमल ने सन 1910 तक चांदनी चौक और चावड़ी बाज़ार इलाके में गांव से आकर दूध, दही और घी बेचा. (Kuremal Mohanlal Kulfi Wale)

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Kuremal Mohanlal Kulfi Wale

करोड़ीमल ने इसके बाद अपने चाचा माईराम के साथ चावड़ी बाज़ार इलाक़े में एक छोटी सी दुकान किराये पर लेकर पहले रबड़ी बनानी शुरू की. इसके बाद कुल्फी बनाने का काम भी शुरू कर दिया. इस दौरान वो दिल्ली के में चांदनी चौक से लेकर सदर बाज़ार की सड़कों पर सिर में लकड़ी की पेटी रखकर कुल्फी बेचते थे. वो हर रोज 2 तरह की क़रीब 50 कुल्फी बनाते थे. इस दौरान करोड़ीमल का बाकी परिवार गांव में ही रहता था लेकिन बेटा मोहनलाल उनके साथ दिल्ली में ही रहता था. मोहनलाल पढ़ाई के बाद अपने पिता से कुल्फ़ी बनाने और बेचने की बारीकियों सीखी और 2 तरह की कुल्फी से 15 तरह की कुल्फी बनाने लगे.

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कैसे पड़ा ‘कुरेमल मोहनलाल कुल्फ़ी वाले’ नाम 

सन 1930 के दशक तक करोड़ीमल दिल्ली में ‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ के नाम से मशहूर हो गये. सन 1940 के दशक में करोड़ीमल के निधन के बाद बेटे मोहनलाल पूरा कारोबार खुद ही संभालने लगे. इस दौरान किराये की एक दुकान थी, जिसमें कुल्फ़ी बनाते और बेचते थे. व्यवसाय बढ़ने लगा तो मोहनलाल ने किराये पर एक और दुकान ले ली. सन 1970 के आसपास मोहनलाल के निधन के बाद उनके बेटे व्यवसाय में लग गये. सन 1982 में मोहनलाल के बड़े बेटे 10वीं पास करने के बाद व्यवसाय में लग गये. इसके बाद 1990 के आसपास छोटे बेटे अनिल शर्मा भी इस काम से जुड़ गये.  

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क्या ख़ासियत है ‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ की?

आज ‘कुरेमल मोहनलाल कुल्फ़ी वाले’ क़रीब 50 से 60 तरह की कुल्फ़ियां बनाते हैं. लेकिन जिस चीज़ के लिए ‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ मशहूर हैं वो है इनकी ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’. दिल्ली में शायद ही कहीं ऐसी कुल्फ़ियां बनती हों, जो यहां बनती हैं. दिल्ली में आज ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ कुरेमल का ट्रेडमार्क बन चुका है. सुबह से लेकर श्याम तक ‘कुरेमल’ की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है. (Kuremal Mohanlal Kulfi Wale)

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कैसे बनाते हैं ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ 

‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ के यहां वैसे तो कई तरह की कुल्फ़ियां मिलती हैं, लेकिन यहां की ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ सबसे ज़्यादा मशहूर हैं. ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ का मतलब है फ़्रूट के अंदर कुल्फ़ी. इसे बनाने के लिए पहले फलों का बीज, गूदा और गुठली निकाल लिया जाता है फिर उसके अंदर अलग-अलग फ़्लेवर की कुल्फ़ी डाल देते हैं. इसके बाद इसे फ़्रीज़र में डाल देते हैं. इस दौरान ग्राहक को जिस भी फ़्लेवर की कुल्फ़ी खानी हो वो यहां हर वक़्त उपलब्ध रहती है. इसमें ‘संतरे’, ‘सेब’, ‘अनार’, ‘शरीफे’, ‘चीकू’ और ‘अमरूद’ की कुल्फियां शामिल हैं.

कितने रुपये की मिलती है 1 कुल्फ़ी? 

‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ के यहां साधारण कुल्फ़ी 60 रुपये की, जबकि ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ 200 रुपये की मिलती है. इसे 2 लोग आराम से मिलकर खा सकते हैं. यहां की ‘फ़्रूट स्टफ़ कुल्फ़ी’ तो मशहूर हैं ही, इसके अलावा ‘कुरेमल’ की सबसे पुरानी और सबसे ज़्यादा बिकने वाली कुल्फ़ी ‘केसर पिस्ता’ और ‘नमक-मसाले’ वाली कुल्फ़ी है. इसके अलावा ‘अनार’, ‘फ़ालसा’, ‘जामुन’ कुल्फ़ी भी काफ़ी मशहूर हैं. (Kuremal Mohanlal Kulfi Wale)

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आज करोड़ीमल की चौथी पीढ़ी इस पुश्तैनी व्यवसाय को संभाल रही है. वर्तमान में ‘कुरेमल कुल्फ़ी वाले’ के मालिक 50 वर्षीय अनिल शर्मा अपने दादा के कारोबार को जिंदा रखे हुये हैं. लेकिन अब कारोबार इनके बच्चे यानी चौथी पीढ़ी भी संभाल रही है. आज ‘चावड़ी बाज़ार’ के अलावा ‘बंगाली मार्किट’, ‘हौज़ ख़ास’ और ‘प्रशांत विहार’ में भी इनकी दुकानें हैं. इसके अलावा शादी व्याह में भी इसे सर्विस देते हैं. (Kuremal Mohanlal Kulfi Wale)

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आज कुरेमल की ‘कुल्फ़ी’ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी काफ़ी मशहूर है.

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