टाटा ग्रुप की उदारता और दान-धर्म से तो हम सब वाक़िफ़ हैं. देश हो या उनकी कंपनी का कोई शख़्स जब भी मुसीबत में पड़ा है टाटा ग्पुर ने उसे अपने हाथों से संभाला है. लेकिन एक समय ऐसा भी था अरबों ख़रबों का धान धर्म कर चुकी ये कंपनी भी बुरे दौर से गुज़री थी, जब ये कंपनी आर्थिक रूप से कंगाल हो गई थी. ऐसे में एक महिला थीं, जिन्होंने इस कंपनी को आर्थिक तंगी से बचाकर दोबारा उभारा था.

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वो महिला लेडी मेहरबाई टाटा थीं. इन्होंने ही टाटा स्टील कंपनी (Tata Group) को आज ऊंचाइयों के शिखर पर पहुंचाया है. इनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. इन्हें पहली भारतीय नारीवादी प्रतीकों (First Indian Feminist Icons) में से एक माना जाता है. लेडी मेहरबाई टाटा उस दौर से बहुत आगे की सोच वाली महिला थीं, उन्होंने बाल विवाह उन्मूलन से लेकर महिला मताधिकार तक और लड़कियों की शिक्षा से लेकर पर्दा प्रथा तक को हटाने की पुरजोर कोशिश भी की थी.

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हरीश भट्ट ने अपनी नई बुक TataStories: 40 Timeless Tales To Inspire You में बताया है, कैसे ‘लेडी मेहरबाई टाटा’ ने इस नामी गिरामी कंपनी को बचाया था. लेडी मेहरबाई टाटा जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं. दोराबजी टाटा उनके लिए लंदन के व्यापारियों से 245.35 कैरेट जुबली हीरा ख़रीदकर लाए थे, जो कि कोहिनूर (105.6 कैरेट, कट) से दोगुना बड़ा था. 1900 के दशक में इसकी क़ीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी. ये बेशक़ीमती हार लेडी मेहरबाई किसी स्पेशल मौक़ों पर ही पहनते थीं, लेकिन साल 1924 में परिस्थितियों ने ऐसी करवट लीं कि लेडी मेहरबाई ने इसे गिरवी रखने का फ़ैसला किया.

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दरअसल, उस समय टाटा स्टील आर्थिक संकट के चलते अपने कंपनी के कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हो गई थी, तभी लेडी मेहरबाई कंपनी और टाटा परिवार के सम्मान को बचाने के लिए आगे आईं. फिर उन्होंने कंपनी के कर्मचारी और कंपनी को बचाने के लिए जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दी ताकि टाटा स्टील को बचाने के लिए फ़ंड जुट सके. काफ़ी लंबे समय के बाद, कंपनी ने रिटर्न देना शुरू किया और स्थिति में सुधार आने लगा.

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हरीश भट्ट अपनी क़िताब में बताते हैं कि गहन संघर्ष के उस समय में एक भी कार्यकर्ता की छंटनी नहीं की गई थी और ये लेडी मेहरबाई टाटा की वजह से ही संभव हो सका था. 

टाटा समूह के अनुसार,

लेडी मेहरबाई टाटा का ये हीरा सर दोराबजी टाटा की मृत्यु के बाद सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना के लिए बेचा गया था. इसके अलावा 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम में लेडी मेहरबाई टाटा भी सलाहकार थीं, उन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इसके लिए सक्रिय रूप से प्रचार-प्रसार किया था.
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लेडी मेहरबाई टाटा टेनिस में इतनी माहिर थीं कि उन्होंने टेनिस टूर्नामेंट में 60 से अधिक पुरस्कार जीते थे. इसके अलावा ओलंपिक टेनिस खेलने वाली भी वो पहली भारतीय महिला थीं. उनके बारे में दिलचस्प बात ये है कि वो सारे टेनिस मैच पारसी साड़ी पहनकर खेलती थीं. अक्सर उन्हें और उनके पति को विंबलडन के सेंटर कोर्ट में टेनिस मैच देखते हुए देखा जाता था.

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टेनिस ही नहीं वो एक बेहतरीन घुड़सवार होने के साथ-साथ कुशल पियानो वादक भी थीं. 1912 में जेपेलिन एयरशिप पर सवार होने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं.

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आपको बता दें, लेडी मेहरबाई टाटा राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा थीं, उन्होंने 1930 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के लिए समान राजनीतिक स्थिति की मांग की. लेडी मेहरबाई टाटा भारत में भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसीडेंसी महिला परिषद की संस्थापकों में से एक थीं. लेडी मेहरबाई के नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में भी शामिल किया गया था.