आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं भारतीय मूल की एक महिला से, जिसने लन्दन के लोगों का परिचय भारतीय स्वाद से कराया. इस महिला का नाम है मधुर जाफ़री और वो अब 84 साल की हैं. जी हां, अगर मधुर जाफ़री लन्दन में ड्रामा आर्ट का अध्यन करते हुए इंडियन फ़्लेवर को वहां के लोगों को न चखाती तो शायद दुनिया कभी भारतीय स्वाद को जान ही नहीं पाती.
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Hindustantimes की रिपोर्ट के अनुसार, इस वक़्त मधुर जाफ़री 84 वर्ष की हो चुकी हैं. कुछ दिनों पहले जाफ़री Tasting India Symposium इवेंट में शामिल होने के लिए राजधानी दिल्ली में मौजूद थीं. इस साल इस इवेंट की थीम थी भारतीय पाक कला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना. और जाहिर सी बात है कि इस इवेंट के लिए ब्रांड एंबेसडर के लिए मधुर जाफ़री, जो टेस्टिंग इंडिया के निदेशक मंडल में भी शामिल हैं, के अलावा और कोई हो ही नहीं सकता.
जब ‘आधुनिक भारतीय’ और ‘दुनिया के सामने भारतीय भोजन परोसना’ फ़ैशन हो गया है, तब जाफ़री मानती हैं कि हम सबका फ़ोकस हमेशा इंडियन फ़ूड और इसकी विविधता पर होना चाहिए.
वो कहती हैं कि ‘आधुनिक भारतीय भोजन को जैसा समझा जाता है, वो एक प्रयोग है, वो असली भोजन नहीं है.’ इसके साथ ही उनका ये भी कहना है कि इन दिनों इंडियन फ़ूड में कई तरह के एक्सपेरिमेंट किये जा रहे हैं और अगर इसमें बदलाव करना है, तो ऑर्गैनिक रूप से करने चाहिए, ना कि सिर्फ इसलिए लिए कि हमें इसे वेस्टर्न कल्चर के डिनर के रूप में पेश करना है.
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जाफ़री का मानना है कि भारतीय भोजन को विदेशों में व्यापक रूप से स्वीकार्यता और सराहना, विशेष रूप से अमेरिका में अभी तक नहीं मिली है. हां आने वाले समय में इमली चलन में आ जायेगी, और कुछ समय बाद शेफ़्स जीरा की जगह किसी दूसरी चीज़ का इस्तेमाल करने लगेंगे.
मधुर जाफ़री ने दुनिया को खासतौर पर यूनाइटेड किंगडम के लोगों को ये बात बताई है कि बाल्टी में परोसे जाना भोजन ही भारतीय भोजन नहीं नहीं है. और इसके लिए उन्होंने टेलीविज़न के माध्यम से अलग-अलग शोज़ में भारतीय पारम्परिक व्यंजनों को बनाने की विधि को बताया. साथ ही भारतीय भोजन के बारे में अपनी कुकिंग बुक्स में लिख कर किया. उनकी रेसिपी बुक्स में आपको इंडियन फ़ूड का ऑथेंटिक टेस्ट दिखाई देगा.
आपको बता दें कि भारतीय भोजन के लिए उनका प्यार बचपन से है. बचपन की याद को ताज़ा करते हुए वो बताती हैं कि उनका बचपन पुरानी दिल्ली में एक संयुक्त कायस्थ परिवार में गुज़रा है, और वहीं से उनको अपने भारतीय भोजन का स्वाद मिला और वो उन्हीं अनुभवों को हमेशा याद करती हैं. उस वक़्त पुरानी दिल्ली में जब मशरूम का सीज़न हुआ करता था, तो उससे एक स्वादिष्ट पकवान बनता था. घर के पुरुष पहले खाते थे और उनके खाने के बाद केवल शोरवा ही बचता था मगर वो भी बहुत ही स्वादिष्ट होता था. इतना स्वादिष्ट कि उंगली चाटते रह जाओ.
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वो बताती हैं कि वेजिटेरियन फ़ेयर के प्रति उनकी उत्सुकता उनके परिवार की परम्परा से ही आयी है, जहां की औरतें कभी कभार ही मीट खाती थीं, वो ज़्यादातर मौसमी सब्ज़ियां बेहद ही साधारण तरीके से बनाती थी, मगर उनका स्वाद लाजवाब होता था.
जब जाफ़री पढ़ाई करने के लिए लन्दन के Royal Academy Of Dramatic Art में गयीं, तब उनको घर के खाने के स्वाद की कमी बुरी तरह महसूस हुई. वहां के फ़ूड चार्ट में इंडियन डिशेज़ का नाम तक नहीं था, बल्कि वहां के इंडियन रेस्टोरेंट्स में जो खाना मिलता था वो बहुत ही भयानक था. उनको याद है कि एक बार अपनी मां को चिट्ठी लिखते हुए उन्होंने कुछ व्यंजनों की रेसिपी मांगी थी ताकि वो खुद अपने लिए खाना बना सकें. उनकी मां ने Airmail Letters के जरिये हींग-जीरे के आलू, गोभी आलू, खड़े मसाले का गोश्त बनाने की 3 स्टेप रेसिपी लिखकर भेजी. ये वाक्या 1950 के शुरूआती दिनों का है. रेसिपी मिलने के बाद जाफ़री ने अपने लिए खाना बनाना शुरू कर दिया. इसके बाद वो जब अपने अभिनेत्री बनने के सपने और करियर को बढ़ाने के लिए न्यूयॉर्क गई तो वहां भी अपनी इस पाक कला को अपने साथ ले गयीं.
जब वो एक कलाकार की तरह ज़िन्दगी बिता रहीं थीं, तब वो अपने दोस्तों और साथी कलाकारों को अपने हाथ का खाना बना कर खिलाती थीं. उनको न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखक क्रेग क्लेबॉर्न द्वारा इस्माइल मर्चेंट के नाम से पेश किया गया था. क्रेग क्लेबॉर्न ने अपने एक आर्टिकल में लिखा कि ये एक ऐसी अभिनेत्री है जिसे खाना पकाना बहुत पसंद है. उसके बाद जाफ़री से एक फ़्रीलांसर एडिटर ने संपर्क किया और उनसे पूछा कि क्या वो एक इंडियन कुकरी किताब लिखना चाहती हैं.
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आखिरकार, यह प्रोजेक्ट जूलिया चाइल्ड के एडिटर Judith Jones Of Knopf को मिला. ये Jones ही थे जिन्होंने जाफ़री की बुक को An Invitation To Indian Cooking टाइटल दिया और ये बुक आज भी इंडियन कुक बुक्स में एक जाना-माना नाम है.
हालांकि, उन्होंने बतौर शेफ़ कोई प्रोफ़ेशनल ट्रेनिंग कभी नहीं ली और कभी-कभी वो चाहती थीं कि उनको भी Professional Knife Skills सीखने का मौक़ा मिले. वो बताती हैं कि ‘मैं एक गृहस्थ महिला की तरह ही चाकू का इस्तेमाल करती हूं.’ लेकिन जब बात लिखने की आती है तो मैं सटीक साइज और शेप के बारे में बता सकती हूं.’
अभी तक दर्जनभर से ज़्यादा कुकबुक लिख चुकी जाफ़री फिलहाल एक ऐसी कुकबुक के लिए रिसर्च कर रहीं है, जिसमें वो भारतीय किचेन से स्वास्थ्यवर्धक रेसिपी लेकर आएंगी.
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अपनी किताबों के अलावा, बहुत से टीवी शोज़ से उन्होंने वैश्विक स्तर पर जीत हासिल की है. वो बताती हैं कि जब 1982 में बीबीसी ने उन्हें एक शो में इंडियन फ़ूड के बारे में बात करने के लिए बुलाया था, तब वहां बहुत सारे तरह-तरह के दिशा-निर्देश थे. मुझे बताया गया था कि बिना हींग के खाना बनाना होगा. मैंने सारे दिशा-निर्देशों का पालन किया और तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मुझे लोगों को इंडियन फ़ूड और स्वाद और यहां के मसालों के बारे में बताना चाहिए. मैं चाहती हूं कि लोग पोहा के बारे में जाने, साथ ही भारत के हर कोने में लोग कैसे खाने को स्वास्थ्य के नज़रिये से खाते और पकाते हैं.
निश्चित तौर पर जाफ़री ने भारतीय व्यंजनों को दुनिया के बाकी हिस्सों में भारतीयों के लिए सुलभ बनाने के लिए किसी से भी ज़्यादा काम किया है, और इसलिए उनको भारतीय पाककला की रानी के रूप में जाना जाता है. यहां तक कि वो खुद कहती हैं कि कोई भी सचमुच नहीं कह सकता कि उन्होंने भारतीय व्यंजनों में महारत हासिल की है. जब मैं इंडिया आती हूं, मैं हमेशा तरह-तरह के नए इंग्रीडियंट्स और व्यंजनों के बारे में जानकारी हासिल करती हूं. हाल ही में मुझको Plump Mushrooms के बारे में पता चला जो कूर्ग में पाए जाते हैं. उनको भून कर नमक और नीबूं लगाकर व्हिस्की के साथ परोसा जाता है.’
इंडियन फ़ूड के बारे में हर तरह की जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत ट्रेवल किया है. इंडियन फ़ूड की रेसीपी को शूट करने के लिए वो विदेशों की लोकेशन का चुनाव करती हैं, ताकि वहां के लोग उससे कनेक्ट कर पाएं.
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हालांकि ऐसा लगता है कि जाफ़री अपना अधिकतर समय भोजन के इर्द-गिर्द बिताती हैं, मगर फिर भी वो अभी भी एक अभिनेत्री हैं, यहां तक कि अभी भी वो एक्टिंग के रोल्स के लिए ऑडिशन देती हैं. कला के प्रति उनके प्यार का पता तब चलता है जब वो अपने अभिनय करियर के शुरुआती सालों के बारे में बोलती हैं, खासतौर पर इस्माइल मर्चेंट के साथ उनका सम्बन्ध जिसमें उन्होंने शेक्सपियर वालह बनाया और जिसके लिए उन्हें 1965 में बर्लिन इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला.
शशि कपूर उनके पहले सह-कलाकार थे. वो भी मर्चेंट ही थे, जिन्होंने उनसे पूछा था कि वह एक राजकुमारी की आत्मकथा में किसके साथ काम करना चाहती हैं, तब जाफ़री ने कहा था कि ‘ओलिवियर’. हांलाकि वो रोल James Mason को दिया गया था, ना कि शशिकपूर को.
तो दोस्तों अब आपको पता चल ही गया होगा कि कैसे भारतीय मूल की एक अदाकारा ने भारतीय पकवानों और पाककला को विदेशियों तक पहुंचाया.