मॉडर्न साइंस ने बेशक हमें बीमारियों के इलाज के नए तरीके दिए हैं, लेकिन उनके साइड ​इफैक्ट्स होते हैं. वहीं इलाज के प्राकृतिक तरीके अपनाने पर उनके साइड ​इफैक्ट का खतरा कम होता है.

1. कीड़ों से इलाज

पिनवर्म कहे जाने वाले इन कीड़ों के भीतर बहुत छोटे परजीवी होते हैं. पिन के बराबर लंबे पिनवर्मों का इस्तेमाल बैक्टीरिया से संक्रमित घाव को ठीक करने में किया जाता है. लेकिन इस्तेमाल से पहले इन कीड़ों को डिसइंफेक्ट करना जरूरी होता है.

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2. जोंक की लार

बहुत ज्यादा नमी वाली जगह पर पाई जाने वाली जोंक का इस्तेमाल त्वचा की बीमारियों और रक्त प्रवाह को दुरुस्त करने के लिए किया जाता है. जब चोट के कारण किसी बाहरी अंग में खून की सप्लाई बंद हो जाए तो जोंक काम करती है. उसमें खून को खींचने की ताकत होती है. जोंक की लार खून का थक्का भी नहीं बनने देती है.

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3. मछलियों का असर

इलाज में मछलियों को इस्तेमाल कई जगहों पर होता है. दक्षिण भारत में जिंदा मछली खिलाकर दमे का इलाज किया जाता है. वहीं कुछ जगहों पर पैरों के रोगों से लड़ने के लिए गारा रुफा नामकी मछलियों का इस्तेमाल किया जाता है.

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4. मिट्टी का फायदा

गंधक वाले गर्म कुंड या मिट्टी का इस्तेमाल त्वचा की सेहत के लिए किया जाता है. भारत समेत कई देशों में उबटन इसी का उदाहरण है. मिट्टी जोड़ों के दर्द और त्वचा की रघड़ में भी आराम देती है.

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5. एक और कीड़ा

सांप सा दिखने वाला व्हिपवर्म करीब पांच सेंटीमीटर लंबा होता है. आम तौर पर इसके डंक से इंसान बीमार हो जाता है या उसे तेज दर्द होता है. लेकिन डॉक्टरों की निगरानी में इस कीड़े का इस्तेमाल रोग प्रतिरोधी तंत्र की बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है.

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6. खूबसूरत लेवेंडर

हल्के बैंगनी फूल वाले लेवेंडर पौधे का इस्तेमाल सिर्फ साबुन या परफ्यूम में ही नहीं किया जाता है. इस पौधे से वीसीएस निकाला जाता है. यह सिर, गले और छाती के दर्द में बड़ा आराम पहुंचाता है. लेवेंडर का इस्तेमाल अनिद्रा को ठीक करने में भी किया जाता है.

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7. हवा का असर

स्वच्छ हवा भी सांस संबंधी बीमारियों का इलाज करती है. पहाड़ों और समुद्र तट की हवा इंसान की सेहत के लिए हमेशा बेहतरीन होती है. स्वच्छ हवा नाक में नमी बरकरार रखने में मदद करती है.

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