उत्कृष्ट जल संरक्षण और वास्तुकला का नमूना होती हैं बावड़ियां. जयपुर की ‘पन्ना मीना बावड़ी’ भी इन्हीं में से एक है. इसे ‘पन्ना मीना कुंड’ के नाम से भी जाना जाता है. ये बावड़ी न केवल इतिहास प्रेमियों बल्कि आज की युवा पीढ़ी के बीच भी बेहद पॉपुलर है. ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ लगभग 1000 साल पुरानी इस बावड़ी की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर भी ख़ूब छाई रहती हैं.

चलिए आज जानते हैं ऐसी क्या ख़ास बात है इस बावड़ी की, जिसे एक बार घूम आने की सलाह दी जाती है-
1- पन्ना मीना की बावड़ी का इतिहास
ये बावड़ी जयपुर के आमेर शहर में है. इसे क़रीब 1000 साल पहले मीणा राजवंश के लोगों ने बनवाया था. कहते हैं कि पन्ना मीणा एक महान योद्धा थे. आमेर के राजाओं ने पन्ना मीणा को धोखे से मार कर यहां पर अपना राज स्थापित किया था.

इस बावड़ी के बारे में ये भी कहा जाता है कि इसे महाराजा जयसिंह के शासन काल में बनाया गया था. उनके दरबार में पन्ना मीणा नाम का एक बेहद ईमानदार सेवक हुआ करता था. उसके सेवा भाव से प्रसन्न होकर राजा ने इस बावड़ी को उसके नाम पर बनवाया था.
2- इस बावड़ी में तक़रीबन 1800 सीढ़ियां हैं

ये बावड़ी 8 मंज़िला है और इसके तीनों तरफ़ तक़रीबन 1800 सीढ़ियां बनी हैं. इसकी गहराई 200 फ़ीट है. रियासत कालीन कारिगरी का बेजोड़ नमूना है ये बावड़ी. यहां दूर-दूर से सैलानी इसके बैकग्राउंड में सुंदर-सुंदर तस्वीरें क्लिक करने आते हैं.

3- पानी का मुख्य स्त्रोत
ये बावड़ी जयपुर रेलवे स्टेशन से 11 किलो और बड़ी चौपड़ मेट्रो स्टेशन से 9.2 किलोमीटर दूर है. पन्ना मीना की बावड़ी ‘जयगढ़ के क़िले’ और ‘आमेर क़िले’ के बीच स्थित है. कभी ये आस-पास के इलाके़े के लोगों के पानी का मुख्य स्त्रोत हुआ करती थी. यहां से इन दोनों ही ऐतिहासिक धरोहरों की सुरमयी पिक्चर्स क्लिक की जा सकती हैं.

इसकी सबसे ख़ास बात ये है कि यहां राजस्थान की फ़ेमस चांद बवाड़ी की तरह ज़्यादा रोक-टोक नहीं है. मतलब आप आराम से ख़ूबसूरत तस्वीरें खींच सकते हैं, सनराइज और सनसेट का मज़ा ले सकते हैं. इसकी एंट्री भी मुफ़्त है.

‘पन्ना मीना की बावड़ी’ में घूमने के बाद आपको प्राचीन काल में पहुंच जाने का एहसास होगा.