हम सब जानते हैं कि समाज में सुन्दर दिखने की एक परिभाषा है. और मैं कभी भी इस परिभाषा में फ़िट नहीं बैठी या ये कह लूं कि ‘सुन्दर’ दिखने के लिए मैंने हमेशा जंग लड़ी है. 

मैं 15 साल की थी, तब से चेहरे पर एक्ने या मुंहासे होना शुरू हो गए थे. घर पर मां से लेकर रिक्शे में बैठने वाले अंजान लोग तक मुझे स्किन केयर टिप्स दिया करते थे. बेटा, देखे तो तुम्हारा चेहरा कैसे हो गया है, ये लगाया करो तो ठीक हो जाएगा, मेरी बेटी को भी था मैं उसे इस डॉक्टर और ठीक हो गया तुम भी जाओ, अरे… चेहरा अभी से ही कितना ख़राब हो गया है…. ये सारी बातें तो मेरी रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा बन गए थे. 

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मैं स्कूल में उन लड़कियों से जला करती थी, जिनकी एकदम साफ़ स्किन होती थी. मैं हर रोज़ रात को कोई न कोई लेप, लोशन या क्रीम लगाकर सोती थी और यही सोचती थी कि अगले दिन उठूंगी तो ये सब ग़ायब हो जाएगा. मेरे पास तरह-तरह की क्रीम से लेकर फ़ेस मास्क तक का भंडार था. जिस भी प्रोडक्ट ने एक्ने या निशान हटाने का दावा किया मैंने उन सब का उपयोग किया. मगर साफ़ चेहरे की जगह हमेशा निराशा हाथ लगती. 

ख़ैर, शुरू में मुझे एक्ने की इतनी दिक्कत न थी. मैं ख़ुद को हमेशा यही समझाती कि जब तक कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पहुंचूंगी ये सब ठीक हो जाएगा. मन में यही बोलती कि ये सब मेरी युवावस्था के कारण हो रहा है.     

मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, जहां मेरे बाक़ी दोस्तों के चेहरे साफ़ हो रहे थे वही मेरा चेहरा दिन प्रति दिन और ‘बिगड़ता’ जा रहा था. मुझे उन-उन जगह मुंहासे होने लगें जहां पहले कोई दिक़्क़त न थी. देखते ही देखते मेरे चेहरे पर ढेरों मुंहासे होने लगे, ऐसे जिन्हें छूने मात्र से ही मैं दर्द के मारे चीख़ उठती थी, ऐसे जो हर पल मेरे आत्म-सम्मान को भी चोट पहुंचा रहे थे, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. 

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ऐसे भी दिन होते थे कि मैं दोस्तों के साथ या ख़ुद से ही बाहर जाने के लिए मना कर देती थी. लोगों की आंखों में आंखें डालकर बात करना भी मेरे लिए बेहद मुश्क़िल हो गया था. मुझे हर वक़्त यही लगता था कि सामने वाला व्यक्ति मेरे मुंहासों को ही देख कर मन ही मन मेरे लाल और ख़राब चेहरे का मज़ाक बना रहा होगा.   

मैं ख़ुद को आईने में देखती थी तो अपने लिए बेहद बुरा महसूस करती थी. 

लोग मुझे तरह-तरह की सलाह देते थे. कई लोगों को लगता था कि मुझे चेहरा अच्छे से धोना नहीं आता है. लोग मुझसे से कहते थे कि चेहरे पर टूथपेस्ट लगाया करो. लोग मुझे बोलते थे कि क्योंकि मैं अपनी स्किन को ज़्यादा टच करती हूं इस वज़ह से ऐसा होता है. और सबसे बुरा होता था जब भी मैं किसी कॉस्मेटिक की दुकान पर मेकअप का सामान लेने जाती थी ,वो मेरे एक्ने को देख प्रोडक्ट्स बेचना शुरू कर देते थें.   

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मुझे जितनी ज़्यादा सलाह मिलती थी मेरा आत्म-विश्वास उतना ही कमज़ोर होता जाता था. ऐसा एक भी दिन नहीं जाता था जब मैं अपने चेहरे को और बेहतर करने के बारे में ना सोचूं. दिन में हर आधे एक घंटे बाद मैं ख़ुद को आईने में देख रही होती थी. 

इस बात को समझने में मुझे एक लम्बा वक़्त बीत गया कि मेरी ये चेहरे की तक़लीफ़ मुझे आगे बढ़ने से रोक रही है. इतना ही नहीं मेरे आत्म-विश्वास को जो हानि हुई है उसकी तो कोई तुलना ही नहीं है.   

ब्यूटी इंडस्ट्री ने हमारे दिमाग़ में ये बात बैठा रखी है कि परफ़ेक्ट स्किन ही सुन्दर होने का एक मात्र तरीक़ा है. मगर मैंने ये बात अच्छे से समझ ली है कि मैं कभी भी उन मॉडल्स की तरह नहीं दिख सकूंगी और ठीक भी है. हम सब में कुछ न कुछ खामियां होती हैं, कोई भी परफ़ेक्ट नहीं होता है, न ही वो मॉडल्स. मैंने स्किनकेयर के बारे में तो बहुत जाना ही मगर सबसे ज़रूरी ये कि कैसे मैं ख़ुद के प्रति नरम रह सकती हूं.