पुणे शहर आज भी मराठा साम्राज्य की विरासतों को गर्व से अपने में समेटे हुए है. मराठाओं द्वारा नियुक्त पेशवाओं ने इस शहर पर लंबे राज किया था. आज भी आप पुणे शहर में पेशवाओं की वीरता को महसूस कर सकते हैं. आइए आपको आज शहर की उन जगहों पर घुमा कर लाते हैं जो पेशवाओं की कहानी गढ़ती हैं.

1. शनिवार वाड़ा  

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शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक ‘शनिवारवाड़ा’ 1732 में प्रथम पेशवा बाजीराव द्वारा बनवाया गया था. हालांकि, 1828 में लगी आग में ये 7 मंज़िला इमारत काफ़ी नष्ट हो गई थी. शनिवारवाड़ा की वास्तुकला आज भी पेशवा शासकों की समृद्धि को दर्शाता है. 

2. कसबा गणपति मंदिर 

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1630 में रानी जीजाबाई भोंसले अपने 12 वर्ष के पुत्र शिवाजी को साथ लेकर पुणे पहुंची. एक दिन जीजाबाई को अपने घर के पास भगवान गणेश की एक मूर्ति मिली और उन्होंने वो एक मंदिर का निर्माण करवा दिया. जिसे आज प्रसिद्ध ‘श्री कसबा गणपति मंदिर’ के रूप में जाना जाता है. पेशवा भी गणपति जी को बहुत मानते थे.

3. महादजी शिंदे छत्री 

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ये स्मारक 18वीं सदी के सैन्य नेता महादजी शिंदे को समर्पित है. महादजी शिंदे पेशवाओं के तहत मराठा सेना के कमांडर-इन-चीफ़ थे. उन्हें मराठा पुनरुत्थान के स्तंभों में से एक माना जाता था. येस्मारक उनके दाह संस्कार का स्थल है.

4. विश्रामबाग वाड़ा 

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ये पेशवा बाजीराव द्वितीय का निवास स्थान है. क़रीब 20,000 वर्ग फ़ुट में फैली ये हवेली अपने आलीशान प्रवेश द्वार और नक्काशीदार लकड़ी के काम के साथ बालकनी के लिए प्रसिद्ध है.

5. नाना वाड़ा  

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‘नाना वाड़ा’ 1780 में पेशवाओं के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी नाना फड़नवीस द्वारा बनाया गया था. लकड़ी की रेलिंग के साथ बालकनियां, सरू के आकार के स्तंभ और गुंबद के आकार की छत. इस वाड़ा की वास्तुकला कोलोनियल पीरियड से काफ़ी प्रभावित है.

6. तांबड़ी जोगेश्वरी मंदिर 

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ये मंदिर पुणे में सबसे पुराना माना जाता है. 1636 में देवी के आशीर्वाद के साथ, शिवाजी महाराज ने अपनी मां जीजाबाई के साथ मंदिर के सामने की भूमि को ‘सुनहरी हल’ से जोता और पुणे शहर की नींव रखी थी. दश्हरे के मौक़ों पर यहां देवी को पालकी में बिठाकर जुलूस निकलने के बाद उनकी पूजा की जाती है, जो पेशवाओं द्वारा शुरू की गई एक परंपरा थी जिसे पुणे में आज भी निभाया जाता है.