महाराष्ट्र का पुणे शहर हमेशा से ही भारत की आज़ादी का गवाह रहा है. सन 1875 और 1910 के बीच की अवधि में ये शहर ‘गोपाल कृष्ण गोखले’ और ‘बाल गंगाधर तिलक’ के नेतृत्व में ‘स्वाधीनता आंदोलन’ का केंद्र था. पुणे की कई मुख्य इमारतों में से एक ‘यरवदा जेल’ ने आज भी देश की आज़ादी के मुश्किल दिनों को अपने अंदर समेट रखा है.
इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में ‘जेल टूरिज़्म’ की शुरुआत की है. इसके अंतर्गत सरकार राज्य मुख्य जेलों को आम जनता के लिए खोल रही है. इस सूची के सबसे पहले फ़ेज़ में मशहूर ‘यरवदा जेल’ को जनता के लिए खोला जायेगा. भारत के इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए ये अच्छी ख़बर है.
क्या है यरवदा जेल का इतिहास?
यरवदा सेंट्रल जेल 1871 में अंग्रेज़ों द्वारा बनाई गई थी. ये महाराष्ट्र राज्य की सबसे बड़ी जेल है और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेलों में से एक है. इस में एक बार में 5,000 से अधिक कैदी आ सकते हैं. यह जेल 512 एकड़ में फैली हुई है. 150 साल पुरानी इस जेल में महात्मा गांधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, सुभाष चंद्र बोस और यहां तक कि सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश शासकों ने कैद कर लिया था.
सन 1975-77 के आपातकाल के दौर में, इंदिरा गांधी के कई राजनीतिक विरोधियों को इस जेल में बंद कर दिया गया था. हिरासत में लिए गए लोगों में आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमिला दंडवते और वसंत नरगोलकर शामिल थे.
मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमले के अपराधी अजमल कसाब को भी पुणे की ‘यरवदा जेल’ में ही रखा गया था. कसाब को इसी जेल में फांसी पर लटकाया गया था. बताया जाता है कि उसे जेल परिसर में ही दफ़न कर दिया गया था.
‘COVID-19 महामारी’ के चलते शुरुआत में प्रतिदिन केवल 50 लोगों को ही आने की अनुमति दी जा रही है. इस दौरान स्कूल, कॉलेज या पंजीकृत संगठन समूह एक सप्ताह पहले, यरवदा जेल अधीक्षक को एक आवेदन या एप्लीकेशन भेजकर जेल का दौरा कर सकते हैं.