कहते हैं डर सभी को लगता है. बहादुर से बहादुर व्यक्ति भी किसी न किसी चीज़ से डरता ही है. मगर फिर भी लोग अक्सर ये कहते पाए जाते हैं कि उन्हें किसी भी चीज़ का ख़ौफ़ नहीं है. हालांकि, अगर उनकी बात पर यक़ीन कर भी लिया जाए, तो ये उनकी ताक़त नहीं, बल्कि कमज़ोरी है.
जी हां, किसी भी चीज़ का ख़ौफ़ न होना एक तरह की आनुवांशिक बीमारी है. दरअसल, इस समस्या से पीड़ित लोगों के दिमाग़ का वो हिस्सा काम ही नहीं करता, जिससे डर का पता चलता है. ऐसे लोगों को अपने सामने मौजूद ख़तरे का आभास नहीं होता, जिसके चलते वो ख़ुद की सुरक्षा भी नहीं कर पाते.
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इस बीमारी में मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता डर का संदेश
इस आनुवांशिक बीमारी में शरीर के कई हिस्से काफ़ी सख़्त हो जाते हैं, जिसका असर दिमाग़ पर भी पड़ता है. मस्तिष्क में एमिग्डेला नाम का हिस्सा इतना कड़ा हो जाता है कि इस तक तंत्रिकाओं के ज़रिए डर का संदेश नहीं पहुंच पाता है. दिलचस्प ये है कि इस बीमारी का असर बच्चे के विकास पर नहीं पड़ता. मतलब है कि उसे इस बीमारी के चलते कोई और समस्या नहीं होती, बस उसे डर का एहसास नहीं होता है.
इस बीमारी से पीड़ित एक महिला पर हुए थे चौंकाने वाले प्रयोग
बता दें, इस महिला पर क़रीब 10 साल प्रयोग हुए, जिसके बाद ये साबित हो गया कि दिमाग़ का एक हिस्सा प्रभावित होने की वजह से उस महिला को किसी भी प्रकार का डर नहीं लगता. हालांकि, इसका एक अपवाद भी रहा. दरअसल, जब SM को अपनी ही तरह की बीमारी से पीड़ित दो अन्य लोगों के साथ एक कमरे में कार्बन डाइऑक्साइड में सांस लेने के लिए छोड़ा गया, तब पहली बार SM को डर का एहसास हुआ. ऑक्सीज़न के अभाव में उनमें पैनिक देखा गया.
शोधकर्ताओं ने पाया कि अब तक जो डराने वाले प्रयोग किए गए थे, उसमें सांप हो या बंदूक बाहरी चीज़ों का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें डर का संदेश एमिग्डेला तक नहीं पहुंच पाया. मगर जब सांस लेने में परेशानी हुई तो ये शरीर के अंदर से आई प्रतिक्रिया थी. इसका सीधा मतलब था कि जब हमारे शरीर में ऑक्सीज़न की कमी होती है, तब हमारा शरीर इसका पता लगाने के लिए एमिग्डेला के भरोसे नहीं बैठता. इस बजाय शरीर के अन्य हिस्से सक्रिय होते हैं.
क्या होते हैं इस बीमारी के लक्षण?