दुनिया में कई ऐसी जगह हैं जहां आपको इंसान सोना, बहुमुल्य पत्थर या हीरा तलाशते नज़र आ जाएंगे. वहीं, चौंकाने वाली बात ये है कि ये चीज़े इन्हें मिल भी जाती हैं. अपने लेख के माध्यम से हम भारत की स्वर्णरेखा नदी के बारे आपको में बता चुके हैं, जहां से लोग नदी के पानी को छानकर सोना निकलाते हैं. इसी कड़ी में हम आपको भारत की एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग खेतों व खुले मैंदानों में हीरा तलाशते हैं. आइये जानते हैं, क्या है इस जगह की पूरी कहानी.  

हीरे की धरती  

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बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र को ‘हीरे की धरती’ कहा जाता है, क्योंकि यहां बहुत मात्रा में खनिज भंडार है और लोग यहां हीरा तलाशते हैं. वहीं, Geological Survey of India के अनुसार, पेरावली, तुग्गाली, जोन्नागिरी और वजराकरूर जैसे इलाक़ों में हीरे की भरमार है.  

दूर-दूर से आते हैं लोग हीरा तलाशने  

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हीरे मिलने की जानकारी आसपास के गांवों में रहने वालो को भी है, जो यहां हीरे की तलाश में आते हैं. वहीं, आंध्र प्रदेश से सटे राज्यों से भी लोग यहां हीरा तलाशने आते हैं. जानकारी के अनुसार, यहां लोग अपनी दैनिक मज़दूरी तक छोड़ हीरे की खोज में आते हैं, इस उम्मीद के साथ की हीरा उनकी क़िस्मत बदल देगा. बीबीसी से बात करते हुए गूंटूर से आए एक व्यक्ति ने बताया कि उनके एक मित्र को यहां से हीरा मिला था, इसलिए वो भी अपनी क़िस्मत आज़माने के लिए यहां आते हैं.    

कैसे करते हैं हीरे की तलाश? 

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रिपोर्ट के अनुसार, यहां हीरे की तलाश में आए लोग कोई विशेष तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. उन्हें जो पत्थर सबसे अलग या ख़ास नज़र आता है वो उसे उठा लेते हैं. वहीं, ये लोग सूरज या चांद की किरणों के प्रतिबिंब के आधार हीरे को ढूंढने की जगह का चुनाव करते हैं.

कहां बेचते हैं हीरा? 

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हीरा मिलने के बाद ये लोग सीधा उन बिचौलियों के पास जाते हैं, जो इनसे ये हीरा ख़रीदते हैं और एक छोटी रक़म इन्हें दे देते हैं. देखा जाए, तो ये एक कड़ी मेहनत वाला काम है, जिसमें पूरा खेल क़िस्मत का है.  

जुड़ी हैं कई कहानियां 

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स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां अंग्रेज़ों ने भी हीरे की तलाश की है और पत्थरों के आधार पर ही उनके द्वारा यहां खुदाई की जाती थी. इसके अलावा, राजा कृष्णदेव राय के समय व्यापारी हीरों और बेशक़ीमती पत्थरों को खुले बाज़ार में बेचा करते थे. वहीं, साम्राज्य के पतन, प्राकृतिक आपदा और लड़ाइयों की वजह से यहां मौज़ूद संसाधन खो गए, लेकिन बारिश के मौसम में ज़मीन की तरह पर हीरे दिखाई देते हैं. इसलिए, मानसून के वक़्त हीरे की तलाश ज़ोर पकड़ लेती है.  

हीरे आ जाते हैं ज़मीन पर  

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Geological Survey of India के उप-निदेशक राजा बाबू कहते हैं कि आंध्र प्रदेश के दो ज़िले करनूल और अनंतपुर के साथ तेलंगाना का महबूबनगर खनीज भंडार के लिए जाने जाते हैं. उनके अनुसार, जब ज़मीन के अंदर कुछ प्राकृतिक बदलाव होता है, तो ज़मीने के अंदर मौजूद हीरे ज़मीन की सतह पर आ जाते हैं. 

काला पत्थर  

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जीएसआई के अनुसार, इस क्षेत्र में हीरों का ज़मीन की सतह पर आने का एक मुख्य कारण 5 हज़ार सालों में हुआ मृदा क्षरण यानी Soil Erosion भी है. जीएसआई ऑफ़िसर बताते हैं कि धरती की 140-190 फीट की गहराई में मौजूद कार्बन परमाणु दवाब और अधिक तापमान के कारण हीरे में बदल जाते हैं. वहीं, जब धरती में विस्फ़ोट होकर लावा लिकलता है, तो यही लावा काले पत्थर में बदल जाता है, जिसे किम्बरलाइट और लैम्प्रोइट पाइप कहा जाता है. ये पाइप हीरों के लिए स्टोर हाउस का काम करते हैं. वहीं, हीरा निकालने वाली खनन कंपनियां इन्हीं पाइपों की मौजूदगी के आधार पर हीरे की खुदाई करती हैं.