Facts About Sky High Kites: किसी बच्चे के लिए पतंग उड़ाने का काम बेहद रोमांचक होता है, दौड़ना और मांझे को खींचना ताकि वो हवा में और ऊपर जाए, इतना ऊपर जहां वो अपनी ही धुन पर नाच सके. युवा कल्पनाओं को लुभाने वाली वही हवाएं अब उन शोधकर्ताओं पर भी जादू दिखा रही हैं जो ऊंचाई वाली हवाओं पर काम कर रहे हैं. 200 मीटर या उससे भी ज़्यादा ऊंचाई पर हवाएं ज़मीन के आस-पास की तुलना में काफ़ी तेज़ होती हैं.

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ये हवाएं इतनी तेज़ होती हैं कि हम इनसे अपनी ज़रूरत से ज़्यादा बिजली पैदा कर सकते हैं. वास्तव में, जितना हम ज़मीन पर टर्बाइन चलाकर हवा से बिजली पैदा करते हैं, उससे भी ज़्यादा. हवा की रफ़्तार के दोगुना हो जाने से वह आठ गुना ज़्यादा बिजली पैदा कर सकती है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़्राइबुर्ग में माइक्रोसिस्टम इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख मोरित्स डील कहते हैं कि ऊंचाई वाली हवाओं का उपयोग भविष्य में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की ‘सबसे आशाजनक’ तकनीक है. वो कहते हैं,

आप परंपरागत टर्बाइनों के ऊपर सारा आकाश देखते हैं और आपको लगता है कि ये सारी पवन ऊर्जा सिर्फ़ यहीं बह रही है और यह इस्तेमाल नहीं हो रही है.

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जर्मन पवन ऊर्जा कंपनी स्काईसेल्स-पॉवर के सीईओ स्टीफ़ेन रेज इसे बदलना चाहते हैं और ‘अब तक के इस सबसे बड़े अप्रयुक्त अक्षय ऊर्जा स्रोत को दुनिया भर में’ व्यापक इस्तेमाल के लिए पहुंचाना चाहते हैं. ऐसा करने वाले वो अकेले नहीं हैं. कई साल से, इंजीनियर, कई स्टार्ट अप्स और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां ऊंचाई वाली हवाओं को कम क़ीमत पर ज़मीन पर उतारने की होड़ में लगी हुई हैं. कई तो इस प्रयास में असफल हो चुके हैं और कुछ तो दिवालिया तक हो चुके हैं, लेकिन अन्य लोग अपने फ़्लाइंग पॉवर प्लांट को मार्केट में लाने के लिए लगभग तैयार हैं.

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फ़्लाइंग विंड टर्बाइन

इस तरह ध्यान आकर्षित वाले पहले प्रोजेक्ट को अमेरीकी कंपनी अल्टेरॉस ने साल 2010 में लॉन्च किया था. उनका प्रोटोटाइप हीलियम गुब्बारे से लगा एक जेनरेटर था या यों कहें कि यह बिना किसी भारी आधार और टॉवर का एक विंड टर्बाइन था. इसका परीक्षण अलास्का में किया गया और इसे ज़मीन से एक केबल के जरिए कनेक्ट किया गया था. कंपनी के मुताबिक, इसके ज़रिए 600 मीटर की ऊंचाई पर क़रीब पचास परिवारों के लिए बिजली पैदा की गई.

लगभग उसी समय जर्मन कंपनी स्काईसेल्स ने पूरे कंटेनर शिप्स को खींचने के लिए हाई-अल्टीट्यूड पतंग बनाया. इसके पीछे विचार था कि इंजन चलाने के लिए दस फ़ीसदी तक डीज़ल बचाया जा सकता है.

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हालांकि, पतंग के साथ परीक्षण सफल रहा लेकिन शिपिंग कंपनी दिवालिया हो गई और ना तो पतंग और ना ही हीलियम विंड टर्बाइन बाज़ार में जगह बना सके. हालांकि, इन दोनों प्रोटोटाइप्स ने एक बात की ओर इशारा किया- अत्यंत ऊंचाई पर हवाओं को काटने के लिए फ्लाइंग पॉवर प्लांट की ज़रूरत होती है.

गूगल के निवेश से प्रचार हुआ लेकिन काम नहीं

अब यहां गूगल कदम रखती है. 2013 में इस बड़ी टेक कंपनी ने अमेरिका की एयरबोर्न विंड एनर्जी कंपनी मकानी को ख़रीदा. कितने में ख़रीदा, यह पता नहीं है, लेकिन इस ख़रीद ने इस क्षेत्र में तहलका मचा दिया. एक छोटे विमान के आकार का इनका फ़्लाइंग पॉवर प्लांट क़रीब तीन सौ मीटर की ऊंचाई पर पहुंचा दिया गया जहां एक स्वचालित लूप में वो लगातार चक्कर लगाने लगा.

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हवा की तेज़ गति ने पंखों पर लगे पहियों को चलाया जिससे बिजली पैदा हुई. उस समय मोरित्स डील सोच रहे थे कि ये एक वाहियात आईडिया है, लेकिन यह आईडिया काम कर गया. मकानी कहते हैं कि सिर्फ़ एक फ़्लाइंग पॉवर प्लांट ने तीन सौ परिवारों के लिए पर्याप्त बिजली पैदा कर दी. ऐसा लग रहा था कि हर कोई सफलता की प्रतीक्षा कर रहा था जब तक कि यह यंत्र टेस्ट मिशन के दौरान समुद्र में क्रैश नहीं कर गया. गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फ़ाबेट ने बाद में इस परियोजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है.

यह अंत नहीं था, बल्कि शुरुआत थी

मकानी के अंत का मतलब हवाई पवन ऊर्जा का अंत नहीं था. कई स्टार्टअप इस दिशा में तेज़ी से काम कर रहे हैं जो कम सामग्री के उपयोग से छोटे उपकरण बना रहे हैं. कुछ ने तो मकानी के ही दृष्टिकोण को अपनाया है, जबकि दूसरों ने अपने ड्रोन को एक रस्सी से जोड़ा है जो कि जेनरेटर को खींच रहा है. कुछ दूसरे भी इसी तरह कर रहे हैं, फ़र्क सिर्फ़ यह है कि वो ड्रोन की जगह पतंग का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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इन्हीं में से एक है स्काईसेल्स-पॉवर- दिवालिया जर्मन कंपनी की उत्तराधिकारी जो कि पतंग का इस्तेमाल कर रही है. ऊर्जा उत्पादन में विशेषज्ञता के साथ इसने एक और उपकरण बनाया है जो बिजली उत्पन्न करने के लिए ‘पंपिंग साइकिल’ का उपयोग करता है. पतंग अपने आप उड़ती है, ख़ुद को हवा के ख़िलाफ़ निर्देश देती है और एक जेनरेटर से रस्सी को खोलती है. यह 8 की आकृति में उड़ते हुए लगातार रस्सी को खींचती है और इसी से बिजली पैदा होती है. पतंग को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह कई घंटे, कई दिन और यहां तक कि हफ़्ते हवा में रह सकती है. ख़राब मौसम या फिर ख़तरनाक स्थिति में एक अलार्म बजता है और इसे वापस बुलाया जा सकता है.

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मौजूदा पवन ऊर्जा को बदलने कि लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है

हालांकि, इस क्षेत्र में काफ़ी निवेश और एअर ट्रैफ़िक से संबंधित कई तरह के क्लियरेंस की ज़रूरत है, लेकिन रेज (Wrage) कहते हैं कि यह तकनीक दुनिया भर में 1.4 अरब लोगों की मदद कर सकती है जो बिना बिजली के रहते हैं और अपने घरों को रोशन करने के लिए अक्सर डीज़ल वाले जेनरेटर का इस्तेमाल करते हैं. विंड इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के एक अध्ययन के मुताबिक, हवाई पवन ऊर्जा डीज़ल की तुलना में काफ़ी सस्ती हो सकती है और यहां तक कि परंपरागत पवन ऊर्जा से भी ज़्यादा सस्ती हो सकती है.

स्काईसेल्स-पॉवर इस समय इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी है. कंपनी ने अपनी पहली यूनिट मॉरिशस को बेची है. कंपनी पूर्वी अफ्रीका में एक हाई-अल्टीट्यूड विंड हब बनाना चाहती है और समुद्र तट पर काइट विंड फ़ार्म्स का संचालन करना चाहती है. स्काईसेल्स का कहना है कि, इस तरह की सिर्फ़ एक पतंग पांच सौ परिवारों तक के लिए बिजली पैदा कर सकती है और इसमें परंपरागत विंड टर्बाइन्स की तुलना में 90 फ़ीसदी कम चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है. इसके अलावा, और भी कई फ़ायदे हैं. इसे किसी एक जगह पर फ़िक्स करने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती.

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डील कहते हैं,

आप इन्हें जंगल के ऊपर भी ऑपरेट कर सकते हैं. यदि ऊपर पक्षियों का झुंड जा रहा हो तो आप इनके ऑपरेशन को उस वक़्त बंद भी कर सकते हैं या फिर पतंग को नीचे उतार सकते हैं.

डेल्फ़्ट यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी में एरोस्पेस इंजीनियरिंग रिसर्चर ऋषिकेश जोशी कहते हैं,

तकनीक में बदलाव लाने में अभी भी कुछ साल लग जाएंगे. पवन ऊर्जा उद्योग को भी इतना सस्ता बनने में क़रीब चालीस साल लग गये.

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इस बीच, परंपरागत टर्बाइन अपना काम कर रही हैं. और हवाई पवन ऊर्जा सेक्टर के इतने एडवांस होने के बावजूद, मौजूदा टर्बाइनों को बदलने का कोई विचार नहीं है बल्कि आईडिया यह है कि हवा का ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग हो.