अंतरिक्ष (Space) में ज़ीरो ग्रैविटी होती है. एस्ट्रोनॉट (Astronauts) वहां खड़े भी नहीं हो सकते. अब ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि जब एस्ट्रोनॉट ज़मीन पर खड़े नहीं हो सकते और हर चीज़ ज़ीरो ग्रैविटी में तैरती है, तो फिर वो टॉयलेट (Toilet) कैसे इस्तेमाल करते होंगे?

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शुरुआत में नासा ने भी इस सवाल पर नहीं किया था गौर

हालांकि, बाद में भी जो व्यवस्था हुई, वो बस कामचलाऊ ही थी. अंतरिक्ष यात्रियों को पेशाब के लिए एक ख़ास तरह का पाउच इस्तेमाल करना पड़ा. ये बिल्कुल कॉन्डम की तरह थे. हालांकि, इन्हें महिलाओंं के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था. साथ ही, ये लीक भी हो जाते थे. 1960 के दशक के जेमिनी मिशन पहली बार नासा ने अंतरिक्ष में मल त्याग की व्यवस्था की थी. एक ख़ास तरह के बैग अंतरिक्ष यात्रियों के पीछेे बांध दिये जाते थे. लेकिन, ये टॉयलेट भी सफ़ाई और यूरिन डिस्पोस्ज वगैरह के लिए ठीक नहीं था.
इसके बाद जब महिलाएं भी अंतरिक्ष में जाने लगी तो टॉयलेट की ख़ास व्यवस्था की ज़्यादा ज़रूरत महसूस हुई. लॉन्च के दौरान और स्पेसवॉक पर महिला अंतरिक्ष यात्रियों को पेशाब करने में परेशानी न हो इसके लिए नासा ने डिस्पोजेबल अवशोषण कंटेनर ट्रंक बनाया, जो कि पेशाब को अवशोषित करने के लिए डिज़ाइन किए गए बाइक शॉर्ट्स की तरह था. इसके बाद भी थोड़े-बहुत प्रयोग हुए, मगर सभी में दिक्कतें थी. ज़्यादातर एस्ट्रोनॉट्स के लिए मुश्किल पैदा करते थे.


ये नये टॉयलेट पुरुष और महिला एस्ट्रोनॉट दोनों के लिए सुविधाजनक हैं. अगर दिमाग़ में ये सवाल आया हो कि पेशाब और मल को अलग-अलग टैंक में क्यों जमा किया जाता है, तो बता दें, पेशाब को रिसाइकिल किया जा सकता है. ऐसे करने से अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था हो जाती है.