अगर आप भारत के उत्तरी हिस्से में रहते हैं, तो फिर आप शाकाहारी हों या मांसाहारी एक डिश के बारे में ज़रूर जानते होंगे. हम बात कर रहे हैं बटर चिकन की. वैसे तो इसका स्वाद पूरे भारत में आपको चखने को मिल जाएगा. लेकिन दिल्ली के बटर चिकन की बात ही कुछ है. असल में इस डिश के बनने की कहानी इसके स्वाद से भी ज़्यादा बेहतरीन है.
ये कहानी शुरू होती है पेशावर से, जहां कुंदन लाल गुजराल जी के दादा जी की एक तंदूर की शॉप हुआ करती थी, जिसे वो और उनके दोस्त एक साथ चलाते थे. लेकिन हर रोज़ पूरा मांस नहीं बिक पाता था और बचा हुआ मांस अगले दिन तंदूर के सही नहीं होता था. कुंदन बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि वो मांस ख़राब हो जाता था, लेकिन तंदूर के लिए वो मांस अच्छा नहीं होता था. उनके दादा जी ने इस नुकसान से बचने के लिए एक तरीका निकाला और बटर चिकन डिश तैयार हुई.

वक़्त बीता और बंटवारे के बाद ये लोग दिल्ली आ गए. दिल्ली आ कर कुंदन जी ने अपने घर की परंपरा को जीवित रखा. उन्होंने दिल्ली में Moti Mahal नाम से एक रेस्टोरेंट खोला. इसके बाद बटर चिकन उनकी सबसे फ़ेमस डिश बन गई. लोग लाइन लगा कर अपनी बारी का इंतज़ार करते थे.
बटर चिकन दिल्ली इस कदर दिल्ली पर छाई की इसकी महक राजनीतिक गलियारों तक जा पहुंची और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ख़ास इस डिश को खाने के लिए Moti Mahal जाते थे.

1947 के बंटवारे ने देश से बहुत कुछ छीन लिया. लेकिन इसकी ही वजह से हमें इतनी बेहतरीन डिश बटर चिकन मिली. जिसका स्वाद आज भी दुनियाभर के लोगों की ज़ुवान पर चढ़ा हुआ है.