ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच यही है कि इसमें किसी भी पल, कुछ भी घट सकता है. क्या घटने वाला है उस पर किसी का ज़ोर नहीं चलता. हम अगर कुछ कर सकते हैं तो जो भी होता है उसे पूरी तरह से एक्सेप्ट करें और आगे बढ़ें. 1997 की बात है, कश्मीर के जावेद अहमद टाक की भी ज़िन्दगी में ऐसा मोड़ आया जिसके बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था.

New Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार, जावेद को मिलिटेन्ट्स की गोली लगी और वो पैरालाइज़्ड (Paralysed) हो गये. इस घटना की वजह से जावेद व्हीलचेयर (Wheelchair) पर आ गये. जावेद ने हार नहीं मानी और इस अवस्था को अपनी शक्ति बनाई. 

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1997 में ज़िन्दगी ने ली करवट 

21-22 मार्च, 1997 को 21 वर्षीय जावेद को अपने अंकल के अनंतनाग स्थित घर के पास गोली लगी. 

गनमैन मेरे Cousin पर हमला करने आये थे, वो नेशनल कॉन्फ़्रेंस का ब्लॉक प्रेसिडेंट था. मैंने उसकी जान बचाने की कोशिश की और ज़ख़्मी हो गया. 

-जावेद अहमद टाक

गोली लगने की वजह से जावेद के स्पाइनल कॉर्ड, किडनी, पैन्क्रीयाज़ और आंतों को बहुत नुकसान पहुंचा. B.Sc फ़ाइनल ईयर के छात्र, जावेद को लगभग 1 साल तक अस्पताल में रहना पड़ा. फरवरी 1998 में अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी तीन वर्षों तक जावेद बिस्तर पर ही पड़े रहे.  

बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं पड़ोस के घर के बच्चों को खेलते हुए सुनता. जून 2000 मैंने अपनी मां से कहा कि मुझे चुपचाप नहीं बैठना और मैं छोटे बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाना चाहता हूं. 

-जावेद अहमद टाक

New Indian Express

मुफ़्त पढ़ाना, बुक बैग यूनिफ़ॉर्म बैंक शुरू किया 

अगले 4 साल में जावेद ने 80-90 बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाया. फ़्री कोचिंग में जावेद ने ग़रीब छात्र-छात्राओं के लिये बुक बैंक भी शुरू किया. यही नहीं, जावेद ने यूनिफ़ॉर्म और बैग बैंक की भी शुरुआत की. इसके बावजूद जावेद को संतुष्टि नहीं मिली और वो दिव्यांग बच्चों के लिये कुछ करना चाहते थे.  

दिव्यांग बच्चों के लिये काम शुरू किया 

2006 में जावेद ने Zaiba Aapa Institute of Inclusive Education की शुरुआत की. ये इंस्टीट्यूट स्पेशल नीड्स (Special Needs) स्टूडेंट्स को मुफ़्त में शिक्षित करता है.  

सोशल वर्क के साथ पढ़ाई 

जावेद ने सामाजिक कार्य के साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी. 2007 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कश्मीर से Masters in Social Work किया. मिलिटेन्ट हमले के मुआवजे़ में जम्मू कश्मीर सरकार ने जावेद को 75,000 रुपये दिये. हालांकि जावेद के इलाज में लाखों का ख़र्च हुआ. इस पैसे को जावेद ने इंस्टीट्यूट में लगाया. प्राइमरी छात्रों के लिये बने इस स्कूल में अब 8वीं तक के छात्रों को 10 ट्रेन्ड टीचर्स पढ़ाते हैं. इस इंस्टीट्यूट में माता-पिता अपनी इच्छानुसार फ़ीस दे सकते हैं.  

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जावेद की ज़िन्दगी की कहानी हमारे लिये प्रेरणा है और उन सब लोगों के लिये एक उदाहरण जिन्हें लगता है कि दिव्यांग ज़िन्दगी में मदद के ही मोहताज होते हैं.