राजा-महाराजाओं का एक नवाबी शौक हुआ करता था, जंगली जानवरों को पालना. आज से चार हज़ार साल पहले चीन में शिया महाराज के पास कुछ जानवर थे. मेसोपोटेमिया के असिरियाई राजा मगरमच्छ रखते थे और कुछ शिकारी चिड़िया भी पालते थे. लेकिन आज दुनिया में सात अरब से ज्यादा लोगों के लिए खाने-पीने के सामान की ज़रूरत पड़ती है और इसके लिए लगातार जंगलों को खेतों में बदला जा रहा है.
शाकाहार या Veganism ने आज संसार भर में भले ही एक आन्दोलन का रूप ले लिया हो, लेकिन आज भी लोगों की एक बड़ी संख्या मांसाहारी हैं. केवल स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि लेदर के सामान, ऊन और कई अन्य चीज़ों के लिए भी इन जानवरों की निर्मम हत्या कर दी जाती है. जानवरों के प्रति लोगों का असंवेदनशील रवैया अमानवीय और क्रूरता की सारी हदें पार कर देता है.
लेदर इंडस्ट्री
दुनिया में लेदर का ज़्यादातर निर्माण भारत में होता है, जहां जानवरों की सुरक्षा से जुड़े कानून लचर हालातों में हैं. भारत में गाय या गाय के बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है, लेकिन भारत में कई कानूनों की तरह इस कानून की भी धड़ल्ले से अनदेखी होती है.
कई गायों को हलाल होने से पहले कई दिनों तक खाना, पानी और मेडिकल सुविधाओं से दूर रखा जाता है. भीड़भाड़ भरे ट्रकों में कुछ गाय तो यात्रा के दौरान ही दम तोड़ देती हैं और ये मृत गाय बाकी बची गाय के पास ट्रक में ही पड़ी रहती हैं. इस टॉर्चर से परेशान होकर कई गाय तो एक दूसरे को सींग मारकर पीड़ा खत्म करने की कोशिश करती हैं.
ये टॉर्चर भरी यात्रा कई गायों को बेहद थकाने वाली होती है. वे इस दौरान काफ़ी कमज़ोर हो जाती हैं और कई बार चोट भी खा बैठती हैं. क्रूरता की हदें पार करते हुए कई बार इन गायों की आंखों में चिली पाउडर डाल दिया जाता है, या उनकी पूंछ काट दी जाती है.
यात्रा के अंत में इन गायों को मार दिया जाता है. यूं तो इन्हें पारंपरिक हलाल तरीके से मारा जाता है, जहां इनके गले पर एक कट लगते ही जानवर की मौत हो जाती है लेकिन कई बार खराब ब्लेड होने की वजह से इन गायों को लंबी, क्रूर हत्या से गुज़रना पड़ता है. कई गाय की चमड़ी उतारते वक्त तो वे ज़िंदा भी होती हैं और इन्हें एक भयानक पीड़ा से गुज़रना पड़ता है.
फ़र इंडस्ट्री
फ़र इंडस्ट्री का 85 फ़ीसदी हिस्सा उन जानवरों से आता है जो फ़र फार्म्स के छोटे से कमरों में कैद होते हैं. ये जानवर बेहद छोटी जगह पर रहने को मजबूर हैं. इन्हें हर पल डर, तनाव, बीमारियों और ऐसी ही कई मानसिक और शारीरिक परेशानियों के बीच जद्दोजहद करनी पड़ती है. अत्याचार का आलम ये है कि कई बार तो ये मासूम परेशान होकर खुद ही अपने आपको मारने की कोशिश करने लगते हैं.
चमड़ियां उतारने से पहले इन जानवरों को झटके से बाहर खींचा जाता है, ज़मीन पर पटक दिया जाता है और फ़िर ये क्रूर प्रक्रिया शुरु हो जाती है.
चमड़ी उतारने के लिए इन्हें पैरो के बल टांग दिया जाता है तो कई जानवर ज़िंदा होते हैं और अपने आपको ज़िंदा बचाने के लिए दर्दनाक छटपटाहट करने लगते हैं.
चीन में फ़र फ़ार्म में जानवरों के साथ क्रूरता करने पर किसी तरह की कोई पेनल्टी नहीं देनी पड़ती है. दुनिया में फ़र का सबसे बड़ा निर्यातक होने के बावजूद यहां जानवरों को लेकर कानून बेहद असंवेदनशील है.
डाउन इंडस्ट्री
पक्षियों के शरीर पर मौजूद सबसे सॉफ़्ट और संवेदनशील पंखों को डाउन कहा जाता है. आमतौर पर डाउन बत्तखों और हंसों की छाती और गले के पास मौजूद होते हैं. चूंकि ये पंख सबसे मुलायम होते हैं, ऐसे में इन्हें बेरहमी से तोड़ने पर इन बेज़ुबानों को बेहद दर्दनाक तकलीफ़ होती है. इन बत्तखों के शरीर पर गहरे ज़ख्म हो जाते हैं और कई बार इन्हें डर से लकवा मार जाता है.
लापरवाही से पंख तोड़ने के कारण इन बत्तखों के शरीर पर ज़ख्म कई बार बेहद गहरे होते हैं. इसके बावजूद बूचड़खाने में काम करने वाले कर्मचारी इन्हें बिना पेन किलर्स के ही इंजेक्शन लगा देते हैं.
कई किसान जो पक्षियों के मीट के द्वारा अपनी रोजी रोटी चलाते हैं, वे उनके पंखो से भी कमाई करते हैं. बूचड़खानों में पक्षियों की जीभ काटने पर कई बार पक्षी मरते नहीं है बल्कि तड़पते रहते हैं. ऐसी हालत में उनके पंख तोड़ लिए जाते हैं.
ऊन इंडस्ट्री
दुनिया की 25 फ़ीसदी ऊन ऑस्ट्रेलिया से आती है. यहां आम तौर पर Merinos भेड़ों को पाला जाता है. ये नस्ल दूसरी भेड़ों के मुकाबले ज़्यादा ऊन देती है पर इन भेड़ों की देखभाल नहीं की जाती.
ऑस्ट्रेलिया में हर साल बसंत ऋतु में 30 लाख भेड़ों को मार दिया जाता है. हैरानी की बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया की ऊन इंडस्ट्री में इसे बेहद ‘सामान्य’ समझा जाता है.
भेड़ के शरीर से ऊन उतारने वाले कर्मचारियों को घंटों के आधार पर नहीं बल्कि ऊन के घनत्व के हिसाब से पैसे मिलते हैं. ऐसे में ये कर्मचारी भेड़ों पर किसी तरह की दया नहीं दिखाते. पेटा के एक अंडरकवर पत्रकार ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की ऊन इंडस्ट्री के कई राज़ खोले हैं.
इस खुलासे के मुताबिक, यहां काम करने वाले वर्कर्स भेड़ों के साथ बेहद हिंसा से पेश आते हैं. वे भेड़ों को मुंह पर थप्पड़ मारते हैं, उनके सिर और गले को कुचलने की कोशिश करते हैं या उन पर बैठ जाते हैं. ये लोग कई बार इलेक्ट्रिक क्लिपर्स और हथौड़ों से भी इन भेड़ों के चेहरे पर प्रहार करते हैं.
जैसे ही भेड़ों की जरुरतें खत्म हो जाती है, उन्हें काटने के लिए भेज दिया जाता है. हर साल लाखों भेड़ शिप के द्वारा ऑस्ट्रेलिया से अफ्रीका और मिडिल ईस्ट भेजी जाती है. 2005 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 38000 भेड़ तो सफ़र के दौरान ही दम तोड़ देती हैं.
ऑस्ट्रेलियन सरकार और एक्सपोर्ट इंडस्ट्री बार बार ये दावा करती रही हैं कि इन जानवरों के साथ अच्छा सलूक किया जाता है, लेकिन जांचकर्ताओं के मुताबिक, गायों और भेड़ों के कान और टांग पकड़कर उन्हें ट्रक से घसीटा जाता है और बंजर feedlots में उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.
इन जानवरों को तड़पा-तड़पा कर मारा जाता है. हैरानी की बात ये है कि अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में इन निर्मम तरीकों से जानवरों की हत्या करने पर प्रतिबंध है, इसके बावजूद इन देशों में क्रूरता का खेल बदस्तूर जारी है.
स्किन इंडस्ट्री
कई सांप, मगरमच्छ और बाकी Reptiles को भी अपनी चमड़ी की वजह से मानवों की क्रूरता का शिकार होना पड़ता है.
सांपो की भी निर्ममता के साथ चमड़ी उधेड़ दी जाती है. इनके विकृत शरीर को इस प्रक्रिया के बाद फेंक दिया जाता है, पर चूंकि इन जानवरों का मेटाबॉलिज़्म बेहद स्लो होता है, ऐसे में इन्हें मरने में घंटों का समय लगता है, इस दौरान ये Reptiles तड़पते रहते हैं.
वहीं छिपकलियों के सर को अक्सर इनके धड़ से अलग कर दिया जाता है और फ़िर इनकी चमड़ियों को क्रूरता से उतार लिया जाता है. ऐसे बेहद कम कानून हैं जो Reptiles के साथ होने वाली क्रूरता के खिलाफ़ हैं, इसके अलावा मौजूदा कानूनों का भी पालन बेहद खराब स्तर पर होता है.
दुनिया में लाखों जानवरों के साथ बेहद निर्ममता और क्रूरता के साथ पेश आया जाता है. लेकिन अगर आप चाहे तो आप इन जानवरों की मदद भी कर सकते हैं. लेदर से बनने वाले पर्स और ऊन से बनने वाले स्वेटर दरअसल इन क्रूर कंपनियों की मदद करने जैसा होगा जो जानवरों को तड़पा-तड़पा कर मारते हैं. आप इन चीज़ों की खरीददारी से पहले इनके लेबल जरुर चेक करें. लेदर पर्स और ऊन से बनने वाले स्वेटर या किसी भी एनिमल प्रोडक्ट का बहिष्कार कर आप चाहें तो इन बेज़ुबान जानवरों पर एहसान कर सकते हैं.