‘बाकी सब तो उड़ गया, मगर आपका परफ़्यूम रह गया’
FOGG Perfume के इस विज्ञापन को देख न जाने कितने लोगों ने इसे ख़रीदा होगा. भारत में ऐसे कई देसी परफ़्यूम हैं जो दशकों से अपनी महक से लोगों की सूंघने की शक्ति को नेक्स्ट लेवल पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं. प्राचीन काल से फ़िज़ा को महकाने वाला ‘इत्र’ आज Perfume, Scent, Deo आदि नामों से जाना जाता है. लेकिन आज भी देसी भाषा में इन सभी को ‘इत्र’ ही कहा जाता है. आज ये सभी हमारी लाइफ़स्टाइल का अहम हिस्सा बन चुके हैं. लेकिन अधिकतर लोगों को ये मालूम ही नहीं होगा कि भारत में एक शहर ऐसा भी है जो अपने अदरऊद इत्र की वजह से ‘परफ़्यूम कैपिटल ऑफ़ इंडिया’ भी कहा जाता है.
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हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कन्नौज (Kannauj) की. कन्नौज को परफ़्यूम कैपिटल ऑफ़ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है. यहां क़रीब 5000 सालों से इत्र बनाने का काम हो रहा है. कन्नौज के बारे में ये भी कहा जाता है कि कभी यहां की गलियों में ‘इत्र’ बहता था और सड़कें चंदन की सुगंध से महकती थीं. यहां गुज़रने वाली हवाएं ख़ुशबू संग लेकर मीलों दूर तक जाती थीं. पारंपरिक तरीके से ‘इत्र’ बनाने के लिए प्रसिद्ध इस शहर की मिट्टी में एक अलग ही ख़ुशबू है.
कन्नौज (Kannauj) में इत्र का बड़े पैमाने पर कारोबार होता है. इस शहर में इत्र निर्माण की 350 से अधिक फ़ैक्ट्रियां हैं. कन्नौज से दुनिया के 60 से अधिक देशों में इत्र निर्यात किया जाता है. इस कारोबार के लिए फूलों की खेती से 50 हज़ार से अधिक किसान जुड़े हुए हैं. आज शहर में 60 हज़ार से अधिक लोगों को इत्र के कारोबार से रोज़गार मिल रहा है.
मिट्टी से बनाया जाता है ‘इत्र’
अगर हम आपसे ये कहें कि कन्नौज में मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है तो अधिकतर लोग पर यक़ीन नहीं करेंगे. लेकिन ये बात सौ फ़ीसदी सच है. बरसात की बूंदें जब कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो इस मिट्टी से एक ख़ास क़िस्म की ख़ुशबू उठती है. इसी ख़ुशबू को बोतलों में क़ैद कर लिया जाता है. बारिश के पानी से गीली हुई मिट्टी को तांबे के बर्तनों में पकाया जाता है. इस मिट्टी से जो ख़ुशबू उठती है उसे बेस ऑयल के साथ मिलाकर ‘इत्र’ बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है. मिट्टी से ‘इत्र’ बनाने वाला कन्नौज देश का एकमात्र शहर है.
कन्नौज का मशहूर ‘अदरऊद इत्र‘
आज दुनिया के सबसे सस्ते से लेकर सबसे महंगा ‘इत्र’ कन्नौज (Kannauj) में ही बनाया जाता है. यूपी का ये छोटा सा शहर अपने एक ख़ास किस्म के ‘इत्र’ की वजह से दुनियाभर में काफ़ी मशहूर है. कन्नौज के इस इत्र का नाम अदरऊद है, जो अपने नाम की तरह ही क़ीमत के मामले में भी सबसे जुदा है. कन्नौज के इत्र की ख़ासियत ये है कि इसे बनाने के लिए 600 साल पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसे असम की विशेष लकड़ी ‘आसमाकीट’ से बनाया जाता है.
क़ीमत सुन हो जायेंगे हैरान-परेशान
कन्नौज (Kannauj) के ‘अदरऊद इत्र’ के 1 ग्राम की क़ीमत 5000 रुपये के क़रीब है. इसकी बाज़ार में क़ीमत 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है. वहीं ‘गुलाब’ से तैयार होने वाला ‘इत्र’ 12 हज़ार से लेकर 3.50 लाख रुपये प्रति किलो बेचा जाता है. इसमें केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, यही इसकी ख़ासियत है.
कन्नौज (Kannauj) में आइल अलावा ‘केवड़ा’, ‘बेला’, ‘केसर’, ‘कस्तूरी’, ‘चमेली’, ‘मेंहदी’, ‘कदम’, ‘गेंदा’, ‘शमामा’, ‘शमाम-तूल-अंबर’, ‘मास्क-अंबर’ जैसे इत्र भी तैयार किए जाते हैं. यहां बनने वाले इत्र की क़ीमत 25 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक होती है. कन्नौज के इस इत्र की सबसे अधिक सप्लाई अमेरिका, यूके, सऊदी अरब, ईराक, ईरान और ओमान जैसे देशों में की जाती है.
ऐसे बनता है इत्र
कन्नौज (Kannauj) में इत्र बनाने के लिए सबसे पहले खेतों से तोड़कर लाए गए फूलों को भटठियों पर लगे बहुत बड़े तांबे के बड़े से डेग में डाला जाता है. 1 डेग में क़रीब 1 क्विंटल फ़ूल डाले जाते हैं. इसके बाद डेग के मुंह पर ढक्कन रखकर गीली मिट्टी से सील कर दिया जाता है और कई घंटों तक आग में पकाया जाता है. इस दौरान ‘डेग’ से निकलने वाली ‘भाप’ को एक दूसरे बर्तन में एकत्र किया जाता है, जिसमें चंदन तेल होता है. इसी को बाद में सुगंधित इत्र में तब्दील कर दिया जाता है.