देश भर में मौजूद स्मारक और किले पिछली कई सदियों से देश में जड़े जमाए हुए हैं और आप भी अक्सर इन जगहों पर घूमने जाते रहते होते होंगे लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन किलों और स्मारकों के बनने के पीछे की कहानी आखिर क्या है? पेश है ऐसे ही 11 किले और स्मारक जिनका न केवल निर्माण दिलचस्प है बल्कि इनके बनने के पीछे की कहानी भी उतनी ही रोचक है.

1. जल महल, जयपुर

जल महल जयपुर के मानसागर लेक के बीचों बीच स्थित है और ये लगभग 300 साल पुराना है. पानी में आधे डूबे इस पैलेस के बारे में माना जाता है कि इसे शाही परिवार के लिए होने वाली पार्टियों और पिकनिक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था.

2. हवामहल, जयपुर

महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 में हवामहल का निर्माण कराया था. हवामहल के डिज़ाइनर लाल चंद उस्ताद ने इसे भगवान कृष्णा के मुकुट की तरह डिज़ाइन करने का फ़ैसला किया था. इसे बनाने के पीछे मंशा यही थी कि बिना किसी परेशानी के शाही महिलाएं रोज़मर्रा की ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा सकें क्योंकि उस दौर में पर्दा सिस्टम अपने चरम पर था और रानियों से लेकर आम महिलाओं के पर्दे में रहने की परंपरा थी.

3. कुंभलगढ़ किला, कुंभलगढ़

कुंभलगढ़ में मेवाड़ के राजा और शूरवीर महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था. ये किला मेवाड़ और मारवाड़ को अलग करने में भूमिका निभाता है और युद्ध की स्थिति में शाही परिवार के इमरजेंसी जगह के रूप में शुमार है इसके अलावा जब चित्तौड़ पर हमला हुआ था, उस दौरान भी राजकुमार उदाई की सुरक्षा के लिए उन्हें इसी किले में लाया गया था.

4. छैल पैलेस, हिमाचल प्रदेश

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छैल पैलेस का निर्माण पटियाला के महाराजा ने किया था. दरअसल पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को उस दौर में कुछ कारणों से शिमला में आने से रोक दिया गया था. शिमला उस ज़माने में भारत की गर्मियों की राजधानी हुआ करती थी. हालांकि महाराजा ने इस बात से खफ़ा या परेशान होने के बजाए अपने लिए एक पैलैस बनवाने का फ़ैसला कर लिया ताकि गर्मियों में सुकून से वक्त गुज़ारा जा सके और इस तरह छैल पैलेस का निर्माण शुरू हुआ था. वर्तमान में इस पैलेस को एक होटल में तब्दील किया जा चुका है.

5. बीबी का मकबरा, औरंगाबाद

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आज़म शाह ने 1678 में बीबी का मकबरा बनवाया था. आज़म शाह, औरंगज़ेब का बेटा था और उसने ये मकबरा अपनी मां दिलरास बानू बेगम की याद में बनवाया था. बीबी का मकबरा काफी हद तक ताजमहल की तरह भी दिखाई देता है. खास बात ये है कि इस मकबरे की शुरूआत से पहले इसे ताजमहल जैसा ही भव्य और शानदार बनाने का प्रण लिया गया था लेकिन बजट की समस्या और नक्काशी के घटते स्तर के चलते ये ताजमहल को टक्कर देने के बजाए ये मकबरा महज ताज की परछाई बन कर रह गया

6. बिदार किला, कर्नाटक

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सुल्तान अलाउद्दीन बाहमन, बाहमनायिड सल्तन्त से ताल्लुकात रखते थे. उन्होंने ही इस किले को बनवाया था. 1427 में वे अपनी राजधानी को गुलबर्ग से हटाकर बिदार में शिफ़्ट कराना चाहते थे. इस एक किले के अंदर ही करीब 30 स्मारकों की मौजूदगी है.

7. रामबाग पैलेस, जयपुर

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रामबाग पैलेस आज के दौर में भले ही एक लक्ज़री होटल में तब्दील हो चुका हो लेकिन उस ज़माने में ये महाराजा ऑफ़ जयपुर का घर हुआ करता था. माना जाता है कि इस पैलेस की पहली बिल्डिंग का निर्माण 1835 में किया गया था. इस बिल्डिंग का निर्माण राम सिंह द्वितीय की एक महिला मित्र के लिए किया गया था. ये महिला राम सिंह के बच्चों को दूध पिलाती थी और उनके बच्चों की देखभाल करती थी.

8. चौमहल पैलेस, हैदराबाद

चौमहल पैलेस, हैदराबाद के निज़ामों का पैलेस हुआ करता था. प्राचीन भारत में ये पैलेस असफ़ जाही dynasty की सीट हुआ करती थी. इसके अलावा जब हैदराबाद के निज़ाम यहां के शासक थे, उस दौरान ये जगह उन लोगों के रहने की आधिकारिक जगह भी थी, उस दौर में इस पैलेस का इस्तेमाल सेरेमनी के कामों में हुआ करता था. वर्तमान में ये पैलेस बरकत अली खान मुकर्रम जाह की प्रॉपर्टी है, जो निज़ाम के उत्तराधिकारी हैं.

9. कोटा हाउस, दिल्ली

शाहजहां रोड पर स्थित कोटा हाउस दरअसल कोटा के महाराव का घर हुआ करता था. इस जगह का निर्माण महाराव भीमा सिंह द्वितीय ने 1938 में कराया था, हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज़ों ने इस पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था और वे इसे बेस अस्पताल की तरह इस्तेमाल करते थे. युद्ध खत्म होने के बाद इस बिल्डिंग को एक बार फिर कोटा स्टेट को सौंप दिया गया था.

10. अमर किला, जयपुर

अमर फ़ोर्ट पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है. ये जगह दरअसल राजपूत महाराजाओं और उनके परिवारों के रहने-ठहरने के लिए इस्तेमाल की जाती थी. ज़्यादातर लोग इस बात से वाकिफ़ नहीं होंगे लेकिन इस पैलेस का निर्माण इसलिए कराया गया था ताकि युद्ध जैसे खतरों की स्थिति में शाही परिवार को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके.

11. कुतुब मीनार, दिल्ली

दिल्ली के आखिरी हिंदू राजा को हराने के तुरंत बाद यानि 1193 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार का निर्माण करा दिया था. हालांकि इसके निर्माण के पीछे दो कहानियां जुड़ी हुई हैं. एक कहानी के अनुसार, कुतुबमीनार का निर्माण दिल्ली में मुस्लिम शासकों की जीत के प्रतीक के तौर पर बनाया गया था. वहीं दूसरी कहानी के अनुसार, इसे धोराहर के मुअज़्जिन के तौर पर बनाया गया था ताकि नमाज के वक्त लोगों को यहां बुलाया जा सके.

Source: Indiatimes