देश के सबसे प्रतिष्ठित और पसंदीदा ब्रैंड के रूप में पतंजलि ख़ुद को स्थापित कर चुका है. पतंजलि की सफ़लता देखनी है तो किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार में चले जाईये.
इस परिवार के किचन में पतंजलि हनी या बाथरूम में पतंजलि शैम्पू और टूथपेस्ट तो मिल ही जाएगा. सिर्फ़ ज़रूरत की चीज़ें नहीं, पतंजलि का शेयर ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी काफ़ी बढ़ा है. जिसका एक कारण इन उत्पादों का ‘प्राकृतिक’ और ‘सस्ता’ होना है.
लेकिन इन्टरनेट पर मौजूद पतंजलि की ब्यूटी रेंज की एक क्रीम पर कुछ ऐसा लिखा था, जिससे हमें काफ़ी आपत्ति हुई. क्रीम के फ़ायदों के बारे में लिखा हुआ था, ‘अंकुरित गेंहू, हल्दी, एलो वेरा और तुलसी के फ़ायदों से भरपूर और रूखी त्वचा, झुर्रियों, सांवले रंग संबंधी त्वचा रोगों में अत्यंत कारगर.’
हमें आपत्ति यहां लिखे हुए ‘सांवले रंग’ से है. दुनिया भर में ऐसे कई ब्यूटी ब्रैंड्स हैं, जो सांवले रंग से जुड़ी हीन भावना को अपनी मार्केटिंग Strategy बना लेते हैं और लाखों कमाते हैं. ऐसे ब्रैंड्स को जगह-जगह पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. यही ग़लती पतंजलि ने की. बाकि ब्रैंड्स अगर सांवले रंग को ‘कमी’ मानते हैं, तो पतंजलि ने इसे ‘त्वचा रोग’ बना दिया.
पतंजलि में बैठे बड़े-बड़े मार्केटिंग गुरु इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं कि काले-गोरे पर इतनी चर्चा होने के बाद भी इस देश में सांवले रंग को ‘प्रॉब्लम’ बना कर एक अच्छा-ख़ासा मार्केटिंग गेम खेला जा सकता है.
हो सकता है, वो अपनी इस मार्केटिंग स्ट्रेटेजी में कामयाब भी हो जाएं. हो सकता है उनकी सेल बढ़ जाए और उनकी सेल्स टीम अपने टारगेट पूरे होने का जश्न मनाये. लेकिन सांवले रंग का जो बीज उन्होंने इस Ad के ज़रिये बोया है, उसका पेड़ कहीं न कहीं ज़रूर उग रहा होगा. कहीं न कहीं एक सामान्य सी लड़की, ख़ुद को सांवला होने के लिए कोस रही होगी और थक-हार ये क्रीम उठा ले आएगी.