धरती पर कई कारणों के चलते बदलाव आते रहते हैं. ये बदलाव भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी और तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण आते हैं. हालांकि, ज़्यादातर इन परिवर्तनों के पीछे इंसानी गतिविधियां ज़िम्मेदार होती हैं. आज हम Google Earth द्वारा ली गई तस्वीरों के ज़रिए जानने की कोशिश करेंगे कि पिछले 40 सालों में हमारी धरती कितनी बदल चुकी है.

1. पाम द्वीपसमूह, दुबई

हाल के वर्षों में दुबई शहर का ज़बरदस्त विस्तार हुआ है. साल 1990 में जहां इसकी जनसंख्या 5 लाख थी, वो 2020 में बढ़कर 30 लाख से ज़्यादा हो गई है. दुनिया के सबसे प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक के रूप में पहचान रखने वाले इस शहर का ज़मीन और पानी दो ही जगह विस्तार हुआ है. ये कोस्ट लाइन और ज़मीन दोनों में ही क़रीब 300 किलोमीटर से अधिक एरिया में फैला है. इससे यहां मानव निर्मित पाम द्वीपसमूह और वर्ल्ड आइलैंड का निर्माण हुआ है.

ये भी पढ़ें: इन 15 दुर्लभ तस्वीरों में देखिये कैसे 19वीं और 20वीं शताब्दी में नज़र आती थी ‘कुंभ नगरी’ प्रयागराज

2. रंग बदलता पानी: नैट्रॉन झील, तंजानिया

यह एक गुलाबी झील है. इसकी उच्च लवणता, 40 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान और 12 से अधिक के पीएच तक पहुंचने वाली क्षारीयता के कारण ये पृथ्वी पर सबसे घातक और खतरनाक झीलों में से एक है. यहां सालाना शैवाल और बैक्टीरिया पनपते हैं, जिससे इस झील का रंग बदल जाता है.

3. ख़त्म होते जंगल: सैन जूलियन, बोलीविया 

हाल के वर्षों में, अमेज़ॅन जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक रहा है. यहां कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए तेज़ी से पेड़ों की कटाई चल रही है, जिससे जंगल सिकुड़ रहा है. यहां के ज़्यादातर हिस्से का इस्तेमाल मवेशियों के चारे और सोयाबीन की खेती के लिए किया जा रहा है. 

4. ग्लोबल वार्मिंग: चीन का सोलर फोटोवोल्टिक पावर प्लांट

अक्षय ऊर्जा एक स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा संसाधन हैं. कई देश इस ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए आगे बढ़ रहे हैं, ताकि ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से बचा सके. चीन भी इनमें से एक है. ये तस्वीर चीन के सोलर फोटोवोल्टिक पावर प्लांट की है, जहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली बनाने में किया जा रहा है. 

5. ग़ायब होते ग्लेशियर: कोलंबिया ग्लेशियर, संयुक्त राज्य अमेरिका 

अलास्का के दक्षिणी तट पर स्थित कोलंबिया ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज़्यादा असर हुआ है. ये ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहा है. 

6. रेत से तेल निकालना, कनाडा

कनाडा में रेत से निकालने की वजह से धरती पर काफ़ी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि इस काम के लिए  बहुत अधिक ऊर्जा और पानी का उपयोग करना पड़ता है. साथ ही, ये पानी और यहां तक ​​कि हवा में भी बड़ी मात्रा में जहरीले और प्रदूषण फैलाने वाले एजेंटों को छोड़ता है. 

7. बढ़ते उद्योग, सिसुड़ती झीलें: अरल सागर

इंंसान की लालच पर्यावरण पर किस कदर हानिकारक प्रभाव डाल रही है, यहां साफ़ देखा सकता है. 1960 में, रेगिस्तान के बीच में कपास और अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए अरल सागर (जो अपने नाम के बावजूद वास्तव में एक झील है) से पानी को मोड़ने और चैनल करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई थी. इस परियोजना ने झील को लगभग पूरी तरह से सुखा दिया क्योंकि कपास दुनिया की सबसे बड़ी पानी की खपत वाली फसलों में से एक है.

8. ग्रीन वॉल, चीन

चीन पूरे क्षेत्र में अरबों पेड़ लगाकर भूमि के मरुस्थलीकरण को रोकने की कोशिश कर रहा है. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में  पारिस्थितिक रिजर्व की बहाली की ऐसी कोशिशें और भी देखने को मिलेंगी.

9. बढ़ते शहर झीलों को भी लील रहे हैं, नेवादा. यूएसए

पिछले 4 दशकों में, लास वेगास शहर ने अपनी आबादी में लगभग पांच गुना वृद्धि की है. ऐसे में पीने से लेकर खेती जैसे कामों के लिए भी पानी की ख़पत बढ़ी है. साथ ही, तापमान भी पिछले दशकों की तुलना में बढ़ गया है. ऐसे में यहां मौजूद झील तेज़ी से सूख रही है. 

10. तेज़ी से पिघलता पाइन द्वीप ग्लेशियर, अंटार्कटिका

अंटार्कटिक महाद्वीप पर पाई जाने वाली ये बड़ी बर्फ की धारा भी ग्लोबल वार्मिंग से काफी प्रभावित हो रही है. यू.एस. नेशनल साइंस फाउंडेशन का अनुमान है कि यदि ये ग्लेशियर पिघल कर अपना सारा पानी समुद्र में बहा देता है, तो समुद्र का स्तर लगभग 61 मीटर बढ़ जाएगा. 

11. माउंट Pinatubo, फिलीपींस

साल 1991 में 500 साल से निष्क्रिय Pinatubo ज्वालुमुखी सक्रिय हो गया था और इसने काफ़ी तबाही मचाई थी. सल्फ्यूरिक एसिड की एक परत ने पूरे विश्व को घेर लिया था. ओजोन परत को भी व्यापक नुकसान हुआ था. हालांकि, अब एक बार फिर से प्रकृति ख़ुद ही अपने आप को संवारने लगी है.  

12. फसली भूमि जंगल में हुई तब्दील, रूस

सोवियत संघ के विघटन के बाद कई एरिया में फसलों को यूं ही छोड़ दिया गया था. बाद में बिना मानवीय हस्तक्षेप के ये पूरा एरिया फलने-फूलने लगा और आज यहां एक बड़ा जंगल तैयार हो गया है. 



महात्मा गांधी ने सही कहा था कि पृथ्वी हर मनुष्य की ज़रूरत को पूरा कर सकती है परंतु लालच को नहीं. इन तस्वीरों के ज़रिए भी यही बात साबित होती है. साथ ही, ये भी पता चलता है कि पर्यावरण का बहुत नुकसान हो चुका है, फिर भी अगर हम संभल जाएं, तो प्रकृति दोबारा ख़ुद को निखारने की ताकत रखती है. 

Source: Brightside