सच में अद्भुत है दुनिया, जहां हर दिन कुछ अनोखी और अजीबो-ग़रीब चीजों से पाला पड़ता ही रहता है. देखा जाए, तो विश्व के हर कोने रहस्यों और कल्पना से परे चीज़ों से अटे पड़े हैं. इस ख़ास आर्टिकल में हम आपको लिए चलते हैं भारत से कोसों दूर मध्य-एशिया के ताज़िकिस्तान में, जहां एक अद्भुत झील कई वर्षों से अपनी अजीबो-ग़रीब चीज़ों की वजह से चर्चा का विषय रही है.
‘कराकुल झील’
यह मध्य-एशिया की चुनिंदा ख़ूबसूरत और अद्भत झीलों में गिनी जाती है. लगभग 380 वर्ग किमी में फैली ‘कराकुल झील’ प्राकृतिक सौंदर्यता के अद्भुत नज़ारे पेश करती है. अगर आप यहां आते हैं, तो चारों तरफ फैले पहाड़ और रेगिस्तान आपको काफ़ी ज्यादा प्रभावित करेंगे. जानकर हैरानी होगी कि इस झील का पहला नाम महारानी विक्टोरिया पर रखा गया था, लेकिन बाद में सोवियत संघ द्वारा इस झील का नाम ‘काराकुल’ रख दिया गया, जिसका मतलब होता है काली झील.
जानकारी के लिए बता दें कि इस झील का निर्माण धरती से उल्कापिंड के टकराने की वज़ह से हुआ था. यह घटना ढाई करोड़ साल पहले की बताई जाती है. हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है, इससे जुड़े सटीक प्रमाण का अभाव है.
एक ख़ारी झील
ये एक नमक की झील है, जिसे चारों तरफ़ से घेर दिया गया है, ताकि इसका पानी बाहर न जा सके. पानी बाहर न जाने के कारण ये काफ़ी ज़्यादा खारी हो चुकी है. इस झील में इतना नमक पाया जाता है कि इसमें एक ख़ास प्रजाति की मछली (Stone loach) को छोड़कर कोई और जीव नहीं रहता.
हालांकि, दूर-दूर से कई पक्षी इस झील के आकर्षण में यहां आ जाते हैं. झील के अंदर या झील के किनारों में जहां भी ज़मीन का टुकड़ा नज़र आता है, वो वहीं बैठ जाते हैं. इसमें कई हिमालय से आने वाले पक्षी भी शामिल हैं.
रंग बदलने वाली झील
जानकार बताते हैं कि ये झील दिन में कई बार अपने रंग को बदलती है. अगर सुबह से शाम तक यहां बैठा जाए, तो आप देख पाएंगे कि ये झील कभी नीली, कभी गहरे हरे रंग की, तो कभी फ़िरोजी रंग की हो जाती है. हालांकि, ऐसा क्यों होता है, इस विषय में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
नहीं कर सकता यहां कोई बोटिंग
‘कराकुल झील’ की सबसे अद्भुत बात यह है कि इसमें कोई भी बोटिंग नहीं सकता है. अगर आप इस ख़ूबसूरत झील को देखकर ये सोचें कि यहां अपनी नाव चला ली जाए, तो आप कामय़ाब नहीं होंगे. इसके पीछे की वजह है भारी मात्रा में नमक की मौज़ूदगी. अगर फिर भी कोई इसमें नाव चलाने की कोशिश करेगा, तो नाव के पलटने की पूरी आशंका रहेगी.
ये भी जानें
कहा जाता है कि World War II के समय इस झील के नज़दीक ही जर्मन सैनिकों को रखा गया था. इसके बाद ख़ानाबदोश कबीले वाले झील के पास अपने मवेशियों को चराने के लिए आया करते थे. इस नमक की झील के पास एक गांव भी है, जिसका नाम झील के नाम पर ही रखा गया है.
चूंकि यह मध्य एशिया के सबसे सूखे इलाकों में शामिल है, इस वजह से यहां बहुत कम ही लोग रहते हैं. फिर भी रोमांच के शौक़ीन यहां घूमने के लिए आते रहते हैं. यहां गर्मियों में बहुत ही ज़्यादा गर्मी पड़ती है और सर्दियों में बहुत ही ज़्यादा ठंड.
अगर आप भी रोमांच का शौक रखते हैं, तो इस अद्भुत स्थल पर आ सकते हैं, पर पूरी जानकारी और इंतज़ाम के साथ. उम्मीद है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा.