बचपन में हमारी जिज्ञासा को कोई अंत नहीं होता था. कंचे, कार्टून्स, कॉमिक्स के अलावा पतंग, लट्टू और गिल्ली-डंडे जैसी चीज़ें न केवल 80-90 के दशक के बचपन को मज़ेदार और यादगार बना देती थीं बल्कि हमें एक खुशहाल बचपन के मायने भी समझाने में भी कामयाब रही थीं. लेकिन खेल से इतर कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे, जिन्हें चीज़ें इकट्ठे करने का बेहद शौक होता था. फिर वो चाहे पेप्सी की बोतल में कंचे इकट्ठे करने का शौक हो या फिर अलग अलग माचिस की डिब्बियों को इकट्ठे करने का शौक.
बचपन में भले ही ये चीज़ें मज़ेदार लगती थी, लेकिन फिर उम्र बढ़ती है और धीरे धीरे सारी चीज़ें छूट जाती हैं लेकिन आज भी एक लड़की है जो बचपन के इस खास शौक को एक अलग ही स्तर पर ले गई हैं.
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श्रेया कतूरी को अलग-अलग तरह के माचिस की डिब्बियों को इकट्ठा करने का शौक है. उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर उनके ज़बरदस्त कलेक्शन को देखा जा सकता है.
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लेकिन आप सोच रहे होंगे कि एक माचिस के पैकेट द्वारा आखिर कैसे क्रिएटिव हुआ जा सकता है? श्रेया मानती हैं कि एक आर्टिस्ट को किसी परिस्थिति की ज़रूरत नहीं होती और वो किसी भी संसाधन को दिलचस्प तरीके से इस्तेमाल कर अपनी कला का अद्भुत नमूना प्रदर्शित कर सकता है, ऐसा ही कुछ श्रेया भी कर रही हैं.
वे इंस्टाग्राम से काफी प्रभावित थी और उन्होंने अक्टूबर 2014 में इंस्टाग्राम पर अपना अकाउंट बनाने का फ़ैसला किया. वे माचिस के कवर को वे महज एक कवर के तौर पर ही नहीं देखती हैं बल्कि वे उसे कला का माध्यम और एक प्रकार के प्रोपैगेंडा के तौर पर विज़ुअलाइज़ करती हैं. वो दुनिया भर के दिलचस्प मैच बॉक्स को इकट्ठा करती हैं और उन्हें अपनी तस्वीरों में करीने से लगाती हैं ताकि उनकी प्रासंगकिता और सार्थकता बनी रहे.
मैच बॉक्स के साथ दिलचस्प खिलवाड़ करने वाली श्रेया की इस आउट ऑफ़ द बॉक्स सोच के कई लोग कायल हैं. उन्होंने इसके अलावा ऐसे लोगों के साथ भी काम किया है जिन्हें माचिस के बॉक्स को इकट्ठा करने का शौक है. खास बात ये है कि इससे उन्हें देश और दुनिया भर से 100 से अधिक मैचबॉक्स मिले.
श्रेया के अकाउंट का नाम Artonabox है और श्रेया चाहती हैं कि लोगों को भी इसी तरह के विजु़अल माध्यमों का इस्तेमाल कर अपनी क्रिएटिवटी को निखारना चाहिए. श्रेया को अगर आप चाहें तो यहां फॉलो कर सकते हैं.
शुक्रिया श्रेया, हमें एक बार फिर बचपन की खूबसूरत यादें ताज़ा कराने के लिए.