Traditional Winter Food Of Uttarakhand: उत्तराखंड भारत के सबसे ख़ूबसूरत राज्यों में से एक है, ये अपनी प्राकृतिक सुंदरता, कला, संस्कृति और खान-पान के लिए जाना जाता है. देश का ये पहाड़ी राज्य अपनी विविधता के लिए दुनिया भर में भी काफ़ी मशहूर है. उत्तराखंड (Uttarakhand) इसलिए भी अन्य राज्यों से अलग है क्योंकि ये दो भागों कुमाऊं और गढ़वाल में बंटा हुआ है. ये दोनों ही रीज़न भाषा और खान-पान के मामले में एक दूसरे से अलग हैं. उत्तराखंड केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपने ‘पहाड़ी व्यंजनों’ के लिए भी काफ़ी मशहूर है. उत्तराखंडी व्यंजनों की ख़ास बात ये है कि इन्हें लकड़ियों और कोयलों पर पकाया जाता है. इसकी वजह से ये स्वादिष्ट के साथ-साथ पौष्टिक भी बन जाते हैं.
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देशभर में इन दिनों ठंड का मौसम चल रहा है. ऐसे में आज हम आपको उत्तराखंड के कुछ प्रमुख विंटर फ़ूड्स बारे में बताने जा रहे हैं. अगर आप भी विंटर वेकेशन पर उत्तराखंड जाने का प्लान जा रहे हैं तो वहां की ये प्रमुख ट्रेडिशनल विंटर फ़ूड (Traditional Winter Food Of Uttarakhand) ज़रूर ट्राय करें.
1- भट के डुबके
ये उत्तराखंड की सबसे प्रसिद्ध ट्रेडिशनल विंटर डिश है. ये ख़ासतौर पर उत्तराखंड के कुमाऊं रीज़न में बनाई जाती है. उत्तराखंड में ‘काला सोयाबीन’ काफ़ी मशहूर है, जिसे वहां ‘भट’ कहा जाता है. ये पौष्टिक आहार (दाल) के रूप में जाना जाता है. भट के डुबके/चुटकानी बनाने के लिए इसे पहले उबाला जाता है. इसके बाद इसे साबुत या सिलबट्टे में पीस लिया जाता है. फिर घी और पहाड़ी मसालों के साथ इसे भूनकर पकाया जाता है. इसे दाल की तरह इस्तेमाल किया जाता है और चावलों और रोटियों के साथ खाया जाता है.
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2- मड़ुवे की रोटी
उत्तराखंड में गेहूं, जौ, बाजरा और झंगुरा के आटे की रोटियां काफ़ी मशहूर हैं, लेकिन मड़ुवे की रोटी (Madua Ki Roti) यहां की सबसे पुरानी ट्रेडिशनल पहाड़ी डिश है. गढ़वाल और कुमाऊं दोनों इलाक़ों में ‘मंडवे की रोटी’ काफ़ी मशहूर है. फ़ाइबर से भरपूर ‘मड़ुवे की रोटी’ ख़ासतौर विंटर में ही खाई जाती है. क्योंकि इसकी तासीर काफ़ी गर्म मानी जाती है. इससे कैंसर जैसी बीमारी का ख़ात्मा करने के गुण पाये जाते हैं. भारत के अन्य उत्तरी राज्यों में जिस तरह से विंटर में ‘मक्के दी रोटी’ और ‘सरसों दा साग’ मशहूर है ठीक उसी तरह उत्तराखंड में ‘मड़ुवे की रोटी’ और ‘कंडाली कु साग’ मुख्य रूप से खाया जाता है.
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Winter Food Of Uttarakhand (उत्तराखंड)
3- कंडाली का साग
उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं दोनों इलाक़ों में में ‘बिच्छू घास’ काफ़ी मशहूर है. इसे गढ़वाल में ‘कंडाली’ और कुमाऊं में ‘सिंसूणा’ के नाम से जाना जाता है. कुमाऊं और गढ़वाल में कंडाली कु साग (कंडाली का साग) अन्य साग-सब्ज़ियों की तरह केवल विंटर में खाया जाता है. इसमें फ़ॉर्मिक एसिड पाया जाता है. इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन तत्व की मात्रा के साथ-साथ मैग्निज, विटामिन ए व कैल्शियम भी पाया जाता है. रक्तचाप जैसी बिमारियों के लिए ये औषधि का काम भी करता है. इसे आप मड़ुआ/कोदा, बाजरा और जौ की रोटी के साथ भी खा सकते हैं.
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4- फाणु
फाणू (Faanu) मुख्य रूप से एक ट्रेडिशनल गढ़वाली डिश है. ये आमतौर पर ठंड के मौसम में ही खाई जाती है. इसे ‘गहत की दाल’ से बनाया जाता है. इस दौरान ‘गहत की दाल’ को क़रीब 4 से 6 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है. इसके बाद इस दाल को सिलबट्टे में पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है. इसमें पानी का ख़ास ध्यान रखा जाता है, ये जितनी गाढ़ी बने उतनी ही बेहतर मानी जाती है. जब ये अच्छे से गाढ़ी हो जाती है तो इसमें बारीक कटा टमाटर, प्याज, अदरक, लहसन आदि डालकर अच्छे से पकाया जाता है. न्यूट्रिशन से भरतपुर इस दाल को आप चावल और रोटी दोनों के साथ खा सकते हैं.
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5- चैंसू
उत्तराखंड के गढ़वाल में चैंसू (Chainsoo) एक पौष्टिक आहार दाल है. कई जगह इसे ‘चैसोणी’ भी कहा जाता है. इसे ‘काले चने’, ‘उड़द’, ‘काले भट’ की दाल के इस्तेमाल से तैयार किया जाता है. इसमें सबसे पहले ‘उड़द की दाल’ और ‘भट्ट की दाल’ को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है, इसके स्वाद में इजाफे के लिए बारीक कटा टमाटर, प्याज, अदरक का पेस्ट बनाकर काफ़ी देर तक पकाया जाता है. गढ़वाल में इसे दिन के भोजन के तौर पर ख़ूब पसंद किया जाता है. इस दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण इसे पचाना मुश्किल होता है. इसीलिए इसे विंटर में खाना बेहतर रहता है.
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8- बाड़ी
बाड़ी (Badi) भी उत्तराखंड की प्राचीन ट्रेडिशनल डिश है. ये शायद ही भारत के किसी अन्य राज्य में बनाई जाती हो. इसे ख़ासतौर पर ‘मड़वे के आटे’ से बनाया जाता है. ये एक तरह का पहाड़ी हलवा है, लेकिन बेहद पौष्टिक आहार माना जाता है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले ‘मंडवे के आटे’ को गरम पानी में मिलकार हलवे की तरह गाढ़ा पकाया जाता है. फिर इसे लोहे की कढ़ाई में देशी घी और गुड़ के साथ अच्छे से भूना जाता है. इसे बनाने में 3 से 4 घंटे लगते हैं. उत्तराखंड में ठंड के मौसम में गर्म-गर्म बाड़ी खाने का अपना ही मज़ा है.
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