ट्विटर की ट्रोल सेना की ये आदत हो गई है कि बिना बात के किसी को भी लताड़ देती है. कभी किसी को कपड़ों के लिए, तो कभी किसी को उसके बेबाक बयान के लिए, तो कभी किसी को यूं ही.

जी सही पढ़ा आपने. इस बार ट्विटर फ़ौज ने मशहूर शेफ़ संजीव कपूर को उनकी एक रेसिपी के लिए ट्रोल कर दिया.

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संजीव कपूर, एक ऐसा नाम जिन्होंने हिन्दुस्तानी खाने को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई.

ट्रोल करने की वजह?

संजीव कपूर ने फ़्यूज़न करने की कोशिश की थी. मालाबारी खाना परंपरागत रूप से नॉन-वेज होता है और संजीव कपूर ने मालाबारी बीफ़ की तर्ज़ पर मालाबारी पनीर बनाया था. उन्होंने अपनी ये रेसिपी ट्विटर पर डाल कर लोगों से Reaction की उम्मीद की थी. 

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वीडियो डालते ही लोगों ने अपने Reaction दिए, लेकिन एक तरफ़ा. लोगों ने इस डिश को एक सकारात्मक बदलाव की तरह लेने के बजायया इसे अच्छा-बुरा कहने के बजाय संजीव को ही ट्रोल कर दिया. जैसे संजीव कपूर ने ये डिश बनाकर कुछ बहुत ही बुरा कर दिया हो. इस डिश का विरोध करने वाले अधिकतर लोगों में केरल के लोग थे. उनके हिसाब से मालाबारी खाने को पनीर संग रखना किसी पाप से कम नहीं और संजीव कपूर ने ऐसा कर उत्तर भारतीय खाना उनके ऊपर थोपने की कोशिश की है. 

मिसाल के तौर पर ये ट्विट-

इनका मानना है कि ‘पनीर मालाबारी नहीं है और सिर्फ़ चिकन, फ़िश और बीफ़ ही मालाबारी हैं.’

पनीर मालाबारी संस्कृति का हिस्सा न हो, लेकिन ये ‘कचरा’ नहीं है.

अगला ट्विट-

इस शख़्स का कहना है कि संजीव कपूर उत्तरी Junk Food को दक्षिणी संस्कृति से मिलाने की कोशिश कर रहे हैं. यही नहीं, इनका तो ये भी मानना है कि संजीव कपूर केरल की संस्कृति पर आक्रमण कर रहे हैं!

ठंड रखो भाई. एक डिश ही बनाई है.

तीसरा और बहुत ही बेहुदा ट्वीट-

अगली बार मैं ‘बनारसी बीफ़ फ़्राई’ रेसिपी लाऊंगा.

एक डिश को न सिर्फ़ केरल की संस्कृति पर आक्रमण, बल्कि हिन्दू एजेंडा तक कह दिया गया है.

भारत में जो चाइनीज़ बनाया जाता है, वो चाइनीज़ खाने का भारतीय वर्ज़न है. क्या कभी कोई चीनी हाय-तौबा मचाने भारत आया? जिस ‘चिकन टिक्का मसाला’ को Non-Vegetarians बड़े चाव से खाते हैं, वो ब्रिटेन का National Food है. अब क्या इस बात पर हर भारतीय, ब्रिटेन वालों से भिड़ जाये? Food Habits के हिसाब से डिश में परिवर्तन करना आम बात है और हो सकता है संजीव कपूर के इस फ़्यूज़न से Vegetarians भी थोड़ा-बहुत मालाबारी स्वाद का मज़ा ले लें, जो Non-Veg होने के कारण नहीं खा पाते. ऐसा होगा तो ग़लत हो जायेगा क्या? 

समाज में कुछ भी स्थिर नहीं रहता और खाने में होते परस्पर बदलाव इसका उदाहरण हैं.