हमारे देश में कई भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें हिंदी, इंग्लिश सबसे ज़्यादा बोली जाती हैं और संस्कृत थोड़ी बहुत. इसके चलते संविधान की 8वीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में संस्कृत भाषा की पहचान सबसे कम बोली जाने वाली भाषा के तौर पर की जाती है, जिस भाषा का वजूद हमारे सविंधान की सूची में ख़त्म हो रहा है, उसी भाषा को वाराणसी के ये वक़ील अपने सारे सरकारी कामों में करते हैं. इसे ‘देववाणी’ और ‘सुरभारती’ भी कहा जाता है. 

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दरअसल, इन वक़ील का नाम आचार्य श्याम उपाध्याय है. ये इसलिए संस्कृत का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इन्होंने देखा कि देशभर के वक़ील अक्सर हिंदी और अंग्रेज़ी में कोर्ट का सारा काम करते हैं लेकिन कोई भी संस्कृत का इस्तेमाल नहीं करता है. इसीलिए सातवीं कक्षा से इन्होंने ठान लिया था ये वक़ील बनेंगे और संस्कृत भाषा के ज़रिए ही अपना सारा काम करेंगे. 

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पिछले 42 सालों से श्याम उपाध्याय कागज़ पर लिकने से लेकर जिरह करने तक सारा काम संस्कृत में कर रहे हैं. संस्कृत से लगाव की वजह ये अने पापा को मानते हैं. आपको बता दें अने करियर के शुरुआती दौर में जब श्याम उपाध्याय जज के सामने संस्कृत में लिखा कोई काग़ज़ पेश करते थे तो वो हैरान हो जाते हैं. इतना ही नहीं आज भी जब वाराणसी के अदालत में कोई नया जज आता है तो वो इनकी संस्कृत भाषा को पढ़कर और सुनकर हैरान रह जाता है.

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श्याम उपाध्याय जी अपने हुलिये से भी सबसे अलग हैं, वो काला कोट पहनने के साथ-साथ माथे पर त्रिपुंड और तिलक लगाते हैं. इनका व्यक्तित्व जितना और व्यवहार दोनों ही बहुत सरल हैं. इनके पास जो भी केस लेकर आता है उसको भी बहुत ही सहजता से संस्कृत भाषा में समझाते हैं.