भारत एक ऐसा देश है जो हर धर्म, संस्कृति, वेश-भूषा, भाषा को ख़ुशी-ख़ुशी अपनाता है और इस बात को साबित करने के लिए मुझे कोई उदाहरण देने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि हम सब भारतीय हैं और हम सब जानते हैं कि हमने विदेशों की कौन-कौन सी चीज़ों को अपनाया है. फिर चाहे बात हो संस्कृति की या फिर खान-पान की. लेकिन हां ये बात और है कि हम विदेशी कल्चर और खान-पान को अपनाते तो हैं, लेकिन उसे अपना देशी चोला पहना कर, विशेषकर खान-पान के मामले में. वो क्या है न कि हमको स्वदेशीकरण करना बहुत अच्छे से आता है.
जी हां, जिस तरह से विदेशी हमारे इंडियन फ़ूड को पसंद करते हैं वैसे ही हम लोगों ने भी कई विदेशी फ़ूड आइटम्स को अपनाया है और अपनी डाइनिंग टेबल पर जगह दी है. मगर वो क्या है न कि हम इंडियंस को खाने का मज़ा तब तक नहीं आता है, जब तक कि उसमें तेल-मसाला अच्छे से न हो. हमने पिज़्ज़ा, बर्गर, थाई, लेबनीज़ फ़ूड के साथ-साथ चाइनीज़ फ़ूड जैसे चाऊमीन, मंचूरियन, चिलीपनीर, चिली पटैटो आदि को अपनी प्लेट के साथ-साथ पेट में भी जगह दी है.
अब मैं आती हूं मेन मुद्दे पर कि मुझे चाइनीज़ बहुत पसंद है, और वो भी देसी स्टाइल का चाइनीज़. और मेरा दावा है कि अधिकतर भारतीयों को भी वही पसंद है, तभी तो पिछले दो दशकों से शादी हो, या हो कोई पार्टी बिना चाइनीज़ फ़ूड के हर फ़ंक्शन अधूरा रहता है. कई बार मैंने लोगों को ये कहते हुए सुना है कि देखो फलां-फलां के यहां शादी में चाऊमीन ही नहीं था और इसके साथ ही बाकी खाने को बेस्वाद भी बता दिया.
अब क्योंकि बात चल रही है चाइनीज़ खाने की तो दोस्तों आपको पहले ये बताना चाहूंगी कि जो चाइनीज़ हम और आप बड़े स्वाद से खाते हैं वो असल चाइनीज़ है ही नहीं. नूडल्स में या चावल में White Vinegar, Soya Sauce या अजीनोमोटो डालने से ही चाइनीज़ नहीं बन जाता है.
अगर आपने गौर किया हो तो जब चाइनीज़ फ़ूड के ठेले पर चाऊमीन ऑर्डर करते हैं तो उसको बनाते वक़्त जो शेफ़ होता है, वो सबसे पहले कड़ाही में ख़ूब सारा तेल डालता है, उसके बाद प्याज़, पत्ता गोभी, गाजर, शिमला मिर्च, के साथ-साथ चिली सॉस और काली मिर्च भी डालता है, ऊपर से नमक का छिड़काव भी किया जाता है, जब सब्ज़ियां पक जाती हैं तब उसमें नूडल्स डाले जाते हैं और उसके बाद सिरका और सोया सॉस डाला जाता और प्लेट में डालकर आपके सामने पेश किया जाता है, और जब चाऊमीन के बनने की ये प्रक्रिया चल रही होती है तो आपके मुंह में पानी आ रहा होता है. हैं ना, भाई मेरे मुंह में तो आता है.
लेकिन दोस्तों अगर आप असली चाइनीज़ फ़ूड खाएंगे तो शायद खा ही नहीं पाएंगे. क्योंकि असली चाइनीज़ में तो ना ही काली मिर्च डाली जाती है, ना ही पनीर और ना ही इतना तेल. जी हां, चाइनीज़ फ़ूड में कोई ख़ास रंग नहीं होता है और वो अधिकतर उबला हुआ और बेस्वाद होता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि जो ऑथेंटिक चाइनीज़ फ़ूड होता है उसमें गोभी मंचूरियन नाम की कोई चीज़ एग्ज़िस्ट ही नहीं करती है और न ही पनीर चाऊमीन नाम का कोई व्यंजन.
मगर जो भी हो पर मुझे तो भाई अपना देसी चाइनीज़ ही पसंद है. जिसे हम कहते हैं Chin-jabi या चिन-जाबी यानि कि पंजाबी तड़के के साथ चाइनीज़.
मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि इंडिया ऑथेंटिक चाइनीज़ नहीं मिलता, बिलकुल मिलता है और चाइनीज़ के शौक़ीन वहां जाते भी हैं खाने. और जो लोग इन महंगे रेस्टोरेंट में जाकर चाइनीज़ खाते हैं, और उसके एवज में कई सारे पैसे भी देते है, तो मगर Sorry to Say पर उनको मैं यही कहना चाहती हूं कि अगर आपने ये पंजाबी तड़के या ख़ूब मिर्च-मसाले वाले चाइनीज़ का स्वाद नहीं चखा है, तो आपका जीवन बेकार है.
जी हां, जब तक ऑरेंज कलर के चाऊमीन, डार्क ब्राउन फ़्राईड राइस, लगभग काला दिखने वाला मानचाओ सूप, सुनहरे रंग में तले हुए स्प्रिंग रोल्स और मोमोज़ (अच्छे रेस्टोरेंट में इन्हें Dim-Sum भी कहा जाता है) के साथ लहसुन और प्याज़ वाली तीखी मिर्च की चटनी नहीं खाई, वो भी रोड साइड लगे ठेले के सामने खड़े होकर तो भाईयों-बहनों आपने कुछ नहीं खाया.
अरे भाई हम इंडियन हैं और हम अपने स्वाद के अनुसार किसी भी पकवान भारतीय स्वाद का तड़का और रंग देते हैं और उसका जो स्वाद होता है वो शायद विदेशियों को भी बहुत पसंद आता है.