हम लोगों को अक्सर शायराना अंदाज़ में कहते सुनते हैं कि ‘ज़िंदा तो हूं, मगर ज़िंदा महसूस नहीं करता.’ मगर आपको  जानकर हैरानी होगी कि इस दुनिया में ऐसे लोग हैं, जो वास्तव में ज़िंदा होने के बावजूद ज़िंदा महसूस नहीं करते. ऐसा एक मानसिक बीमारी के चलते होता है. इस बीमारी का नाम ‘कोटार्ड्स सिंड्रोम’ (Cotard’s syndrome) है.

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पीड़ित शख़्स अपने अस्तित्व को ही अस्वीकार कर देता है

ये एक दुर्लभ क़िस्‍म की बीमारी है, जिसमें शख़्स को ऐसा भ्रम होता है कि वो मर चुका है. उसे ऐसा भी लग सकता है कि उसका कोई अंग मौजूद नहीं है. ऐसे में इसे शून्यवादिता का भ्रम (नाईलिस्टिक डिल्यूज़न) और कई बार वॉकिंग कॉर्पस सिंड्रोम भी कहते हैं.

इस बीमारी से पीड़ित शख़्स को लगता है कि दुनिया में कोई भी चीज़ मौजूद नहीं है. उन्हें विश्वास हो जाता है वो मर चुके हैं या उनका शरीर सड़ रहा है. पीड़‍ित अपने ही अस्तित्व को अस्‍वीकार करने लगता है. यहां तक कि वो ख़ुद को ज़िंदा रखने के लिए महत्वपूर्ण चीज़ें जैसे- खाना, पीना और साफ़-सफ़ाई की भी ज़रूरत महसूस नहीं करते. इस बीमारी से पीड़ित कुछ व्यक्ति अपने पूरे शरीर को मरा मान लेते हैं. जबकि कुछ केवल विशिष्ट अंगों और आत्मा के संबंध में ऐसा महसूस करते हैं.

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बीमारी का डिप्रेशन से नज़दीकी संबंध है

बता दें, डिप्रेशन का कोटार्ड्स सिंड्रोम से काफ़ी निकट संबंध है. 2011 में एक शोध हुआ था, उसमें पाया गया कि इस तरह के जितने भी मामले आए हैं, उनमें  89% में डिप्रेशन के लक्षण मौजूद थे. इसके अलावा एंग्ज़ायटी, हेलोसिनेशन वगैरह भी इसके लक्षण हैं. 

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कौन लोग हो सकते हैं इस बीमारी का शिकार?

शोधकर्ता कोटार्ड्स सिंड्रोम के कारणों को लेकर पुख़्ता तौर पर कुछ नहीं बता पाए हैं. मगर रिसर्च से सामने आया है कि 50 से ज़्यादा उम्र वाले लोग इस बीमारी का शिकार हो सकते हैं. वहीं, 25 से कम उम्र वालों में भी इससे पीड़ित होने की संभावना हो सकती है. ख़ासतौर से महिलाओं को जोख़िम ज़्यादा होता है. इसके अलावा, दिमाग़ी इन्फ़ेक्शन, डिमेंशिया और स्ट्रोक वगैरह से पीड़ित व्यक्ति भी इसका शिकार हो सकते हैं. 

इस बीमारी का इलाज क्या है?

ये बीमारी बहुत दुर्लभ है. अभी तक इसे मेंटल डिसऑर्डर नहीं माना गया है. ऐसे में इसका कोई पुख़्ता इलाज भी नहीं है. हालांकि, इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी (ECT) का इस्तेमाल किया जाता है. ये गंभीर अवसाद के लिए भी एक सामान्य उपचार है. इसमें मरीज़ के दिमाग़ में इलेक्ट्रिक करेंट पास किया जाता है. मगर इस इलाज में जोखिम भी है. क्योंकि इससे याददाश्त जाना, मांसपेशियों में दर्द वगैरह की शिकायत हो सकती है.