Fevicol: फ़ेविकोल हर बच्चे की स्टेशनरी का हिस्सा नहीं, बल्कि बचपन है. उंगलियों में चिपका कर फिर उसे धीरे-धीरे छुड़ाना, छोटी सी ही चीज़ क्यों न टूट जाए फ़ौरन फ़ेविकोल से जोड़ने लगना, ये सब तो बचपन की यादें हैं. मगर फ़ेविकोल से बचपन में क्या चिपके बड़े होने तक ये साथ है. बचपन से लेकर बड़े तक फ़ेविकोल (Fevicol) का इस्तेमाल करने के बाद क्या आप जानते हैं कि इसमें होने वाले चिपचिपे पदार्थ को क्या कहते हैं? क्योंकि हम जिसे फ़ेविकोल कहते हैं वो तो कंपनी का नाम है. ट्यूब या बॉक्स के अंदर होने वाले Sticky Substance को फ़ेविकोल (Fevicol) नहीं कहते हैं, बल्कि इसका तो कुछ और ही नाम है.

Fevicol
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चलिए, फटाफट जान लेते हैं कि आख़िर इसे कहते क्या हैं?

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1959 में पहली बार मार्केट में उतरने वाला फ़ेविकोल आज क़रीब 54 देशों में बिकता है, जिसमें 50 हज़ार लोकेशंस तो केवल भारत की हैं. फ़ेविकोल भारतीय ब्रांड है, जिसका स्वामित्व Pidilite Industries Limited के पास है. अब बात करते हैं कि, इसके अंदर होने वाले पदार्थ के बारे में तो ये एक पॉली-सिंथेटिक रेजिन (Poly-Synthetic Resin) है, जिसे कृत्रिम राल भी कहते हैं वहीं इसमें होने वाले सफ़ेद चिपचिपे पदार्थ को Adhesive कहते हैं.

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फ़ेविकोल का आविष्कार कंस्ट्रक्शन के काम के लिए किया गया था, जिसके मुख्य ग्राहक कारपेंटर थे. मगर धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल घरों में रोज़मर्रा की चीज़ें चिपकाने में होने लगा क्योंकि गोंद या लेई के इस्तेमाल में ज़्यादा दिक्कतें होती थीं. कंपनी में दो तरह के Fevicol बनते हैं पहला Fevicol MR और दूसरा Fevicol SH शामिल हैं. Fevicol MR का इस्तेमाल बॉन्डिंग पेपर, कार्डबोर्ड, प्लाईवुड, लकड़ी, थर्माकोल और फ़ैब्रिक को चिपकाने में होता है. तो वहीं, Fevicol SH का इस्तेमाल लकड़ी, प्लाईवुड, विनियर, लेमिनेट और MDF के लिए किया जाता है.

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आपको बता दें, फ़ेविकोल ने मार्केट में अपनी पकड़ अपने कस्टमर्स के कंफ़र्ट का ध्यान रखकर बनाई है, जब घरों में इसका इस्तेमाल बढ़ा तो कंपनी ने छोटे डिब्बे और ट्यूब बनाना शुरू कर दिया. फ़ेविकोल के Phrase काफ़ी मज़ेदार थे, “दम लगा कर हईशा, “ज़ोर लगा कर हईशा”, “फ़ेविकोल का मज़बूत जोड़ है, टूटेगा नहीं”.