फ़िल्मों में आपने कई बार देखा होगा कि एक भ्रष्ट या पैसों का लालची पुलिस वाला कई बार कमज़ोर लोगों की आपराधिक रिपोर्ट या FIR लिखने से मना कर देता है. ऐसा दोस्तों असल ज़िंदगी में भी किसी के साथ हो सकता है, क्योंकि भारत में भ्रष्टाचार और भेदभाव कोई नई बात नहीं है. वहीं, बिना रिपोर्ट दर्ज हुए पुलिस आपके मामले की जांच नहीं करेगी. तो दोस्तों, इस स्थिति में क्या करना चाहिए, वो हम विस्तार से इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं. इस लेख को पढ़ने के बाद आप जान जाएंगे कि एफ़आईआर न लिखने की स्थित में आप कौन से क़दम उठाकर अपनी रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं. 

संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध 

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इस बात को हमेशा याद रखें कि किसी आपराधिक मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाना आपका अधिकार है. वहीं, ऐसे मामलों में आपकी मदद करना एक पुलिसवाले की ज़िम्मेदारी है. वहीं, अपराध दो प्रकार के होते हैं एक संज्ञेय (जैसे बलात्कार, दंगा, लूट, मर्डर आदि) और दूसरा गैर-संज्ञेय (जालसाजी, उपद्रव या धोखाधड़ी) अपराध. संज्ञेय मामलों में पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करना ज़रूरी हो जाता है. वहीं, गैर-संज्ञेय मामलों में पुलिस विशेष कार्रवाई कर सकती है.  

क्या करें अगर एफ़आईआर दर्ज न हो रही हो? 

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जैसा कि हमने बताया कि संज्ञेय मामलों में पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करना ज़रूरी हो जाता है. लेकिन, पुलिस वाला ऐसा नहीं कर रहा है, तो आप उच्च अधिकारी के पास जाकर लिखित शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

CrPC सेक्शन 156 (3) 

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अगर उच्च अधिकारी के पास जाकर भी आपकी एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई है, तो आप CrPC के सेक्शन 156 (3) के तहत मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अर्ज़ी देकर अपनी पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं. एक मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के पास ये पावर होता है कि वो रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है.  

पुलिस वाले पर एक्शन 

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अगर मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के आदेश के बाद भी पुलिस वाला रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर दे, तो उसके खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार सख़्त एक्शन लिया जाएगा. वहीं, कई बार पुलिस वाले एफ़आईआर लिखने से इसलिए भी मना कर देते हैं, क्योंकि कई ऐसे मामले भी देखे गए हैं जब किसी के खिलाफ़ झूठी एफ़आईआर दर्ज करवा दी गई है. इसलिए, पुलिस बहुत सोच-समझकर एफ़आईआर दर्ज करती है.