ड्राईफ़्रूट्स हमारी हेल्थ के लिए बहुत फ़ायदेमंद होते हैं. इसका रोज़ सेवन करने से शरीर को कई बड़ी समस्याओं से निजात मिलती है, लेकिन ये महंगे इतने होते हैं कि इन्हें ख़रीदना सबके बस की बात नहीं होती है. कई बार सुना भी होगा, कि कुछ लोग मूंगफली को ग़रीबों का बादाम कहते हैं. ख़ैर ये तो हुई मज़ाक की बातें, लेकिन ये वाकई बहुत महंगे होते हैं. ऐसे ही एक ड्राईफ़्रूट के बारे में आज बात करेंगे, जो हेल्दी होने के साथ-साथ बहुत महंगा भी होता है और ये इतना महंगा क्यों होता है? इसके पीछे की वजह क्या है?

तो चलिए जान लीजिए वजह:

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पिस्ता (Pistachios) की खेती करना आसान नहीं है

विज्ञान की मानें तो,

पिस्ते के महंगे होने के पीछे की वजह इसकी खेती से जुड़ी है. दरअसल, पिस्ते की खेती करना बहुत मुश्क़िल होता है. साथ ही इसकी देखभाल करना भी आसान नहीं होता है, जब पिस्‍ते के पेड़ (Pistachios Tree) लगाए जाते हैं, तो उस एक पेड़ में फल आने में कम से कम 15 से 20 साल लग जाते हैं. इसके चलते इसकी आपूर्ति उस मात्रा में नहीं हो पाती है, जिस मात्रा में खपत है, इसलिए ये भी पिस्ता (Pistachios) बहुत महंगा होता है. हालांकि, सप्लाई को पूरा करने के लिए अब कैलिफ़ोर्निया और ब्राज़ील सहित दुनिया के कई देशों में बड़े स्‍तर पर पिस्ता की खेती की जा रही है.
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15 साल बाद भी नहीं मिलता पर्याप्त पिस्ता (Pistachios)

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्‍लांट (CSIR) के विशेषज्ञ आशीष कुमार के मुताबिक़,

पिस्ते के पेड़ को तैयार करने में 15 से 20 साल लग जाते हैं, लेकिन किसान को फिर भी पर्याप्त मात्रा में पिस्ता नहीं मिल पाता है. अगर हिसाब लगाया जाए तो, एक पेड़ से सिर्फ़ 22 किलो पिस्ता मिलता है. इसी के चलते, पिस्ते का उत्पादन उसकी आपूर्ति से हमेशा कम होता है. इस मामले में अगर देखा जाए तो, ब्राज़ील का एक ऐसा देश है, जहां एक पेड़ से लगभग 90 किलो पिस्‍ता उत्पादित होता है.
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पिस्‍ता की क़ीमत बढ़ने की ये वजह है

रिपोर्ट के अनुसार, पिस्ते को होने में जो 15-से 20 साल लगते हैं उस दौरान इसके पेड़ों की देखभाल करने में मेहनत और पैसा बहुत लगता है, लेकिन फिर भी दावे से नहीं कहा जा सकता है कि खर्च के मुताबिक़ पिस्ता उत्पादित भी होगा. और जब ज़्यादा पिस्ते की पैदावर कम होती है तो उसकी लागत निकलाने के लिए इसे महंगा बेचा जाता है. इसे उगाने में ज़्यादा पानी, ज़्यादा ज़मीन, ज़्यादा पैसा और ज़्यादा मज़दूर लगते हैं.

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प्रति वर्ष नहीं होता पिस्ता

हर साल पिस्ता नहीं होने की वजह से किसानों को ज़्यादा ज़मीन लेनी पड़ती है और उसमें दो फसल लगानी पड़ती है, जिनमें एक-एक साल छोड़कर पिस्ते की फसल होती है. यही वजह है कि पर्याप्त पेड़ होने की वजह से भी मांग और आपूर्ति के अनुसार पिस्ता नहीं हो पाता है.

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एक-दो या दस नहीं, बल्कि ज़्यादा मज़दूर लगते हैं

पिस्ते को आप तक पहुंचाने के लिए कई श्रमिकों की मेहनत और सूझ-बूझ होती हैं. दरअसल, जब पिस्ते की फसल खड़ी हो जाती है तो उसे एक-एक मज़दूर एक-एक करके पेड़ से तोड़ते हैं, फिर उसे साफ़ करते हैं और उसमें से निर्यात के लिए भेजने वाले अच्छे-अच्छे पिस्ते को अलग करते हैं. इस वजह से इसकी कटाई और छंटाई के लिए मज़दूर ज़्याद लगते हैं तो उनकी लागत भी ज़्यादा आती है.

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आपको बता दें, इतनी मेहनत से तैयार होने वाले पिस्ते में प्रोटीन, पोटेशियम, विटामिन-बी6 और कॉपर जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो शीरर के लिए फ़ायदेमंद होते हैं. हेल्‍थलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक़, पिस्‍ता वज़न, ब्‍लड शुगर और कोलेस्‍ट्रॉल को कम तो करता है साथ ही आंखों के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद होता है.