‘काले मेघा- काले मेघा पानी तो बरसाओ…’ फ़िल्म हो या असल ज़िंदगी, काले बादलों को देखते ही हम बारिश की उम्मीद करने लगते हैं. बारिश वाले बादलों की यही पहचान होती है. अगर उनका रंग काला है, तो मतलब उसमें पानी भरा है, जो कभी भी धरती पर बूंदा-बांदी कर सकते हैं. 

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मगर कभी आपने सोचा है कि आख़िर पानी भरे बादलों का रंग काला क्यों नज़र आता है? क्योंकि, ऐसे तो बादलों का रंग सफ़ेद प्रतीत होता है और पानी का रंग भी काला नहीं दिखता. फिर क्या वजह है? आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देंगे.

बादलों का रंग काला क्यों नज़र आता है?

आपको बता दें, जिस वजह से बादल सफ़ेद नज़र आते हैं, उसी कारण से वो काले रंंग के भी दिखते हैं. दरअसल, विज्ञान कहता है कि कोई भी वस्तु जिस रंग को परावर्तित यानि रिफ़्लेक्ट करती है, वो उसी रंग की दिखती है. साथ ही, जो वस्तु सभी रंगों को रिफ़्लेक्ट कर देती है वो सफ़ेद नज़र आती है. वहीं, जो वस्तु सभी रंग अवशोषित यानि सोख लेती है, वो काली दिखती है. 

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अब होता ये है कि बादलों में बर्फ़ या पानी की बूंदे होती हैं. जब इन पर सूर्य से निकलने वाली किरणें पड़ती हैं, तो वो परावर्तित हो जाती हैं. दरअसल, बर्फ या पानी की बूंदे सूर्य से निकलने वाली किरणों की वेवलेंथ से बड़ी होती है, जिसके चलते वो इन्हें रिफ़्लेक्ट कर देती है. ऐसे में सिर्फ़ सफ़ेद रंग ही अवशोषित हो पाता है. इसलिए हमें बादल का रंग सफेद दिखता है.

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हालांकि, बारिश के बादल अपनी मोटाई या ऊंचाई के कारण सफ़ेद के बजाय काले रंग के दिखते हैं. होता ये है कि बादल जितना अधिक पानी की बूंदों और बर्फ के क्रिस्टल को इकट्ठा करता है, उतना ही मोटा और घना हो जाता है. ऐसे में सूर्य की बहुत ही कम किरणें उससे गुज़र पाती हैं. ऐसे में जब हम ज़मीन से बादलों को देखते हैं, तो वो हमें काले नज़र आते हैं.

बादलों की मोटाई जितनी विकराल होती जाती है, ये प्रभाव उतना ही बढ़ता जाता है. ये प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक बादल बरस नहीं जाते. क्योंकि, पानी से भरे बादल प्रकाश को परावर्तित करने के बजाय ज़्यादा अवशोषित करते हैं.