ज़िंदा हैं तो बीमार भी पड़ेंगे. कभी मौसम बदलने से तो कभी कुछ ग़लत-सलत खाने के चक्कर में. कारण कुछ भी, लेकिन बीमारी का आना-जाना तो लगा ही रहता है. आजकल तो ज़्यादा ही बवाल चल रहा है. ऐसे में सेहत ज़्यादा ख़राब न हो और हम जल्दी ठीक हो जाएं, इसलिए डॉक्टर साहब के दरवाज़े पर माथा टेकना ही पड़ता है.
डॉक्टर साहब भी पुड़िया में बांधकर या फिर कुछ दवाइयां लिखकर हमें रवाना कर देते हैं. इसमें कुछ टैबलेट और कैप्सूल होते हैं. मग़र क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि दवा के ज़्यादातर कैप्सूल दो अलग-अलग रंग के होते हैं, जबकि टैबलेट के साथ ऐसा नहीं होता. तो सवाल ये है कि आख़िर ऐसा क्यों होता है?
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सबसे पहले कैप्सूल की बनावट को समझ लीजिए
अलग-अलग रंग के पीछे वजह
इन कैप्सूल में दवा भरने का काम चाहें मशीन करे या फिर वर्कर, अलग-अलग साइज़ की पहचान तो करनी ही पड़ेगी. दरअसल, दवा भरने के लिए बड़ा हिस्सा जो कि कंटेनर होता है, उसको नीचे रखा जाता है. ताकि उसमें दवा स्टोर की जा सके. वहीं कैप कहलाने वाले छोटे हिस्से को ऊपर से कैप्सूल का मुंह बंद करने के लिए लगाना होता है.
अब गौर करने वाली बात ये है कि जहां हज़ारों-लाखों दवाइयां एक साथ बनाई जा रही हों, वहां, इन दोनों हिस्सों का एकसाथ मिक्स हो जाना कितनी मुश्किलें पैदा कर देगा. मसलन, अग़र उठा-उठाकर हर हिस्से की अलग-अलग पहचान करनी पड़ जाए, फिर तो कम समय में ज़्यादा दवाइयां बनाना नामुमकिन ही हो जाएगा.
बस इसी समस्या से निजात पाने के लिए कैप्सूल के दोनों हिस्सों को अलग-अलग रंग का बनाया जाता है. ऐसा करने से कुछ और भी फ़ायदे होते हैं. मसलन, रंग-बिरंगे कैप्सूल दवा खाने में आनाकानी करने वाले बच्चों को भी आकर्षित करते है और दवा कंपनियों को अपनी दवा की अलग पहचान के लिए कई सारे कलर-कॉम्बिनेशन भी प्रदान करते हैं.
उम्मीद है कि अब आप जब दो रंग वाले कैप्सूल देखेंगे, तो इसके पीछे की वजह भी जानते होंगे.