कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप अपने कमरे में बैठ कर आराम कर रहे हैं. अचानक से आपको कुछ काम याद आ जाता है जिसके लिए आपको  बाहर धूप में जाना पड़ेगा. आप जैसे ही तेज़ धूप में पहुंचते हैं, आपको छींक आ जाती है. अगर आपके साथ ऐसा नहीं होता तो ये बात आपको अजीब लग सकती है लेकिन आपके साथ ऐसा होता है तो हम आपको बता देना चाहते हैं कि शायद आप एक ‘Sun Sneezer’ हैं. 

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धूप में छींकने को मेडिकल की भाषा में Photic Sneeze Reflex(PSR) कहते हैं. साथ ही इसको Autosomal Dominant Compulsive Helio-ophthalmic Outburst भी कहा जाता है जिसका शार्ट फ़ॉर्म ACHOO होता है. मज़ेदार बात ये भी है कि छींक आने की इस प्रक्रिया को ‘अछू’ नाम दिया गया. भले ही ये सुनने में अजीब लगे मगर ये बहुत कॉमन है. ऐसा माना जाता है कि पूरे विश्व की 18-35% जनसंख्या को PSR है, यानी हर 10 लोगों में से 2-3 लोगों को ऐसा होता है.

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कैसे काम करता है PSR?

अब तक आप ये जान चुके हैं कई धूप में छींक आने को PSR कहते हैं. मगर ये काम कैसे करता है और लोगों को क्यों होता है इस बात का पता अभी तक वैज्ञानिक लगा नहीं पाए हैं. अगर कोई इंसान इस समस्या से जूझ रहा है तो धूप के संपर्क में आते ही उसे 1-10 छींक आ सकती हैं और फ़िर लगभग 24 घंटे तक आपको छींक नहीं परेशान करेंगी. ये सारी बातें अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग तरह से काम करती हैं.

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कितना पुराना है PSR?

जिन लोगों ने इसके बारे में नहीं सुना उन्हें शायद लगे कि ये कोई नयी चीज़ है मगर धूप में छींक आना सदियों पुराना है. ग्रीक दार्शनिक अरस्तू 350 ई.पू. इस बात का ज़िक्र किया था. अरस्तू ने अपनी किताब Problems में लिखा था, “सूरज की गर्मी से छींक क्यों आ जाती हैं?” उन्होंने अनुमान लगाया कि सूरज की गर्मी से नाक के अंदर पसीना आता है, जिससे नमी को हटाने के लिए छींक आती है. अरस्तु का ये दावा सही साबित नहीं हुआ.

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क्या कहती है आज की विज्ञान?

आज की विज्ञान 1964 में वैज्ञानिक हेनरी एवरेट (Henry Coffin Everett) के द्वारा दिए गए सिद्धांत पर काम कर रही है. एवरेट पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने इसे ‘The Photic Sneeze Effect’ नाम दिया था. क्योंकि तंत्रिका तंत्र बहुत तेज़ी से संकेतों को भेजता है. डॉ. एवरेट ने अनुमान लगाया कि ये सिंड्रोम मनुष्य के तंत्रिका तंत्र से जुड़ा हुआ है और हो सकता है इसके आने के पीछे नर्व सिग्नल की कन्फूज़न हो. 

दरअसल तेज़ प्रकाश से आंखों की नर्व उत्तेजित हो जाती है और दिमाग़ को सिग्नल भेजती है. दिमाग़ को ऐसा लगता है कि कुछ सिग्नल्स नाक से भी आ रहे हैं. जिसे चलते किसी को छींक आ जाती है. हालांकि यह अभी बस थ्योरी ही है, असल में क्या होता है इसके बारे में अभी तक पता नहीं चल पाया है. 

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ये थी हज़ारो साल पुरानी गुत्थी जो अभी तक सुलझ नहीं पायी है. मगर वैज्ञानिक अभी भी इसका असल कारण पता लगा रहे हैं ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि कहीं इसका किसी बीमारी से सम्बन्ध है या नहीं.