हम जब भी किसी भारी चीज़ जैसे लोहा-पत्थर को पानी में डालते हैं, तो वो डूब जाते हैं. ऐसा हर उस चीज़ के साथ होता है, जो सॉलिड होती है. मगर आपने गौर किया होगा कि बर्फ़ के साथ ऐसा नहीं होता. एक बर्फ़ कितनी ही भारी क्यों न हो, वो पानी पर डूबने के बजाय तैरने लगती है. मगर कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?
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आख़िर कोई चीज़ पानी पर तैरती कैसे है?
पहले ये समझना ज़रूरी है कि कोई भी चीज़ पानी पर तैरती कैसे है. दरअसल, किसी भी चीज़ का पानी पर तैरना उसके घनत्व पर निर्भर करता है. इसका मतलब है कि जिस चीज़ का घनत्व पानी से ज़्यादा होगा, वो चीज़ पानी में डूब जाएगी. वहीं,अगर कोई चीज़ अपने घनत्व से ज़्यादा पानी को हटा पाती है, तो वो तैरती रहेगी.
अब किसी भी ठोस पदार्थ में तरल पदार्थ की तुलना में ज़्यादा मॉलिक्यूल्स होते हैं. ये मॉलिक्यूल्स बेहद पास-पास होते हैं, जिसके कारण ही ये इतना कठोर हो जाता है. साथ ही, वज़न भी बढ़ जाता है. ऐसे में ठोस वस्तु का घनत्व पानी के मुकाबले ज़्यादा होता है और वो पानी में डूब जाती है.
तो फिर बर्फ़ कैसे तैरती है?
वैज्ञानिक भाषा में समझें तो पानी के बाकी पदार्थों से अलग होने की वजह इसकी हाइड्रोज़न बांडिंग है. पानी के मॉलिक्यूल्स हाइड्रोज़न बांड से जुड़े होते हैं. इसमें हाइड्रोज़न के दो पॉज़िटव चार्ज और ऑक्सीज़न का एक निगेटिव चार्ज होता है. जब पानी ठंडा होकर ठोस होना शुरू होता है, तो उसमें हाइड्रोजन आयन ऑक्सीजन आयन को दूर रखने के लिए अपनी खास स्थिति बना लेते हैं, जिससे मॉलिक्यूल्स ज्यादा पास नहीं आ पाते और उसका घनत्व नहीं बढ़ पाता है.
इसका मतलब ये है कि पानी के लिए घनत्व तापमान में कमी के साथ घटता है. जिससे एक बर्फ़ पानी की तुलना में कम घनी हो पाती है. बता दें, बर्फ़ का घनत्व पानी से लगभग 9 फ़ीसदी कम होता है.