टॉयलेट पेपर(Toilet Paper) ऐसी चीज़ है जो हर किसी के बाथरूम में नज़र आ जाता है. अलग-अलग टाइप और क्वालिटी के इन टॉयलेट पेपर्स में एक बात कॉमन होती है वो है इनका रंग. सभी टॉयलेट पेपर सफ़ेद रंग के होते हैं, लेकिन ऐसा क्यों होता है कभी सोचा है?

चलिए आज आपके इस सवाल का जवाब भी दिए देते हैं.   

कैसे बनता है टॉयलेट पेपर?

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इसके रंग का रहस्य जानने से पहले आपको ये पता होना चाहिए कि टॉयलेट पेपर बनते कैसे हैं. टॉयलेट पेपर Cellulose फ़ाइबर से बनते हैं जो हमें पेड़ों से या फिर रिसाइकिल किए गए पेपर से मिलता है. इन दोनों से ही टॉयलेट पेपर बनता है. इसमें पानी मिलाकर इसका Pulp यानी गूदा बनाया जाता है. इससे सभी प्रकार के पेपर बन सकते हैं, लेकिन जब इसमें ब्लीच किया जाता है तब इससे टॉयलेट पेपर बनता है बिलकुल नर्म-नर्म. 

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ब्लीचिंग के लिए Hydrogen Peroxide या Chlorine का इस्तेमाल किया जाता है. इससे पेपर का कलर सफ़ेद हो जाता है. सेल्यूलोज फ़ाइबर भी सफ़ेद होता है मगर उसमें कुछ और चीज़ें मिक्स होती हैं जिससे वो हल्का भूरा या पीला दिखता है. इसलिए ब्लीचिंग करनी पड़ती है. यानी कच्चा माल ही टॉयलेट पेपर को सफ़ेद बनाता है.

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वहीं रिसाइकिल पेपर से जब भी टॉयलेट पेपर बनाया जाता है वो अमूमन ऑफ़िस में इस्तेमाल होने वाले सफ़ेद काग़ज या फिर कॉपी के पेपर होते हैं. इसलिए इसका भी रंग व्हाइट ही होता है. इसके अलावा सफ़ेद टॉयलेट पेपर पर्यावरण के अनुकूल होता है और जल्दी ख़त्म(सड़) हो जाता है. एक कारण ये भी है कि रंगीन टॉयलेट पेपर के इस्तेमाल से कुछ लोगों को स्किन एलर्जी हो सकती इसलिए कंपनियां इन्हें सफ़ेद रंग का ही बनाना पसंद करती हैं.

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चलते-चलते आपको ये भी बता दें कि,1950 में अमेरिका में रंगीन टॉयलेट पेपर इस्तेमाल हुआ करते थे, लेकिन बाद में ये चलन ख़त्म हो गया. क्योंकि ये लोगों और पर्यावरण के लिए हानिकारक थे और इसे बनाने में लागत भी बढ़ जाती थी.

टॉयलेट के बेस्ट फ़्रेंड टॉयलेट पेपर के रंग के पीछे की ये स्टोरी कैसी लगी कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताना.