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आगे-पीछे के टायर अलग-अलग उद्देश्य के लिए होते हैं.
ट्रैक्टर के आगे दो छोटे टायर होते हैं और पीछे दो बड़े. इन दोनों का ही उद्देश्य अलग-अलग होता है. इसमें, ट्रैक्टर की हैंडलिंग, उसकी ग्रिप, बैलेंस, तेल की खपत जैसी कई चीज़ें शामिल हैं. इन सभी बातों को ध्यान रखते हुए ही ट्रैक्टर के टायर डिज़ाइन किए गए हैं. तो चलिए, दोनों तरह के टायरों को रोल जान लेते हैं.
ट्रैक्टर के अगले टायर छोटे होने का कारण
आगे के छोटे टायर से ट्रैक्टर की दिशा तय की जाती है. ये सीधा स्टेयरिंग से जुड़े होते हैं. स्टेयरिंग घुमाने पर ही ये घूमते हैं. इनका रोल सिर्फ़ इतना ही होता है. हालांकि, इसका एक फ़ायदा ये भी है कि छोटे टायर होने के चलते इसे घुमाना आसान हो जाता है. मतलब है कि मोड़ पर स्पेस कम हुआ, तो भी इसे घुमा सकते हैं. इसके लिए सामने की ओर ज़्यादा स्पेस की ज़रूरत नहीं पड़ती.
टायर के छोटे होने के कारण इसकी हैंडलिंग तो आसान होती ही है. साथ ही, तेल की खपत भी कम होती है. आगे के छोटे टायर होने के कारण इंजन पर कम वज़न पड़ता है. ऐसे में तेल की खपत भी कम ही होती है.
पिछले टायर बड़े होने का कारण
ये एक तरह से सपोर्ट सिस्टम है. दरअसल, इसके पीछे वजह ट्रैक्टर का डीज़ल इंजन भी है, जो काफ़ी पावरफ़ुल होता है. मगर उससे भी ज़्यादा पावरफ़ुल होता है ट्रैक्टर का टॉर्क, जो इसके पहिया घुमाने या खींचने की क्षमता को कहते हैं. किसी भी कार या किसी दूसरी व्हीकल के मुकाबले ट्रैक्टर में टॉर्क करने की क्षमता डेढ़ गुणा ज़्यादा होती है. वहीं, पिछले बड़े टायरों की वजह से ये संतुलित भी रहता है. क्योंकि ट्रैक्टर में इंजन आगे की तरफ़ होता है. इससे बैलेंस बना रहता है.