हम सभी ने अपने जीवन में कभी न कभी बदला लेने की भावना को महसूस किया होगा. वो एक पल है जब आप महसूस करते हैं कि आपके साथ ‘धोखा’ हुआ है. इस धोखे को जब आप देर तक सोचते हैं तो पाते हैं कि जब आप किसी भी स्वरूप में अपना भरोसा टूटा हुआ पाते हैं तो आपको लगता है कि धोखा हुआ है. और आपके भीतर बदला लेने की भावना उपजने लगती है.
जब भी हमें लगता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है हम तुरंत एक अज़ीब सी मनोस्थिति में चले जाते हैं. हम चाहते हैं कि जैसा उसने मेरे साथ किया उसके साथ वैसा ही कर दें. आप चाहते हैं कि जो दुख आपने महसूस किया, अगले व्यक्ति को भी वही दुख मिले. यही बदला/ रिवेंज है.
लेकिन ये सबकुछ जो आपके साथ होता या घटता है, ये सिर्फ़ बाहरी नहीं है. शायद आपको जान कर हैरानी होगी कि हमारे दिमाग़ में ही एक ऐसा रसायन है जो भरोसा टूटने पर इस तरह से काम करता है कि हम बदला लें.
हमारे दिमाग़ में ऑक्सीटॉसिन के रिसाव की वजह से ही हम खुश, सुरक्षित या भरोसा महसूस कर पाते है. जैसे ही आप का भरोसा टूटता है तो इसी ऑक्सीटोसिन का रिसाव कम हो जाता है. और ठीक इस समय ब्रेन का एमीग्लाडा हिस्सा भी एक्टिवेट हो जाता है.
ये हिस्सा आपको ख़तरे से बचाने के लिए तैयार करता है. वो आपको इस तरह के संदेश देता है कि अगर आप इस स्थिति से लड़ेंगे नहीं, यानी कि बदला नहीं लेंगे तो आपके साथ ऐसा फिर हो सकता है. आपका दिमाग़ आपको बचाने की कोशिश कर रहा होता है, जिसके कारण आप बदला लेने जैसे भाव को महसूस करते हैं.
बदला लेने की भावना हम सबके भीतर स्वाभाविक तौर होती ही है. लेकिन ज़्यादातर लोग अपने मॉरल वैल्यूज़ की वजह से समझते हैं कि ऐसा करना ठीक नहीं है और इससे निपटने की कोशिश भी करते हैं. दूसरी तरफ़, जो लोग ज़्यादा माफ़ कर पाते हैं, वे बदले की भावना को आसानी से रोक पाते हैं.
इंसानी दिमाग़ से ज़्यादा ताक़तवर कुछ नहीं. जहां हमारे दिमाग़ के कुछ हिस्से और रसायन, एमीग्लाडा, हाइपोथैलेमस और ऑक्सीटोसिन बदले की भावना पैदा कर रहे होते हैं, वहीं दिमाग़ का Prefrontal Cortex हिस्सा ज़िम्मेदारी और तर्कपूर्ण व्यवहार का ध्यान रखता है. इस हिस्से की वजह से ही हम कई बार ग़ुस्से में कोई क़दम लेने से भी बचते हैं.
तो जब आपका दिल दिमाग़ बदला लेने की भावनाओं से भरा हो, तो आपके दिमाग़ का दूसरा हिस्सा आपको तर्कशील बनाए रखने में मदद कर सकता है. ताकि हम दो मिनट ठहर कर सोचें कि ऐसी स्थिति में हमें वास्तव में क्या करना चाहिए.
अब आप सोचेंगे कि हिस्से को कैसे प्रयास में लाया जाए. तो बहुत आसान है अच्छा सोचें, भरपूर नींद लें, जिससे की आपके शरीर में हर रसायन सही मात्रा में बने.
तो अगली बार आपका भरोसा टूटे तो हां बुरा बेशक़ लगेगा, गुस्सा भी आएगा. मगर आप शांत रहिएगा, ऑक्सीटोसिन को शांति से आने दीजिए और जाने दीजिए. फिर अपने दिमाग़ के Prefrontal Cortex में झांकिए और सोचिए कि आपको वास्तव में ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए.